युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़े जाते उन्हें विचारों, तकनीक और आत्मविश्वास की धरती पर जी जाता हैं। जब अस्तित्व पर ही हमला हो तो शांति नहीं, शौर्य बोलता है। ऐसा सदियों से होता आया है, ऑपरेशन सिंदूर उसी शौर्य की वाणी था। यह एक ऐसा सैन्य अभियान था, जो घड़ी की सुइयों से भी तेज चला और इतिहास की किताबों में अपना नाम दर्ज करा गया।

वरिष्ठ पत्रकार
7 मई की रात जब दुनिया गहरी नींद में थी, भारत जाग रहा था-एक उद्देश्य के साथ, एक निर्णय के साथ। 1:05 बजे भारतीय वायु सेना ने 25 मिनट के भीतर नौ आतंकी अड्डों पर भीषण प्रहार किया। 100 से 150 किलोमीटर दूर से दागी गई मिसाइलें, घातक पैंतरे और चुपचाप घुसते ड्रोन। अगली दो रातों में, पाकिस्तान ने अपने पूरे ड्रोन बेड़े को युद्ध में झोंक दिया। कुल मिलाकर, 8 मई की रात 36 स्थानों पर और 9 मई की रात 26 स्थानों पर हमले हुए, उत्तर में लेह से दक्षिण में सर क्रीक तक।
भारत की एकीकृत वायु रक्षा कमान और नियंत्रण प्रणाली तथा वायु रक्षा हथियारों ने अपनी योग्यता सिद्ध की। अधिकांश ड्रोन और मिसाइलों को इलेक्ट्रॉनिक युद्ध से निष्क्रिय किया गया या वायु रक्षा/समग्र विरोधी मानवरहित विमान प्रणाली द्वारा नष्ट कर दिया गया। स्वदेशी बराक 8 और आकाश प्रणालियों ने भी अपनी उपादेयता सिद्ध की, साथ ही कंधे से दागी जाने वाली इग्ला एमएएनपीएडी के साथ। पुरानी प्रणालियों, जैसे वायु सेना के पेचोरा और सेना की एल-70 तोपें और शिल्का/ओसा-एके प्रणालियों ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। लगातार तीन रात तक दुश्मन के ड्रोन हमलों का प्रदर्शन अपेक्षाओं से काफी नीचे रहा। भारतीय वायु सेना ने बेहतर तकनीक और रणनीति के कारण सीमित लेकिन अधिक प्रभावी पैमाने पर सफलतापूर्वक जवाब दिया। पाकिस्तान की कमर टूट चुकी थी।
इस लड़ाई ने दो काम किये; पहला, चीन के हथियारों का वैैश्विक भरोसा तोड़ा। कुछ कहावतों पर गौर कीजिये-‘चीन सब कुछ बनाता है, सिवाय भरोसे के’, ‘चीनी स्टील्थ टेक्नोलॉजी इतनी अदृश्य है कि परफॉर्मेंस भी नहीं दिखती!’ दूसरा बड़ा काम ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की स्वदेशी रक्षा प्रणाली की धमक को गुंजाया है। राफेल, सुखोई-30 एकेआई की ही धमक नहीं, बल्कि ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल, स्काल्प, हैमर और स्पाइस-2000 जैसे सटीक हथियारों ने सुर्खियां बटोरीं, साथ ही जिस पलटवार पर पाकिस्तान को बड़ा नाज था, उसकी नाकामी की गूंज इस्लामाबाद के साथ ही बीजिंग और इस्तांबुल में भी सुनाई दी।
चीनी रक्षा उपकरणों की इस विफलता से वैश्विक हथियार बाजार में एक बड़ा बदलाव आ गया है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2019-2023 के बीच पाकिस्तान का 82 प्रतिशत रक्षा आयात चीन से आया। ऑपरेशन सिंदूर में इन उपकरणों की असफलता ने चीन के सैन्य निर्यात की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया। स्टॉकहोम पीस इंस्टीट्यूट के सीमोन वेज़मैन ने कहा, ‘चीनी हथियारों की यह विफलता पश्चिमी रक्षा निर्माताओं और भारत जैसे उभरते खिलाड़ियों के लिए एक रणनीतिक अवसर है।’
आकाश मिसाइल प्रणाली और आकाशतीर ने पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइल हमलों को नाकाम किया। आकाशतीर, जो डीआरडीओ, बीईएल और इसरो के सहयोग से विकसित एक एआई संचालित, सैटेलाइट-संबद्ध स्वायत्त रक्षा तंत्र है, ने नाविक जीपीएस और स्टील्थ ड्रोन स्वार्म्स के साथ एकीकृत होकर चीनी ड्रोन नष्ट किए, जिसमें पिछले कई दशक से पश्चिमी तकनीक की चोरी करके हथियारों की बड़ी खेप तैयार की गयी थी, चीन हथियारों पर अरबों डालर खर्च करता रहा है।
