असम की राजनीति में एक नया और अप्रत्याशित मोड़ आया है। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व शर्मा ने शुक्रवार को एक ऐसा दावा किया, जिसने न केवल राज्य की राजनीतिक सरगर्मियों को और तेज़ कर दिया है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता को भी सतह पर ला दिया है। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है कि असम कांग्रेस के समर्थन में अचानक 5,000 से अधिक सोशल मीडिया अकाउंट्स सक्रिय हो गए हैं और इनमें से अधिकांश कथित रूप से इस्लामी देशों से ऑपरेट हो रहे हैं।
47 देशों से संचालित अकाउंट्स, अधिकतर बांग्लादेश और पाकिस्तान से
मुख्यमंत्री ने बताया कि ये सोशल मीडिया अकाउंट्स 47 विभिन्न देशों से संचालित हो रहे हैं, जिनमें बांग्लादेश और पाकिस्तान से सबसे ज्यादा अकाउंट्स हैं। ये अकाउंट्स पिछले एक महीने से असम कांग्रेस की गतिविधियों और एक विशेष कांग्रेस नेता पर केंद्रित हैं। उन्होंने ने इसे एक सामान्य चुनावी रणनीति मानने से इनकार करते हुए इसे ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ का मामला बताया है।
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि इन अकाउंट्स का मकसद 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले असम के राजनीतिक माहौल को प्रभावित करना है। उन्होंने कहा- “यह पहली बार है कि असम की सियासत में इतने बड़े पैमाने पर विदेशी हस्तक्षेप देखा गया है। यह सिर्फ राजनीति का मामला नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा सवाल है।”
असम कांग्रेस और केवल एक नेता पर फोकस
मुख्यमंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलासा किया कि ये अकाउंट्स न तो राहुल गांधी की पोस्ट्स पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं और न ही अखिल भारतीय कांग्रेस की गतिविधियों पर। इन अकाउंट्स की गतिविधि पिछले एक महीने में खास तौर पर तेज़ हुई है और इनका ध्यान सिर्फ असम कांग्रेस और एक विशेष नेता की पोस्ट्स पर है, जिन्हें ये लाइक और कमेंट के जरिए बढ़ावा दे रहे हैं।
हालांकि सीएम ने उस नेता का नाम स्पष्ट नहीं किया, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स और राजनीतिक हलकों के अनुसार उनका इशारा हाल ही में असम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने गौरव गोगोई की ओर है, जिन्हें मई के अंतिम सप्ताह में यह जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
प्रो-इस्लामी कंटेंट से डिजिटल हस्तक्षेप
मुख्यमंत्री ने बताया कि इन सोशल मीडिया अकाउंट्स के जरिए न केवल असम कांग्रेस के पक्ष में प्रचार हो रहा है, बल्कि इस्लामी कट्टरता से जुड़ा कंटेंट भी जमकर शेयर किया जा रहा है। जिनमे ‘प्रो-फिलिस्तीन’, ‘ईरान समर्थन’ और बांग्लादेश के चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस से संबंधित पोस्ट्स शामिल हैं।
उन्होंने ने कहा- “ये अकाउंट्स सिर्फ राजनीतिक प्रचार तक सीमित नहीं हैं। इनके जरिए संवेदनशील और उत्तेजक सामग्री भी फैलाई जा रही है, जो चिंता का विषय है।”
इस संदर्भ में उन्होंने चेतावनी दी कि ये सिर्फ एक राजनीतिक चाल नहीं, बल्कि सुनियोजित ‘डिजिटल हस्तक्षेप’ है, जो राज्य की आंतरिक स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
पहले भी उठ चुके हैं सवाल
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब मुख्यमंत्री हिमंत ने इस तरह का दावा किया हो। इसी महीने की शुरुआत में उन्होंने कहा था कि करीब 2,000 फेसबुक अकाउंट्स असम की राजनीति पर टिप्पणी कर रहे हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा पाकिस्तान और बांग्लादेश से संचालित हैं।
उन्होंने तब यह भी दावा किया था कि पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) असम के 2026 के विधानसभा चुनावों में “किसी को जिताने” की कोशिश कर रही है। तब असम पुलिस की विशेष शाखा को इन अकाउंट्स की जांच का जिम्मा सौंपा गया था।
मुख्यमंत्री के अनुसार पहली बार असम की राजनीति में इतनी बड़ी संख्या में विदेशी दखल देखने को मिली है। उनका आरोप है कि यह दखल आगामी चुनावों के मद्देनज़र राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है।
केंद्र को जानकारी देकर की जांच की मांग
मुख्यमंत्री ने भारत सरकार से इस मामले की गहन जांच और उचित कार्रवाई की मांग करते हुए कहा- “हमने केंद्र को इसकी पूरी जानकारी दे दी है। यह सिर्फ असम की सियासत का मसला नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। हमें यह समझना होगा कि इन अकाउंट्स के पीछे कौन है और उनका असल मकसद क्या है?”
