भारत पर अपने अधिकार को अधिक सुदृढ़ करने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार हमेशा यह प्रयास करती रही कि भारतीय शिक्षण पद्धति को बदला या रोका जाए। इसका प्रमुख कारण था- ब्रिटेन में शिक्षा ‘रिलीजियस’ थी, जबकि भारत में स्वतंत्र। इस कारण ब्रिटिश संसद ने सरकार और चर्च के नियंत्रण में लाकर भारतीय शिक्षा पद्धति को ऐसा बनाने की प्रक्रिया शुरू की, जिससे भारतीयों को ईसाई बनाने में आसानी हो और उन्हें मानसिक गुलाम बनाया जा सके। इसी मंशा से ब्रिटिश संसद ने 1813 के चार्टर अधिनियम के माध्यम से भारतीय शिक्षा के लिए एक विशिष्ट नीति बनाई। इसमें भारत में शिक्षा के लिए प्रतिवर्ष एक लाख रुपये खर्च करने का प्रावधान किया गया। इस नीति का उद्देश्य अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देना था। यह ‘ड्रेन ऑफ वेल्थ’ सिद्धांत पर आधारित थी, जिसका अर्थ था कि भारत के संसाधनों का उपयोग ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के विकास के लिए किया जाना चाहिए।

शोध अधीक्षक
प्रताप गौरव शोध केंद्र, उदयपुर
1822 में मद्रास के गवर्नर थॉमस मुनरो के निर्देश पर ‘द ब्यूटीफुल ट्री : इंडिजिनस इंडियन एजुकेशन इन द एटीन्थ सेंचुरी’ के लेखक धर्मपाल ने तत्कालीन देशी शिक्षा का सर्वेक्षण किया। यह सर्वेक्षण मद्रास प्रेसिडेन्सी के 21 जिलों के कलेक्टरों की दिशानिर्देश में किया गया था। इसमें देशी स्कूलों और उच्च शिक्षण संस्थाओं के बारे में विस्तृत विवरण हैं। यह विवरण आश्चर्यचकित कर देने वाला है और दर्शाता है कि अंग्रेजों के हस्तक्षेप से पहले की भारतीय शिक्षा पद्धति अत्यंत विस्तृत और सभी के लिए सुलभ थी, न कि कुछ लोगों के लिए।
डब्ल्यू एडम (1835-1838) और जी.डब्ल्यू. लिटनर (1882) की रिपोर्टों के सार भी इस पुस्तक में दिए गए हैं। इनमें क्रमशः बंगाल और पंजाब की शिक्षा की स्थिति का विवरण है। इन सर्वेक्षणों के अनुसार अकेले मद्रास प्रसिडेंसी में करीब 1 लाख पाठशालाएं थीं, जिनमें सभी वर्गों और वर्णों के छात्रों व शिक्षकों, दोनों की सहभागिता थी। किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। कार्य की आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा दी जाती थी। फिर ऐसा क्या था कि बंगाल में राजाराम मोहन राय को नवजागरण की आवश्यकता पड़ी? यह पुस्तक उस मिथक को भी तोड़ती है कि अंग्रेजों के पहले भारत ‘अंधकार युग’ में था और बड़ी संख्या में लोगों को शिक्षा तक पहुंच से वंचित रखा गया था।
धर्मपाल की पुस्तक से यह भी पता चलता है कि उस समय तक भारत के सभी हिस्सों में प्रारंभिक और उच्च शिक्षा का स्तर अच्छा था, लेकिन अंग्रेजों ने चालाकी से अपनी शिक्षा प्रणाली से इसे बदलना शुरू किया, जिससे इसमें ह्रास आना शुरू हुआ। स्पष्ट था कि भारतीय शिक्षा पद्धति की जगह अंग्रेजी पद्धति को लागू किया गया और भारतीयों को अपनी शिक्षा से विमुख किया गया। देसी शिक्षा ग्रहण करने वालों को ‘अनपढ़’ और अंग्रेजी शिक्षा ग्रहण करने वालों को ‘शिक्षित’ कहा जाने लगा। इस कारण राजा राममोहन राय और केशव चंद्र सेन जैसी सोच के लोग भारतीय शिक्षण को पाश्चात्य शिक्षण की और ले जाने वाली वैतरणी की नाव के नाविक बन बैठे।
