कुछ वर्ष पहले एक हिन्दी फिल्म खुफिया में रॉ एजेंट की भूमिका निभाने वाली बांग्लादेश की अदाकारा अजमेरी हक बधान पर यह आरोप लगा है कि वे असल जीवन में रॉ की एजेंट हैं। डेली स्टार के अनुसार उन्होंने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि लौटकर मुझे रॉ का एजेंट घोषित कर दिया गया, क्या सफर है?
अजमेरी के अनुसार उन्होंने बांग्लादेश में चुनावों की बात कर दी है, इसलिए उन्हें अब रॉ का एजेंट बताया जा रहा है। उन पर समय-समय पर कई आरोप लगते रहे हैं। बधान के अनुसार पांच बार उनका भारतीय वीजा अस्वीकृत हुआ था क्योंकि सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में वे यूएस एम्बेसी में वीपी नूर के साथ फोटो में दिखाई दी थीं।
हालांकि बाद में काफी प्रयास के बाद एक महीने का उनका सिंगल एंट्री वीजा स्वीकृत हुआ था। पिछले वर्ष जब जुलाई में बांग्लादेश में कथित छात्र आंदोलन चल रहा था, उस समय उन्हें सीआईए का एजेंट कहा गया था। आरोप लगाया गया था कि उन्हें यूएसएआईडी से फंडिंग मिल रही है। उन्हें जमात का समर्थक बताया गया। उनके अनुसार उन्हें मोसाद तक का एजेंट बताया गया। अब उन्हें फिर से रॉ का एजेंट बताया जा रहा है। उन्होंने तमाम कन्स्पिरसी थ्योरी पर बात की, जो उनको लेकर हो रही हैं।
हालांकि उन्होंने अपने ऊपर लग रहे आरोपों पर बातें की, कि कैसे समय समय पर उन्हें एजेंट बताया गया। उन पर रॉ एजेंट होने का विवाद तब आरंभ हुआ जब उन्होंने 24 मई को देश में चुनावों की मांग और सभी के लिए समान अधिकारों की वकालत की। इसके बाद लोगों ने उन्हें भारत की खुफिया एजेंसी का एजेंट बता दिया।
हो सकता है कि अजमेरी ने यह मजाक में कहा हो, मगर लगातार यह होता रहा है कि अंतरिम सरकार की आलोचना करने पर उनपर रॉ के एजेंट होने का ठप्पा लगाया जाता है और यह सूची लंबी है।
इससे पहले निर्देशक नासिरुद्दीन यूसुफ, पत्रकार सुबीर भौमिक, पत्रकार और स्तंभकार अबीद खान, इतिहासकार और लेखक एवं ढाका यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर मुंतसिर मामून, पत्रकार एवं फिल्म निर्माता शहरियार कबीर, लेखक और एक्टिविस्ट ज़फ़र इकबाल आदि पर भी भारतीय एजेंट होने के आरोप लगाए गए हैं।
दरअसल शेख हसीना को तानाशाह कहकर देश से बाहर निकालने वाले लोग अब खुद तानाशाह जैसा व्यवहार कर रहे हैं। बांग्लादेश में लोग अब यूनुस सरकार के लिए तानाशाह शब्द का प्रयोग कर रहे हैं क्योंकि उनकी अभिव्यक्ति की आजादी अब दबाई जा रही है।
चुनावों की मांग करना भी देश के खिलाफ माना जा रहा है और अवामी लीग पर तो प्रतिबंध लगा ही दिया है। कई सांस्कृतिक एक्टिविस्ट वहां पर इस असहिष्णुता का शिकार हो चुके हैं। अभिनेत्रियों को उनके घरों से उठाया जा चुका है और उनपर तरह तरह के आरोप लग रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ बातचीत में बीबीसी के पूर्व पत्रकार सुबीर भौमिक ने कहा था कि यदि राजनीति में वर्तमान लोगों के एजेंडे पर आप हामी नहीं भरते हैं तो आप पर रॉ का एजेंट होने का आरोप लगा दिया जाता है।
उन्होंने कहा था कि “जब वे तर्कों का प्रतिवाद नहीं कर पाते, तो वे उस व्यक्ति को रॉ एजेंट बता देते हैं। बीबीसी से रिटायर होने के बाद जब मैं bdnews24.com में सीनियर एडिटर के तौर पर काम कर रहा था, तब मुझे रॉ एजेंट करार दिया गया था। मेरी किताब में एक अध्याय है, जिसमें चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स में रॉ की संलिप्तता का विवरण है। क्या कोई व्यक्ति रॉ के संचालन को उजागर करने के बाद रॉ एजेंट हो सकता है? आरोप निराधार हैं।“ ऐसे तमाम मामले सामने आ रहे हैं और लोग अब यूनुस सरकार को ही तानाशाह कह रहे हैं।
टिप्पणियाँ