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क्या जिनेवा वार्ता से नरम पड़ेंगे Tariff पर भिड़े US-China के तेवर? क्या सीधी होंगी ट्रंप और जिनपिंग की टेढ़ी नजरें?

जिनेवा वार्ता अमेरिका के लिए 'सकारात्मक बढ़त' लेकिन चीन का 'समझौता न करने की शर्त' पर आगे बढ़ने का संकेत

Published by
Alok Goswami

‘आपरेशन सिंदूर’ और इस्राएल की गाजा पर लगातार चोट के बाद, ​जिस घटनाक्रम पर दुनिया की नजरें टिकी हैं वह है जिनेवा में अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ को लेकर चली वार्ता। अमेरिकी वार्ताकार जहां दुनिया की दो प्रमुख आर्थिक शक्तियों के बीच मतभेदों को सुलझाने में “बहुत अधिक उत्पादकता” की तस्वीर दिखा रहे हैं, तो वहीं चीन का रवैया ‘समझौता न करने’ की शर्त के आसपास मंडरा रहा है। हालांकि अभी इस वार्ता का पूरा ब्योरा सामने नहीं लाया गया है, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप की बयानबाजियों से परिचित दुनिया के अर्थ विशेषज्ञों को अभी भी किसी ठोस नतीजे की घोषणा की उम्मीद है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा चीन पर लंबे—चौड़े टैरिफ लगाए जाने और बीजिंग द्वारा जवाबी कार्रवाई के बाद, दोनों देशों के अधिकारियों द्वारा स्विट्जरलैंड में गत दो दिन खूब वाद—विवाद चला। इस पर टिप्पणी करते हुए यू.एस. ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने कहा है कि सत्रों में “काफी प्रगति” हुई, लेकिन वार्ता में वास्तव में आखिर क्या शामिल था, इस बारे में बहुत कम जानकारी दी। उन्होंने बस संकेत किया कि इसका ब्योरा संभवत आज की प्रेस वार्ता में सामने आ जाएगा।

जिनेवा में बोलते हुए यू.एस. व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर ने बताया कि एक समझौता हुआ है, लेकिन उन्होंने भी उसका कोई विवरण नहीं दिया। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र में स्विस राजदूत के निवास में चख्ली वार्ता के समाप्त होने के बाद उन्होंने और बेसेंट ने कुछ पल के लिए संवाददाताओं से बात तो की लेकिन सवालों के जवाब टाल गए। ग्रीर ने इतना ही कहा, “यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम कितनी जल्दी समझौते पर पहुंच गए, यह दर्शाता है कि शायद मतभेद उतने बड़े नहीं थे, जितना कि सोचा गया था।” लेकिन उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि ट्रम्प की शीर्ष प्राथमिकता का मतलब चीन के साथ अमेरिकी व्यापार घाटे को कम करना है, जो पिछले साल रिकॉर्ड 263 अरब डॉलर पर पहुंच गया था।

यू.एस. ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट और यू.एस.व्यापार प्रतिनिधि जैमीसन ग्रीर

इसके बाद व्हाइट हाउस ने “अमेरिका ने जिनेवा में चीन व्यापार समझौते की घोषणा की” शीर्षक से एक बयान जारी किया, लेकिन हैरान की बात है कि इसमें बेसेंट और ग्रीर को ही उद्धृत किया गया है। वार्ता के बाद, चीनी प्रतिनिधिमंडल ने एक प्रेस वार्ता में बताया कि ‘जो कुछ हुआ वह “स्पष्ट, गहन और रचनात्मक’ रहा। चीनी उप प्रधानमंत्री हे लिफ़ेंग ने कहा कि दोनों पक्ष व्यापार और आर्थिक मुद्दों पर आगे की चर्चा के लिए “परामर्श तंत्र स्थापित करने” पर सहमत हुए हैं।

विश्व व्यापार संगठन में चीनी राजदूत ली चेंगगांग ने कहा, “वार्ता के बारे में जारी होना वाला बयान दुनिया के लिए अच्छी खबर होगी।” दिलचस्प बात है कि वार्ता का अंतिम दौर शुरू होने से पहले ही, राष्ट्रपति ट्रंप ने सोशल मीडिया पर पोस्ट में लिखा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था को संकट में डालने वाले टैरिफ को “पूरी तरह से रीसेट” करने की दिशा में “बड़ी प्रगति” हो रही है। द वाशिंगटन पोस्ट की खबर बताती है कि बीजिंग वार्ता की दिशा के बारे में काफी हद तक अधिक संयमित दिखाई दिया। समाचार के अनुसार चीन “किसी भी प्रस्ताव को दृढ़ता से अस्वीकार करेगा जो मूल सिद्धांतों से समझौता करता है या वैश्विक समानता के व्यापक उद्देश्य को कमजोर करता है।”