चुनाव से पहले विदेशी हस्तक्षेप से बढ़ा सियासी तापमान
बता दें कि असम में 2026 के विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली सरकार और कांग्रेस के बीच सियासी जंग तेज होने की उम्मीद है। गौरव गोगोई के असम कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद हुए इस खुलासे से न केवल कांग्रेस पर दबाव बढ़ा सकता है, बल्कि राज्य की राजनीति में एक नया विवाद भी खड़ा कर सकता है। वहीं समाचार लिखे जाने तक असम कांग्रेस ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है।
सियासत में विदेशी साजिश की शुरुआत..?
हिमंत विश्व शर्मा का यह दावा असम की सियासत में एक नए तूफान के साथ-साथ एक नए तरह के खतरे की ओर इशारा करता । यदि मुख्यमंत्री के दावो के अनुसार यह एक गंभीर चेतावनी है कि चुनावों को केवल जमीन पर नहीं, बल्कि स्क्रीन के पीछे बैठे अनदेखे हाथों से भी लड़ा जा सकता है।
अगर इन आरोपों की जांच में और भी ठोस सबूत सामने आते हैं, तो यह न केवल असम बल्कि पूरे देश की राजनीति में हलचल मचा सकता है।
अब सवाल यह है कि क्या सोशल मीडिया, जो कभी लोकतंत्र में प्रचार प्रसार का विस्तार माना जाता था, अब उस पर छाया बनकर उसे प्रभावित कर रहा है..?
शिवम् दीक्षित एक अनुभवी भारतीय पत्रकार, मीडिया एवं सोशल मीडिया विशेषज्ञ, राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार विजेता, और डिजिटल रणनीतिकार हैं, जिन्होंने 2015 में पत्रकारिता की शुरुआत मनसुख टाइम्स (साप्ताहिक समाचार पत्र) से की। इसके बाद वे संचार टाइम्स, समाचार प्लस, दैनिक निवाण टाइम्स, और दैनिक हिंट में विभिन्न भूमिकाओं में कार्य किया, जिसमें रिपोर्टिंग, डिजिटल संपादन और सोशल मीडिया प्रबंधन शामिल हैं।
उन्होंने न्यूज़ नेटवर्क ऑफ इंडिया (NNI) में रिपोर्टर कोऑर्डिनेटर के रूप में काम किया, जहां इंडियाज़ पेपर परियोजना का नेतृत्व करते हुए 500 वेबसाइटों का प्रबंधन किया और इस परियोजना को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान दिलाया।
वर्तमान में, शिवम् राष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य (1948 में स्थापित) में उपसंपादक के रूप में कार्यरत हैं।
शिवम् की पत्रकारिता में राष्ट्रीयता, सामाजिक मुद्दों और तथ्यपरक रिपोर्टिंग पर जोर रहा है। उनकी कई रिपोर्ट्स, जैसे नूंह (मेवात) हिंसा, हल्द्वानी वनभूलपुरा हिंसा, जम्मू-कश्मीर पर "बदलता कश्मीर", "नए भारत का नया कश्मीर", "370 के बाद कश्मीर", "टेररिज्म से टूरिज्म", और अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले के बदलाव जैसे "कितनी बदली अयोध्या", "अयोध्या का विकास", और "अयोध्या का अर्थ चक्र", कई राष्ट्रीय मंचों पर सराही गई हैं।
उनकी उपलब्धियों में देवऋषि नारद पत्रकार सम्मान (2023) शामिल है, जिसे उन्होंने जहांगीरपुरी हिंसा के मुख्य आरोपी अंसार खान की साजिश को उजागर करने के लिए प्राप्त किया।
शिवम् की लेखन शैली प्रभावशाली और पाठकों को सोचने पर मजबूर करने वाली है, और वे डिजिटल, प्रिंट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय रहे हैं। उनकी यात्रा भड़ास4मीडिया, लाइव हिन्दुस्तान, एनडीटीवी, और सामाचार4मीडिया जैसे मंचों पर चर्चा का विषय रही है, जो उनकी पत्रकारिता और डिजिटल रणनीति के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
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