भारत की ज़मीन पर वक़्फ की अवधारणा केवल मजहब की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, समावेशी विकास और स्थायी जनकल्याण का एक ऐतिहासिक ढांचा है। इस्लामी शिक्षाओं में वक़्फ को ‘सदका-ए-जारीया’, यानी ऐसा दान जिसे मृत्यु के बाद भी सवाब मिलता है-कहा गया है। हजरत उमर (रजि.) का खैबर की जमीन को वक़्फ करना, और नबी करीम (सल्ल.) का उसे समाजसेवा हेतु स्थायी संस्था के रूप में अनुमोदन देना, यह दर्शाता है कि इस्लाम ने वक़्फ को केवल मस्जिद या मजारों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, और बेसहारा लोगों की मदद का ज़रिया बनाया। कुरआन (3:92) कहता है: “तुम भलाई को नहीं पा सकते जब तक कि तुम उस चीज़ को न दान कर दो जिसे तुम स्वयं प्रिय मानते हो।” यही भावना वक़्फ की आत्मा है-प्रिय वस्तु को अल्लाह की राह में अर्पित कर देना ताकि उससे समाज को भी लाभ होता रहे। लेकिन अफसोस इस बात का है कि आधुनिक भारत में वक़्फ की यह मूल भावना प्रशासनिक जटिलताओं, राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी है।

आज भारत में पंजीकृत वक़्फ संपत्तियों की संख्या छह लाख से अधिक है, और उनका क्षेत्रफल लगभग पांच लाख एकड़ अनुमानित किया जाता है-जिसकी मौजूदा बाज़ार क़ीमत लाखों करोड़ों में है। फिर भी मुस्लिम समाज शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में सबसे पीछे खड़ा है। सच्चर समिति की रिपोर्ट हो या राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की सिफारिशें-हर जगह यह स्वीकार किया गया है कि वक़्फ बोर्ड निष्क्रिय हैं, और उनकी संपत्तियों पर या तो अतिक्रमण है या उन्हें कौड़ियों के भाव लीज पर दे दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने Board of Muslim Wakfs v. Radha Kishan और Syed Md. Salie Labbai v. Mohd. Hanifa जैसे ऐतिहासिक मामलों में स्पष्ट कहा है कि वक़्फ की संपत्तियां केवल मजहब नहीं, बल्कि सार्वजनिक हित की संपत्ति हैं, जिनका प्रयोग वंचितों और जरूरतमंदों की भलाई के लिए होना चाहिए। परंतु जब वक़्फ का इस्तेमाल निजी हितों, राजनीतिक गठजोड़ और जातिगत समीकरणों के लिए होने लगे, तो वह न पुण्य रह जाता है, न सार्वजनिक। इस विडंबना को समाप्त करने के लिए ही संसद ने 2025 में वक़्फ संशोधन अधिनियम पारित किया है, जो एक नई उम्मीद का संकेत है।
वक़्फ (संशोधन) अधिनिय-2025 की सबसे अहम विशेषता यह है कि यह स्पष्ट करता है कि केवल वही संपत्तियां वक़्फ मानी जाएंगी, जिनके पास कानूनी दस्तावेज़, न्यायिक आदेश, या राजस्व रिकॉर्ड में वक़्फ दर्ज हो। ‘यूजर वक़्फ’ के नाम पर सरकारी, व्यक्तिगत या साझा ज़मीनों पर दावा कर देने की परंपरा पर इससे विराम लगेगा। इसके साथ-साथ हर वक़्फ संपत्ति का डिजिटलीकरण, GIS मैपिंग और यूनिक कोडिंग की व्यवस्था की गई है, ताकि अतिक्रमण, दोहरी रजिस्ट्री और गलत किराएदारी पर रोक लगाई जा सके।