वार्त पर चीनी उप प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर अमेरिका हम पर यह युद्ध थोपने पर जोर देता है, तो चीन इससे डरेगा नहीं और अंत तक लड़ेगा।” उन्होंने कहा, “हम साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हैं।” अमेरिका-चीन गतिरोध से परेशान विश्व बाजारों को स्थिर करने की दिशा में यह बातचीत एक बड़ा बदलाव ला सकती है, क्योंकि चीन से माल लेकर बंदरगाहों पर पहुंचे जहाज टैरिफ पर अंतिम आदेश मिलने तक सामान उतारने को तैयार नहीं हैं।

चीनी प्रतिनिधिमंडल ने एक प्रेस वार्ता में बताया कि ‘जो कुछ हुआ वह “स्पष्ट, गहन और रचनात्मक’ रहा

उल्लेखनीय है कि ट्रंप ने पिछले महीने चीन पर अमेरिकी टैरिफ को बढ़ाकर 145 प्रतिशत कर दिया था, और चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी आयात पर 125 प्रतिशत शुल्क लगाया था। इतने ऊंचे टैरिफ का मतलब है कि देश एक-दूसरे के उत्पादों का बहिष्कार कर रहे हैं, जिससे व्यापार बाधित हो रहा है, जो पिछले साल 660 अरब डॉलर से अधिक था।

जिनेवा में वार्ता से गैरहाजिर रहे अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने एक टेलीविजन चैनल को बताया, “सचिव बेसेन्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि उनका एक उद्देश्य तनाव कम करना है।” उन्होंने कहा कि अमेरिका और चीन दोनों ने टैरिफ लगाए हैं जो “व्यापार करने के लिए बहुत अधिक हैं, लेकिन इसीलिए वे अब बात कर रहे हैं।” हॉवर्ड ने कहा, “हम दुनिया के उपभोक्ता हैं। हर कोई अपना माल यहां बेचना चाहता है।” इसलिए उन्हें अमेरिका के साथ व्यापार करने की आवश्यकता है और हम अपनी अर्थव्यवस्था की शक्ति का उपयोग करके अपने निर्यातकों के लिए उनकी अर्थव्यवस्था को खोल रहे हैं।”

व्हाइट हाउस नेशनल इकोनॉमिक काउंसिल के निदेशक केविन हैसेट ने कहा कि ‘सबसे ज्यादा संभावना यह है कि रिश्ते फिर से पटरी पर आएंगे। लगता है कि चीनी बहुत उत्सुक हैं और वे चीजों को फिर से सामान्य बनाना चाहते हैं।” हैसेट ने कहा, “हम मूल रूप से चीनियों के साथ बिल्कुल नए सिरे से शुरुआत कर रहे हैं।”

दरअसल यह पहली बार है जब दोनों पक्ष मुद्दों पर चर्चा करने के लिए आमने-सामने मिले हैं। लेकिन किसी बड़ी सफलता की संभावना अभी भी कम ही दिखती है। टैरिफ में थोड़ी सी भी कमी-खासकर अगर एक साथ की जाए-कुछ हद तक विश्वास बहाल करने में मदद कर सकती है। एक अर्थ विशेषज्ञ का कहना है कि बढ़ते यूएस-चीन व्यापार युद्ध को कम करने के लिए बातचीत की बहुत जरूरत है यह एक सकारात्मक संकेत है कि दोनों पक्ष मनमुटाव भुलाकर आगे बढ़ने में सक्षम हुए हैं।

ट्रम्प प्रशासन ने दुनियाभर के देशों पर टैरिफ लगाए हैं, लेकिन चीन के साथ इसकी लड़ाई सबसे तीखी रही है। चीन से माल पर ट्रम्प के आयात करों में 20 प्रतिशत शुल्क शामिल है जिसका मकसद अमेरिका में सिंथेटिक ओपिओइड फेंटेनाइल के प्रवाह को रोकने के लिए बीजिंग पर अधिक दबाव डालना है। शेष 125 प्रतिशत में ट्रम्प के पिछले कार्यकाल से जुड़ा एक विवाद है, उस समय चीन पर उनके द्वारा लगाए गए टैरिफ अब के टैरिफ में शामिल होते हैं यानी कुछ चीनी चीजों की कीमत 145 प्रतिशत से भी ज्यादा हो सकती है।

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