यह पहला बड़ा मौका था, जब चीनी हथियारों की आंखों के सामने नुमाइश थी, सफल होते तो बाजार में ग्राहकों की बाढ़ आ जाती, लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने चीन निर्मित रक्षा उपकरणों की कमजोरियों को उजागर किया, जिसने चीन की सैन्य निर्यात की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। जे-10सी, जेएफ-17 थंडर, एचक्यू-9बी, एलवाई-80 और एफएम-90 जैसी हवाई रक्षा प्रणालियों और विंग लूंग-II ड्रोन को न जाने क्या हुआ कि वे फिसड्डी रहे, ये उपकरण भारतीय हमलों को रोकने में असफल रहे। फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीस के रक्षा विशेषज्ञ क्रेग सिंगल्टन ने कहा, ‘यह पहली बार था जब चीनी रक्षा उपकरणों को वास्तविक युद्ध परिदृश्य में परखा गया और उनकी असफलता ने उनके डिज़ाइन और विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए।’ यह प्रदर्शन चीनी हथियारों के लिए एक बड़ा झटका था, जिन्हें पाकिस्तान ने अपनी रक्षा रणनीति का आधार बनाया था।
पाकिस्तान ने चीन में बने विंग लूंग-II ड्रोन और एआर-1 लेजर गाइडेड मिसाइलों का उपयोग किया, लेकिन भारतीय आकाश और आकाशतीर प्रणालियों ने इनका आसानी से मुकाबला किया। भारतीय सेना ने कई प्रकार के ड्रोन का मलबा प्रदर्शित किया, जिसने उनकी स्टील्थ क्षमता पर सवाल उठाए।
भारतीय हमलों ने चुनियन हवाई अड्डे पर चीन निर्मित वाइएलसी-8ई एंटी-स्टील्थ रडार को नष्ट कर दिया, जिसने चीन की रडार तकनीक की कमजोरियों को उजागर किया। चीनी जे-10सी, एचक्यू-9बी और ड्रोन की असफलता ने अमेरिका और यूरोपीय रक्षा उद्योगों के लिए अवसर खोले। रूस के एस-400 और फ्रांस के राफेल ने इस ऑपरेशन में यदि अपनी विश्वसनीयता साबित की। तो उधर चीनी जे-17, पीएल-15, और एचक्यू-9 के ऑर्डर रद्द किए जा रहे हैं। यह अमेरिका और यूरोप के लिए अपने हथियारों को दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य पूर्व में बढ़ावा देने का मौका है।
लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के स्वदेशी रक्षा उद्योग को वैश्विक मंच पर चमकने का अवसर दिया है। ब्रह्मोस मिसाइल, जो डीआरडीओ और रूस की संयुक्त परियोजना है, ने अपनी सटीकता और गति से 17 देशों का ध्यान आकर्षित किया है, जैसे वियतनाम, फिलीपींस, और सऊदी अरब अब ब्रह्मोस की बात कर रहे हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा, ‘ब्रह्मोस केवल एक हथियार नहीं है, यह भारत की सैन्य शक्ति और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।’ भारत का रक्षा निर्यात वित्त वर्ष 2024-25 में 23,622 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जो 2013-14 की तुलना में 34 गुना वृद्धि है। ऑपरेशन सिंदूर ने ब्रह्मोस, आकाश और आकाशतीर को वैश्विक बाजार में विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्थापित किया है। फिलीपींस ने 375 मिलियन डॉलर का ब्रह्मोस का ऑर्डर दिया है तो इंडोनेशिया, वियतनाम और पेरू भी इसमें रुचि दिखा रहे हैं।
आकाश मिसाइल प्रणाली को डीआरडीओ और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड मिलकर बनाते हैं। इसने चीन और तुर्की के ड्रोन नष्ट करने में अपनी प्रभावशीलता दिखाई। इसकी 82 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री के 2026-27 तक 93 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना ने इसे लागत-प्रभावी और निर्यात के लिए आकर्षक बनाया है। आर्मेनिया ने 15 आकाश-1एस इकाइयों का ऑर्डर दिया है, इसमें फिलीपींस, वियतनाम और दक्षिण अमेरिका के कई देश भी रुचि दिखा रहे हैं।
