राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा है कि बच्चे के शैक्षणिक रिकॉर्ड में मां का नाम महज एक विवरण नहीं है, बल्कि यह बच्चे की पहचान का धागा है जो उसके व्यक्तित्व को बुनता है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि यदि याचिकाकर्ता स्कूल प्रिंसिपल से सत्यापन कराकर माता के नाम में सुधार के लिए आवेदन प्रस्तुत करता है तो बोर्ड अंकतालिकाओं में सुधार करे।
जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश चिराग नरूका की याचिका का निपटारा करते हुए दिए। अदालत ने कहा कि किसी को नाम देना उसकी मौजूदगी को पहचानना है। नामहीन होना, अदृश्य होने के समान है। नाम ही बताता है कि हम कौन हैं और कहां से आए हैं। किसी के नाम को नकारना उसके व्यक्तित्व को नकारने के समान है। दस्तावेजों में गलत नाम से व्यक्ति को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। अदालत ने कहा कि शैक्षणिक रिकॉर्ड में मां का नाम शामिल कर हम उस प्यार, देखभाल और त्याग को स्वीकार करते हैं, जो एक बच्चे के जीवन को आकार देते हैं।
याचिका में अधिवक्ता राहुल शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता की 10वीं और 12वीं की अंकतालिका में उसकी मां का नाम आशा नरूका के बजाए टीना नरूका प्रिंट हो गया। जबकि अन्य सभी दस्तावेजों और विवाह प्रमाण पत्र में उसकी मां का नाम आशा नरूका ही है। याचिकाकर्ता ने 25 जुलाई, 2022 को शिक्षा बोर्ड में शपथ पत्र पेश कर अंकतालिकाओं में मां का नाम सही करने की गुहार की, लेकिन बोर्ड ने कई आपत्तियां लगाकर आवेदन वापस कर दिया। ऐसे में शिक्षा बोर्ड को निर्देश दिए जाए कि वह अंकतालिकाओं में उसकी मां का नाम सही करे। इसके जवाब में शिक्षा बोर्ड की ओर से अधिवक्ता शांतनु शर्मा ने बताया कि याचिकाकर्ता ने संबंधित स्कूल के प्रिंसिपल से अपना आवेदन पत्र सत्यापित किए बिना सीधे ही बोर्ड में आवेदन कर दिया।
ऐसे में उसके आवेदन पर विचार नहीं किया गया। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता को स्कूल प्रिंसिपल से सत्यापन करवा आवेदन पत्र बोर्ड के समक्ष पेश करने को कहा है। वहीं अदालत ने बोर्ड को अंकतालिकाओं में संशोधन करने को कहा है।
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