स्वतंत्र वक़्फ ट्रिब्यूनल्स, समयबद्ध विवाद निपटान, और अतिक्रमण पर दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान, इस अधिनियम को केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि प्रभावी बनाते हैं। अंतरराष्ट्रीय दृष्टांत जैसे तुर्की में वक़्फ डायरेक्टोरेट, मलेशिया की वक़्फ कॉर्पोरेशन और कतर के वक़्फ वित्तीय मॉडल को यदि भारत अनुकरणीय रूप से अपनाता है, तो वक़्फ संपत्तियां हमारे समाज की सामाजिक पूंजी बन सकती हैं- न कि उपेक्षा की शिकार भूखंड मात्र।
वक़्फ संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारत सरकार एक समावेशी और न्यायसंगत समाज की दिशा में कदम बढ़ा रही है, जहां धर्म आधारित सार्वजनिक संपत्तियां भी उत्तरदायी और पारदर्शी हों। यह केवल मुस्लिम समाज की भलाई नहीं, बल्कि राष्ट्रीय ऊर्जा के अधिकतम उपयोग का माध्यम भी है। यदि मुस्लिम बुद्धिजीवी, मजहबी नेता, और युवा इस कानून को समझें और उसके प्रभावी क्रियान्वयन में भाग लें, तो आने वाले वर्षों में वक़्फ संपत्तियां-कोचिंग सेंटर, छात्रावास, अस्पताल, स्किल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट और महिलाओं के सशक्तिकरण के मंच बन सकती हैं।
इस अधिनियम के द्वारा भारतीय मुस्लिम समाज को कुरआनी उसूलों की रौशनी में एक आधुनिक विकास पथ पर चलने का अवसर मिला है। यह भारत को “न्याय सबके लिए” के सिद्धांत से जोड़ता है, और एक ऐसे राष्ट्र की ओर ले जाता है जहां मजहब, विकास और दया एक-दूसरे के विरोध में नहीं, बल्कि साझी यात्रा में साथ हैं। में समझता हूं भारत के मुस्लिम समाज को इस संशोधन का स्वागत इसलिए करना चाहिए कि यह संशोधन वक़्फ माफिया के खूनी पंजे से अल्लाह के नाम दान जायदादों को बचाने का अचूक कदम है!
वक्फ संशोधन विधेयक-1995 एवं 2013 में हुए संशोधनों में सरकार द्वारा सुधारात्मक संशोधन नहीं किये जाये, जिससे की वक्फ की सम्पतियों को दान करने की मूल भावना की अनुपालना की जा सके, किन्तु वर्तमान सरकार द्वारा दान की मूल भावना का ध्यान रखते हुए, इसमें अपेक्षित सुधार हेतु संसद में बिल लेकर आना अत्यंत आवश्यक माना जा रहा है, अच्छी बात यह रही की इस सम्बन्ध में एक संयुक्त संसदीय समिति का भी सरकार द्वारा गठन किया गया जिसमें सभी दलों प्रतिनिधित्व रहा, सभी सुझाओं को सुनने के उपरांत समिति द्वारा की गयीं 19 सिफारिसों को सरकार से गंभीरता से लेते हुए यह बिल बनाया है, बिल पर संसद में सार्थक बहस हुई, उसके उपरांत दोनों सदनों द्वारा बिल पास हो गया। किन्तु उसके उपरांत जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, देश के सर्वोच्च्य न्यायालय में मामला विचाराधीन है, न्यायालय में बहस के क्रम में सीजेआई खन्ना के प्रश्नों पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा?
