वीर सावरकर का मानना था कि हिन्दुत्व केवल एक धर्म नहीं है, बल्कि यह एक जीवन जीने की गहरी और ऊँची सोच है। यह विचार विश्व में शांति और सभी के भले का रास्ता दिखाता है। हिन्दुत्व केवल धार्मिक बात नहीं है, बल्कि यह पूरी मानवता की एक महान अभिव्यक्ति है। भारत की संस्कृति, धर्म, राजनीति और राष्ट्रीयता इसी हिन्दुत्व की नींव पर टिकी है।
श्री अरविन्द कहते हैं कि हम हिन्दू हैं और हमारी सोच स्वभाव से ही आध्यात्मिक है। भारत आत्मा और अध्यात्म का प्रयोग करने की भूमि है। वे कहते हैं कि हिन्दुत्व रक्षात्मक नहीं बल्कि आगे बढ़ने वाला, प्रभावशाली और प्रेरक होना चाहिए।
स्वामी विवेकानन्द का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने बहुत महान कार्य किए हैं, लेकिन अब समय है कि हम ऐसे काम करें जिन पर हमारी आने वाली पीढ़ियाँ गर्व करें। उन्होंने यह विश्वास जताया कि हम सब में वह शक्ति है कि हम पूर्वजों से भी बड़ा कार्य कर सकते हैं।
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हिन्दू धर्म का मूल विचार है – “मैं आत्मा हूँ।” इसका मतलब है कि हमें यह समझना है कि हम शरीर नहीं, आत्मा हैं और हमें ईश्वर के समीप पहुँचकर उसमें एकरूप हो जाना चाहिए। यही हिन्दू धर्म का सच्चा लक्ष्य है – ईश्वर से मिलना और उसके जैसे बनना।
वियोगी हरि कहते हैं कि हमें हिन्दू होने पर गर्व करना चाहिए। हिन्दू धर्म कोई संकीर्ण या ज़िद्दी धर्म नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया को प्रेम, सत्य, अहिंसा और भाईचारे का संदेश देता है। अगर हिन्दू धर्म इन मूल सिद्धांतों से हटेगा, तो उसका अस्तित्व नहीं टिक पाएगा। लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि सत्य और प्रेम कभी हारते नहीं। हिन्दू धर्म को समझने के लिए हमें उसकी संस्कृति और दर्शन को जानना जरूरी है। हिन्दू धर्म का मकसद केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन को ऊँचे स्तर पर जीना है – जिसमें सत्य, प्रेम, करुणा, और आत्म-ज्ञान का रास्ता अपनाया जाता है।
(इस लेख के तथ्य स्वामी विज्ञानानंद द्वारा लिखित पुस्तक ‘ हिंदू नाम की प्राचीनता और विशेषताएं’ से लिए गए हैं। इस पुस्तक को सुरुचि प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।)
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