आकाशतीर डीआरडीओ, बीईएल और इसरो के सहयोग से विकसित, एक एआई संचालित, सैटेलाइट-संबद्ध स्वायत्त रक्षा तंत्र है। इसने नाविक जीपीएस और स्टील्थ ड्रोन स्वार्म्स के साथ एकीकृत होकर चीनी ड्रोन नष्ट कर दिए थे। मॉडर्न वॉर इंस्टीट्यूट, वेस्ट पॉइंट के रक्षा विश्लेषक जॉन स्पेंसर कहते है, ‘आकाशतीर ने न केवल भारत के हवाई क्षेत्र की रक्षा की, बल्कि चीनी रक्षा तंत्रों को भी पछाड़ दिया। यह भारत के तकनीकी नवाचार का प्रतीक है।’
तेजस एमके1ए और प्रस्तावित एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ने भी ऑपरेशन में सीमित लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड ने 2025 के अंत तक 12 तेजस एमके1ए की देने की योजना बनाई है। एएमसीए की स्टील्थ क्षमता इसे भविष्य में वैश्विक बाजार में पश्चिमी विमानों का विकल्प बना सकती है। अर्जुन एमके1ए टैंक और प्रोजेक्ट 75I स्कॉर्पीन-क्लास पनडुब्बियां भारत के स्वदेशी निर्माण को मजबूत करती हैं। ये उपकरण निर्यात के लिए तैयार हो रहे हैं, खासकर उन देशों के लिए जो लागत-प्रभावी विकल्प चाहते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर ने भारत के रक्षा उद्योग को एक नई गति दी है। आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया पहल के तहत, भारत ने ड्रोन, मिसाइल और रडार जैसे क्षेत्रों में अपनी निर्भरता को कम किया है। 2021 से ड्रोन आयात पर प्रतिबंध और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम ने स्वदेशी निर्माण को बढ़ावा दिया है। भारत का रक्षा निर्यात 2030 तक 11 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
हालांकि, चुनौतियां भी हैं। एचएएल और डीआरडीओ को उत्पादन लागत कम करने और समयसीमा को और कसने की आवश्यकता है। तेजस एमके1ए की लागत सुखोई-30 एमकेआई से अधिक होने की आलोचना हुई है। वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए भारत को अपनी तकनीक को और लागत-प्रभावी और अनुकूलन योग्य बनाना होगा।
चीनी हथियारों की खुलती कलई को वहां के शेयर बाजार ने भी दिखाया। 9 मई तक, एवीआईसी के शेयर सप्ताह भर में 40 प्रतिशत चढ़ गए और कंपनी की बाजार कीमत में 5 अरब डॉलर का इजाफा हुआ। विश्व भर की नजरें इस ऑपरेशन सिंदूर पर थीं। लेकिन 10 मई को, एक बड़ा मोड़ आया, जैसे ही पाकिस्तान ने युद्धविराम की घोषणा की, चीनी बाजार में सन्नाटा छा गया।
12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित किया। उन्होंने कहा, ‘दुनिया ने देखा, पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइलें भारत के सामने तिनके की तरह बिखर गईं।’ इस बयान ने बाजार को हिला दिया। 13 मई को, एवीआईसी चेंगदू के शेयर 9.2 प्रतिशत लुढ़ककर 95.86 युआन से गिरकर 88.66 युआन पर आ गए। हांग सेंग चाइना एयरोस्पेस इंडेक्स 2.9 प्रतिशत नीचे गिरा। निवेशकों का भरोसा टूट गया। भारत की स्वदेशी शक्ति ने चीनी तकनीक को बेकार साबित कर दिया।
15 मई तक, एवीआईसी के शेयर और गिरकर 84.65 युआन पर पहुंच गए, तीन दिन में 12 प्रतिशत की गिरावट। भारत की आत्मनिर्भरता की गूंज अब विश्व में फैल रही थी। यह एक रोमांचक गाथा थी, यह स्वदेशी शक्ति की जीत थी, जिसमें भारत ने न केवल युद्ध जीता, बल्कि वैश्विक बाजार को भी अपनी ताकत का अहसास कराया।