- जस्टिस खन्ना द्वारा कहा गया कि समय दिया जा सकता है, लेकिन इस बीच वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्डों में नियुक्तियां नहीं होनी चाहिए और पंजीकृत वक्फ में बदलाव नहीं होना चाहिए।
- मेहता ने कोर्ट को भरोसा दिलाया कि इस बीच कोई नियुक्तियां नहीं की जाएंगी। कोर्ट ने कहा कि आप केंद्र की ओर से बयान दे रहे हैं लेकिन राज्यों की ओर से कोई नहीं है।
- मेहता ने कहा कि कोर्ट आदेश दे सकता है कि अगर कोई राज्य इस बीच नियुक्ति करता है तो वह नियुक्ति निष्प्रभावी होगी।
मेहता का बयान दर्ज करते हुए कोर्ट ने केंद्र को जवाब के लिए सात दिन का समय दिया था एवं याचिकाकर्ताओं को प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए पांच दिन दिए गए थे ।
अंतरिम रोक न लगाने का आग्रह
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कानून पर अंतरिम रोक न लगाने का आग्रह भी किया था।
- सॉलिसिटर जनरल ने यह भी भरोसा दिलाया कि वक्फ, और वक्फ बाय यूजर (उपयोग के आधार पर वक्फ) अधिसूचना द्वारा घोषित या पंजीकृत वक्फ को गैर अधिसूचित नहीं किया जाएगा तब तक उसका चरित्र नहीं बदलेगा।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि वह 110 और 120 याचिकाओं पर सुनवाई नहीं कर सकता सिर्फ पांच याचिकाओं को मुख्य केस मानकर सुनवाई की जाएगी बाकी सभी याचिकाएं या तो अर्जियां मानी जाएंगी या निपटाई समझी जाएं।
- कोर्ट ने सुनवाई में सुविधा के लिए नोडल वकील नियुक्त करने और याचिकाओं व उनके जवाबों का कंपाइलेशन तैयार करने को कहा है। इससे पहले सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि कोर्ट अगर विधायी कानून के किसी हिस्से या पूरे हिस्से पर रोक लगाने का विचार कर रहा है तो उससे पहले केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए कम से कम सात दिन का समय दिया जाए। ताकि केंद्र सरकार कोर्ट के समक्ष जरूरी दस्तावेज और सामग्री पेश कर सके।
सॉलिसिटर जनरल द्वारा दी गई दलीलें
मेहता ने कहा कि ये संसद से पारित एक विधायी कानून है और सिर्फ थोड़ा सा पढ़ कर उस पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। ऐसा कोई भी आदेश देने से पहले कोर्ट को केंद्र सरकार द्वार पेश किये जाने वाले जवाब और दस्तावेजों को देखना चाहिए। वे पूरी जिम्मेदारी से सॉलिसिटर जनरल की हैसियत से कह रहे हैं कि कोर्ट को आदेश पारित करने से पहले कानून का पूरा इतिहास और पृष्ठभूमि देखनी चाहिए। कोर्ट को 1923, 1954, 1995 और 2013 के वक्फ कानून को भी देखना चाहिए।
मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार जनता के प्रति जवाबदेह है और केंद्र सरकार को लाखों प्रतिवेदन मिले हैं जिनमें से कुछ ने संशोधनों में योगदान दिया है। पूरे के पूरे गांव वक्फ संपत्ति घोषित कर दिये गए। इससे बड़ी संख्या में निर्दोष लोग प्रभावित होते हैं। अतः उन्हें जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाए।
मेहता की इन दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि ये सही है कि सामान्य तौर पर अदालत संसद से पारित कानून पर रोक नहीं लगाती, लेकिन हमने कुछ कमियों का भी उल्लेख किया गया। हमने यह भी कहा था कि कुछ सकारात्मक चीजें हैं। लेकिन हम नहीं चाहते कि आज की चीजों में इतना बदलाव हो जाए कि पक्षकारों के अधिकारों को प्रभावित करें।
कुल 5 याचिकाओं पर हो रही सुनवाई
नए वक्फ कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कुल 70 जनहित याचिकाएं दायर की गयीं, अतः इस सम्बन्ध में न्यायालय द्वारा इतनी याचिकाओं पर एक साथ विचार किया जाना संभव नहीं, अतः सभी के मूल विषय को ध्यान में रखते हुए, कुल 5 याचिकाओं पर सुनवाई किये जाने का निर्णय किया गया। इसमें AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की याचिका भी शामिल है।
वक्फ (संशोधन) कानून को न्यायालय में चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकारी जमीन पर किसी का कोई अधिकार नहीं हो सकता, चाहे वह ‘वक्फ बाय यूजर’ के आधार पर ही क्यों न हो।
