विश्व

जिन्ना के देश का जनरल मुनीर बगलें झांक रहा America में, Iran के पाले में उतरे Pakistan की छवि सुधारने की कवायद नाकाम!

पाकिस्तान हमेशा से एक ओर अमेरिका से रक्षा एवं आर्थिक सहायता मांगता रहा है, तो दूसरी ओर वह मुस्लिम राष्ट्रों के साथ 'मुस्लिम ब्रदरहुड' के नाम पर एक थाली में खाना भी चाहता है

Published by
Alok Goswami

जिन्ना के देश का फौजी जनरल, जो अब फील्ड मार्शल बन बैठा है, इन दिनों अमेरिका गया हुआ है। आपरेशन सिंदूर में भारत से बुरी तरह पिटने के बाद, पाकिस्तान का यह फील्ड मार्शल अपनी करतूतों पर परदा डालने और अमेरिकियों से अपने लिए समर्थन जुटाने की गरज से गया था। लेकिन इस बीच इस्राएल न ईरान की कमर तोड़नी शुरू कर दी। इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेत्यनाहू ने ईरान और उसके बाद पाकिस्तान जैसे मजहबी उन्मादी देशों को ‘सबक’ सिखाने का संकल्प सार्वजनिक रूप से सबसे सामने रखा है। हमास की भी जड़ें वे इसी उद्देश्य से काट रहे हैं कि सभ्य जगत में इन इस्लामी जिहादी तत्वों के कारण ही सारा तनाव है। इधर मुनीर अमेरिका में पाकिस्तान की छवि सुधारने की कोशिश कर रहे थे तो उधर पाकिस्तान ने ईरान को युद्धक सहायता देनी शुरू कर दी। अमेरिकी पहले ही ईरान से गुस्सा थे, इसलिए पाकिस्तान की इस करतूत से संकेत अच्छा नहीं गया। मुनीर की पाकिस्तान के लिए आर्थिक, राजनीतिक या सैन्य समर्थन जुटाने की कवायद के परखच्चे उड़ने लगे।

सब जानते हैं कि अमेरिका की विदेश नीति उन देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी पर आधारित होती है जो उसके हितों के अनुरूप हों। ऐसे में अगर पाकिस्तान ईरान को समर्थन दे रहा है, चाहे वह वैचारिक, कूटनीतिक या सैन्य समर्थन ही क्यों न हो, तो अमेरिका उसे अपने रणनीतिक विरोधी के सहयोगी के रूप में देख ही रहा होगा। ऐसे में अमेरिका में मुनीर का दौरा असफल होने के पूरे आसार हैं। इतना ही नहीं, अमेरिका मुनीर के ​ही मुंह पर अगर पाकिस्तान की विदेश नीति पर नाराजगी जाहिर कर दे तो कोई आश्चर्य नहीं।

पाकिस्तान हमेशा से एक कठिन संतुलन साधता आ रहा है, एक ओर अमेरिका से रक्षा एवं आर्थिक सहायता मांगता रहा है, तो दूसरी ओर वह मुस्लिम बहुल राष्ट्रों के साथ मुस्लिम ब्रदरहुड के नाम पर एक थाली में खाना भी चाहता है। बेशक उसका ईरान को युद्ध में साथ देना इस संतुलन को बिगाड़ सकता है। इससे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय समुदाय में और अलग-थलग पड़ सकता है। पश्चिमी देश वैसे भी ईरान के विरोध में एकजुट दिख रहे हैं।

जनरल मुनीर के 19 जून तक के पांच दिन के अमेरिका दौरे में रणनीतिक कोशिश रहेगी कि वे पाकिस्तान की बदनाम छवि को थोड़ा निखारें, नीतियों की अपनी तरह से व्याख्या करके पेश करें। लेकिन यदि उनके वहां होने पर अमेरिकी बेपरवाही वाला रुख दिखाएं या सार्वजनिक रूप से उनका अपमान करें। अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान की दुनिया में बची-खुची औकात भी खत्म हो जाएगी।

ईरान—इस्राएल युद्ध से उपजी स्थितियों में अमेरिका पाकिस्तान की इन हरकतों से नाराज होकर सहयोग में कटौती या प्रतिबंध लगा सकता है। ऐसा हुआ तो पाकिस्तान को अपनी विदेश नीति साफ करनी होगी कि वह अमेरिका के साथ गठबंधन में रहना चाहेगा या ईरान जैसे ‘मुस्लिम’ देशों के साथ कट्टर सोच की टेक पर एकजुटता दिखाएगा।

मुनीर की अमेरिका यात्रा और वहां की प्रतिकूल परिस्थितियां इस बात का संकेत हैं कि वैश्विक राजनीति में छवि, गठबंधन और नीतिगत स्पष्टता अत्यंत महत्वपूर्ण आयाम हैं। पाकिस्तान के लिए अब यह आवश्यक हो गया है कि वह अपने कूटनीतिक रुख को स्पष्ट करे।

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