अभी हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान को शांति बनाए रखने की सलाह देते हुए कहा था कि भारत को इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध कड़े कदम उठाने चाहिए। भारत में इसका कई तरह से स्वागत हुआ और कई विश्लेषकों ने इसे इस संदर्भ में देखा कि भारत अपनी रणनीतिक और सैन्य ताकत के कारण अब विश्व मंच पर एक निर्णायक शक्ति बन चुका है।

एक समय था जब भारत को अपनी रक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूरी तरह से विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता था। स्वतंत्रता के बाद हम दशकों तक रूस, अमेरिका, फ्रांस और इस्राएल जैसे देशों से हथियार आयात करते रहे। लेकिन अब स्थिति तेजी से बदल रही है। बीते वर्षों में भारत ने रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में जो कार्य किया है, उसने दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि भारत अब केवल रक्षा उपकरणों का आयातक नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद निर्यातक भी बन गया है। यह परिवर्तन अचानक नहीं आया, इसके पीछे दीर्घकालिक रणनीतिक सोच, मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, संस्थागत निर्माण और तकनीक का प्रयोग का हाथ है।
ब्रह्मोस का भरोसा
भारत के रक्षा निर्यात में ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। यह सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल भारत और रूस के संयुक्त उद्यम के रूप में विकसित हुई है। इसकी मारक क्षमता, गति और लक्ष्य पर सटीकता ने इसे विश्व की श्रेष्ठतम क्रूज मिसाइलों में स्थान दिलवाया है। ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस पर ब्रह्मोस द्वारा जिस सटीकता से निशाने लगाए गए, उसे पूरे विश्व ने देखा।
हाल में भारत ने फिलीपींस के साथ 375 मिलियन डॉलर का ब्रह्मोस मिसाइल का समझौता किया है। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। ऐसा पहली बार है जब भारत ने इतने बड़े स्तर पर एक अत्याधुनिक मिसाइल प्रणाली का निर्यात किया है। इसके बाद वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया और ब्राजील जैसे देश भी इस मिसाइल को खरीदने की दिशा में गंभीरता दिखा रहे हैं।
ब्रह्मोस मात्र एक मिसाइल नहीं, भारत की रणनीतिक सोच और रक्षा तकनीकी क्षमता का परिचायक बन चुकी है। इससे जुड़े सौदे यह भी दर्शाते हैं कि भारत अब अपने रक्षा उत्पादों के साथ
वैश्विक शक्ति संतुलन में अपनी स्थिति को परिभाषित कर रहा है।
विविध रक्षा उत्पादों की शृंखला
भारत के पास रक्षा निर्यात के लिए एक विविध उत्पाद शृंखला उपलब्ध है। भारत ने न केवल युद्धक विमानों, टैंकों और गोला-बारूद बल्कि अत्याधुनिक ड्रोन, सर्विलांस सिस्टम, एयर डिफेंस मिसाइलें, रडार, सोनार, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम व नाइट विजन उपकरण जैसी श्रेणियों में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है।
लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट ‘तेजस’ को कई देश अपनी वायु सेनाओं के लिए उपयुक्त मान रहे हैं। अर्जुन टैंक, पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर, आकाश मिसाइल, असॉल्ट राइफल्स और एडवांस्ड टोही ड्रोन जैसे उपकरण भारत के रक्षा निर्यात में निरंतर वृद्धि कर रहे हैं। यह प्रगति बताती है कि भारत अब केवल आयात करने वाला देश नहीं, बल्कि वैश्विक रक्षा बाजार में हिस्सेदारी रखने वाला देश बन गया है।
मेक इन इंडिया से सफलता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर शुरू हुआ ‘मेक इन इंडिया’ अभियान मात्र एक नारा नहीं, बल्कि भारत के रक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन का वाहक बना है। इस नीति के तहत सरकार ने न केवल रक्षा उत्पादन को प्राथमिकता दी, बल्कि इसके लिए नीतिगत सुधारों का एक व्यापक ढांचा भी तैयार किया।
- रक्षा क्षेत्र में एफडीआई की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% की गई
- लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया
- दो रक्षा औद्योगिक गलियारे विकसित किए गए
- स्वदेशी कंपनियों को रक्षा उत्पादन में भागीदारी का खुला अवसर मिला