मैकाले चार्टर : अज्ञान का काल पत्र
मैकाले चार्टर, जिसे अंग्रेजी शिक्षा अधिनियम 1835 भी कहा जाता है, लॉर्ड मैकाले द्वारा भारत में शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के लिए प्रस्तुत एक स्मरण पत्र था। 2 फरवरी, 1835 को प्रस्तुत इस पत्र का मुख्य उद्देश्य भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी में करना और पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा देना था। मैकाले की शिक्षा नीति भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा से अलग थी, इसलिए इसमें भारतीय भाषाओं और संस्कृतियों को कम महत्व मिला। मैकाले के अनुसार, भारतीय ज्ञान परम्परा अवैज्ञानिक थी। मैकाले के प्रस्ताव ने भारत में ब्रिटिश शासन को मजबूत किया। इसके बाद 1854 में सर चार्ल्स वुड ने एक विवरण पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें भारतीय शिक्षा प्रणाली में पाश्चात्य परंपरा वाले विश्वविद्यालयों की स्थापना पर जोर दिया गया। 1882 में हंटर आयोग ने पुन: शिक्षा प्रणाली की समीक्षा के बाद कुछ सुझाव दिए, जिनमें प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया।
दरअसल, 1813 में जब ब्रिटिश संसद ने चार्टर अधिनियम के तहत भारतीयों की शिक्षा के लिए सालाना एक लाख रुपये खर्च करने की नीति बनाई, तो ईसाई मिशनरियों ने इसका विरोध किया। लिहाजा, ब्रिटिश सरकार ने वित्तीय संसाधनों में कटौती की और पक्के भवन होने जैसी कई शर्तें जोड़ दीं। इसके बाद टीबी मैकाले को इसलिए बुलाया गया कि शिक्षा पर होने वाला खर्च कैसे निकाला जाए? शिक्षा का माध्यम क्या हो और भारतीयों को शिक्षित करने का तरीका क्या हो, यह तय किया जा सके। ‘लाॅर्ड ऑफ लाॅर्ड मैकाले’ (खंड 1, पृष्ठ 164) में लिखा गया है, ‘1835 में एक नए भारत का जन्म हुआ।’ यह बात 2 फरवरी, 1835 को मैकाले द्वारा ब्रिटिश सरकार को साैंपे गए विवरण में लिखी है।
मैकाले ने भारतीयों को शिक्षित करने के लिए Downward Filtration Theory अपनाई थी। इस सिद्धांत में उच्च और मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करने का प्रस्ताव था, ताकि वे ज्ञान को नीचे के लोगों तक फैला सकें। लेकिन मैकाले के सामने समस्या यह थी कि भारतीय कई थे और अंग्रेज मुट्ठी भर। वे भारतीयों को शिक्षित करने में सक्षम नहीं थे। इस राष्ट्र को इतना कमजोर कैसे किया जाए कि वह ‘स्व’ को भूल जाए। क्या यह स्मृति लोप ब्रिटिश राज का समर्थन करेगा? इसमें मैकाले कितना सफल हुआ, इस बाबत उसने अपने विवरण में लिखा है, ‘‘हमें केवल भारतीय शिक्षित वर्गों के इतिहास पर ध्यान देने की आवश्यकता है।’’ इसके लिए अंग्रेज सरकार ने मिशनरियों द्वारा संचालित स्कूलों में जातिगत आधार पर वरीयता देना शुरू किया। इसके बाद अंग्रेजों की भूमि नीति के लालच में आकर किसान भूमिहीन हो और अपने ही खेत में मजदूरी करने लगे। इस प्रकार, अंग्रेजों ने व्यवस्थित तरीके से भारतीय प्रणाली को हतोत्साहित किया और जातिगत आधार पर लोगों को अंग्रेजी शिक्षा से भी वंचित रखा। इस तरह शिक्षा का नेतृत्व कर रहा अभिजात्य वर्ण विकृत और संस्कृतिहीन हो गया।
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