महा न्यायभिकर्ता मेहता के अनुसार यदि कोई भूमि सरकारी है तो सरकार को पूरा अधिकार है कि वह उसे वापस ले ले, भले ही उसे वक्फ घोषित कर दिया गया हो। किसी भी प्रभावित पक्ष ने न्यायालय का द्वार नहीं खटखटाया। सॉलिसिटर जनरल के न्यायालय में दिए गए तर्क के अनुसार उन्होंने कहा किसी ने भी यह नहीं कहा कि संसद के पास इस कानून को पारित करने का अधिकार नहीं है।
वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, इस पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। जब तक यह साबित न हो जाए, बाकी तर्क विफल हो जाते हैं।
संयुक्त संसदीय समिति की कुल 96 बैठकें हुईं और देशभर से कुल 97 लाख लोगों से सरकार को सुझाव प्राप्त हुए, जिस पर सरकार द्वारा बहुत सोच-समझकर काम किया गया। राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए एवं सम्पतियों को दान किये जाने की भावना के अनुरूप वक्फ संशोधन विधेयक-2025 में सरकार द्वारा प्रावधान रखे गए हैं। जनभावना भी दान सम्बन्धी संपत्तियों के इस कानून का देशव्यापी स्वागत कर रही है।
क्या है वक्फ (संशोधन) कानून
- 1950 के दशक में वक्फ संपत्तियों की देखरेख के लिए कानूनी तौर पर एक संस्था बनाने की जरूरत महसूस हुई।
- इसके लिए 1954 में ‘वक्फ एक्ट’ के नाम से कानून बनाकर ‘सेंट्रल वक्फ काउंसिल’ का प्रावधान किया गया।
- एक साल बाद यानी 1955 में इस कानून में बदलाव करके हर राज्य में वक्फ बोर्ड बनाए जाने की शुरुआत हुई।
- इस वक्त देश भर में करीब 32 वक्फ बोर्ड हैं। ये वक्फ संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन और रखरखाव करते हैं।
- बिहार समेत कई प्रदेशों में शिया और सुन्नी मुस्लिमों के लिए वक्फ बोर्ड अलग हैं।
- रजिस्ट्रेशन और रखरखाव करते हैं।
- बिहार समेत कई प्रदेशों में शिया और सुन्नी मुस्लिमों के लिए वक्फ बोर्ड अलग हैं।
- 1964 में पहली बार सेंट्रल वक्फ काउंसिल गठित हुई।
- 1954 के इसी कानून में बदलाव करने के लिए केंद्र सरकार ‘वक्फ संशोधन बिल’ लाई, जो अब कानून बन गया है।
वक्फ कानून में बदलाव
वक्फ कानून में कुल 3 श्रेणियों में कुल 14 संशोधन किये गए हैं, सर्वप्रथम वक्फ के ढांचे में बदलाव किये गए जैसे कि अनुच्छेद 9 और 14 में बदलाव कर 2 महिला सदस्य होंगी, गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल होंगे, शिया, सुन्नी सहित पिछड़े मुस्लिम समुदायों से भी प्रतिनिधि होंगे, बोहरा और अगखानी मुस्लिम समुदायों के लिए अलग वक्फ बोर्ड बनेगा, केंद्र सरकार सेंट्रल वक्फ काउंसिल में 3 सांसदों (लोकसभा से 2, राज्यसभा से 1) को रख सकेगी। जरूरी नहीं कि वे मुस्लिम हों। अब तक तीनों सांसद मुस्लिम होते थे। दूसरा है, वक्फ बोर्ड की संपत्तियाें पर नियंत्रण इसमें भी CAG या सरकार की तरफ से नियुक्त ऑडिटर वक्फ संपत्तियों का ऑडिट, राज्य सरकार, संपत्तियां के सर्वे के लिए सर्वे कमिश्नर की जगह जिला कलेक्टर को नियुक्ति बोर्ड को अपनी संपत्तियों का कलेक्टर ऑफिस में पंजीकरण कराना होगा, कलेक्टर किसी वक्फ संपत्ति को सरकारी संपत्ति मानता एवं उसे राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव करवा कर राज्य सरकार को इसकी रिपोर्ट देना प्रमुख हैं I तीसरा है, वक्फ की विवादित संपत्ति का निपटारा करना जैसे कि धारा-40 खत्म होगी। इसके तहत वक्फ को किसी संपत्ति को अपनी संपत्ति घोषित करने का अधिकार, वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी। अभी तक वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को सिविल, राजस्व या दूसरी अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती एवं नए कानून के बनने से पहले या बाद में, किसी सरकारी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित किया गया है, तो अब वह वक्फ संपत्ति नहीं होगी।
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