ऑपरेशन सिंदूर पर सीमा के दोनों तरफ के दावों पर भारत की उत्तरी और मध्य कमानों के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ रहे ले. जनरल एच़ एस़ पनाग कहते हैं, ‘इस पूरे संघर्ष के दौरान न तो सीमाओं का उल्लंघन हुआ, न ही बल प्रयोग अनियंत्रित हुआ। हर स्तर पर सैन्य कार्रवाई संयमित रही और शत्रु की सैन्य संरचना भी औपचारिक रूप से अक्षत है। फिर भी, भारत ने पाकिस्तान पर एक प्रचंड मानसिक पराजय थोप दी है। भारत ने न केवल अपनी निरोधक क्षमता (डिटरैंस) को दोबारा स्थापित किया है, बल्कि अपने राजनैतिक और सैन्य लक्ष्यों को पूर्णतः प्राप्त भी कर लिया है।’
संयम किसी राष्ट्र की सबसे प्राचीन और प्रबल शक्ति है, वह शांति का व्रत है, जो आत्मबल से उपजता है। पर जब पड़ोसी हमारी अनेक चेतावनियों को ठुकराकर हमारी ही भूमि को अपनी ‘जुगुलर नस’ कहे, तो फिर समय आ जाता है वैद्य बनकर नहीं, शल्य चिकित्सक बनकर इलाज करने का। n
बढ़ता सहयोग
भारत-रूस
- 72% हिस्सेदारी थी रूस की भारत के रक्षा आयात में 2010-14 के दौरान, 55% हो गई 2015-19 की अवधि में
- 38% रह गई रूस की हिस्सेदारी 2020-24 की अवधि में, SIPRI की वैश्विक हथियार हस्तांतरण रिपोर्ट 2025 के अनुसार
द्विपक्षीय परियोजनाएं: इसमें एस-400 की आपूर्ति, टी-90 टैंकों और सुखोई-30 एमकेआई का भारत में उत्पादन, मिग-29 और कामोव हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति, आईएनएस विक्रमादित्य (पूर्व में एडमिरल गोर्शकोव), भारत में एमके-203 राइफलों का उत्पादन और ब्रह्मोस मिसाइलें शामिल हैं।
भारत-इस्राएल
- 11% के करीब थी भारत के कुल रक्षा आयात में इस्राएल की हिस्सेदारी 2013-17 के दौरान
- 34% हो गई हिस्सेदारी 2020-24 के दौरान, यानी 2014 की तुलना में 3 गुना से अधिक वृद्धि
द्विपक्षीय परियोजनाएं: इसमें बराक-8 मिसाइल रक्षा प्रणाली, स्मार्ट गाइडेड वेपन सिस्टम, मिसाइल, ड्रोन, स्पाइस बम, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, इलेक्ट्रिक सर्विलांस और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान व तकनीकी विकास के अलावा ऑपरेशन सिंदूर और रियल-टाइम डिफेंस सहयोग आदि शामिल हैं।
भारत-फ्रांस
- 3-4% (लगभग) था फ्रांस के साथ भारत का कुल रक्षा आयात 2014 में, यानी 2,000-3,000 करोड़ रुपये सालाना
- 28% हो गई आयात हिस्सेदारी 2020-2024 में, यानी 25,000 से 35,000 करोड़ रुपये
सालाना (SIPRI की रिपोर्ट)
- द्विपक्षीय परियोजनाएं: इसमें रक्षा, प्रौद्योगिकी जैसे-स्कॉर्पीन पनडुब्बी, एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन, एकीकृत लड़ाकू प्रणाली का सह-विकास व सह-उत्पादन, रक्षा औद्योगिक रोडमैप जिसमें उन्नत हथियार, रक्षा प्रौद्योगिक हस्तांतरण और रक्षा स्टार्टअप उत्कृष्टता (FRIND-X), हिंद-प्रशांत सहयोग, नवाचार, एआई आदि अन्य क्षेत्र शामिल हैं।
भारत-अमेरिका
- 7-9% (लगभग) यानी 5,000-7,000 करोड़ रुपये था अमेरिका के साथ भारत का कुल रक्षा आयात 2014 में
- 12-15% के बीच हो गई हिस्सेदारी 2025 में, यानी आयात सालाना 10,000-15,000
करोड़ रुपये के दायरे में
द्विपक्षीय परियोजनाएं: इसमें जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल, स्ट्राइकर इन्फैंट्री कॉम्बैट वाहन, एआई, ड्रोन प्रणाली व सक्रिय टोड ऐरे सिस्टम सहित स्वायत्त रक्षा प्रणालियों के सह-विकास व सह-उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और रक्षा उपकरणों की बिक्री, भू-स्थानिक सहयोग और सैन्य सूचना साझा आदि शामिल हैं।
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