- निजी और सार्वजनिक क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा और सहयोग को प्रोत्साहन दिया गया
इन सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप आज भारत की लगभग 100 से अधिक कंपनियां रक्षा निर्यात में सक्रिय हैं। टाटा, लार्सन एंड टुब्रो, भारत फोर्ज जैसी कंपनियां आज उच्च गुणवत्ता वाली सैन्य सामग्री बना रही हैं।
सरकारी संस्थानों की भूमिका
भारत का रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ), हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) जैसे संस्थान दशकों से भारतीय रक्षा जरूरतों की रीढ़ रहे हैं। अब इनकी भूमिका केवल घरेलू पूर्ति तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि ये संस्थान अब वैश्विक मानकों के अनुसार उत्पाद बना रहे हैं और उनका निर्यात कर रहे हैं।
डीआरडीओ द्वारा विकसित CATS प्रणाली (Combat Air Teaming System), स्वदेशी अर्ध-स्वायत्त युद्धक ड्रोन की एक आधुनिक मिसाल है। एचएएल द्वारा निर्मित तेजस, डॉर्नियर विमान, और एएलएच ध्रुव जैसे प्लेटफॉर्म निर्यात के लिए तैयार हैं। बीईएल की एंटी-ड्रोन तकनीक, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर और रडार प्रणाली आज कई देशों की जरूरतों को पूरा करने की स्थिति में है।
रणनीतिक साझेदारियां और वैश्विक पहचान
भारत अब केवल हथियार निर्यातक नहीं, बल्कि वैश्विक रणनीतिक साझेदार भी बनता जा रहा है। ये साझेदारियां केवल व्यापारिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामरिक संतुलन के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। फिलीपींस, वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे देशों के साथ रक्षा सहयोग चीन के विस्तारवादी रवैये को सामरिक जवाब देने का संकेत है।
अफ्रीकी देशों को भारत ने कम लागत पर उच्च गुणवत्ता वाले सैन्य उपकरण उपलब्ध कराए हैं। दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों ने भी भारत के हेलिकॉप्टर और रडार सिस्टम में रुचि दिखाई है। भारत सरकार ने वर्ष 2024-25 तक रक्षा निर्यात को 5 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। आज भारत आत्मनिर्भरता की उस ऊंचाई की ओर बढ़ रहा है जहां वह न केवल अपनी रक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है, बल्कि अपने मित्र राष्ट्रों की भी सुरक्षा आवश्यकताओं में सहयोगी बन सकता है। भारत का रक्षा निर्यात बढ़ना केवल आर्थिक या तकनीकी उपलब्धि नहीं है।
यह उस आत्मनिर्भर राष्ट्र की आकांक्षा है जो अपनी सुरक्षा स्वयं सुनिश्चित करने के साथ-साथ दुनिया को भी सुरक्षित, स्थिर और संतुलित बनाने के लिए कटिबद्ध है। अब वह दिन दूर नहीं जब विश्व भारत को केवल एक हथियार खरीदार के रूप में नहीं, बल्कि एक तकनीकी अग्रणी, आत्मनिर्भर और ऐसे उत्तरदायी रक्षा साझेदार के रूप में पहचानेगा जो किसी भी गलत हरकत को बर्दाश्त नहीं करेगा।
रक्षा औद्योगिक गलियारे
रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किए गए हैं। मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत स्थापित इन गलियारों का उद्देश्य देश को रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना है। इनमें 8,658 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हो चुका है और फरवरी 2025 तक 53,439 करोड़ रुपये के संभावित निवेश के साथ 253 समझाैता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर हो चुके हैं। 24 मार्च , 2025 तक मेक इन इंडिया पहल के तहत 145 परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें 171 उद्योग स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश के रक्षा गलियारे में 6 जिले (झांसी, अलीगढ़, लखनऊ, कानपुर, चित्रकूट व आगरा) आते हैं, जहां विशेष रूप से तोप, बख्तरबंद वाहन, ड्रोन, गोला, बारूद व रक्षा हार्डवेयर का निर्माण किया जाएगा। झांसी इसका मुख्य केंद्र है। वहीं तमिलनाडु रक्षा औद्योगिक गलियारा चेन्नई, त्रिची, कोयंबतूर, सलेम और होसुर में फैला है। इसमें एयरोस्पेस, मिसाइल प्रणाली और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में काम किए जाने की योजना है।
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