मार्क कार्नी
कनाडा में खालिस्तानियों की रहनुमाई करने वाले जस्टिन त्रूदो युग का अंत हो गया है। हालांकि चुनावों के दौरान आए नतीजों में उन्हीं की पार्टी लिबरल ने वापसी कर ली है, लेकिन प्रधानमंत्री इस बार मार्क कार्नी होंगे। 29 अप्रैल को कनाडा में आए आम चुनावों के नतीजों के दौरान कुल 343 सीटों में से 169 सीटें लिबरल पार्टी ने जीती हैं जोकि बहुमत के आंकड़े से तीन कम हैं लेकिन बावजूद इसके सरकार बनाने में कोई दिक्कत नहीं आने वाली और यही वजह है कि मार्क कार्नी कनाडा के प्रधानमंत्री बने रहेंगे। उनकी मुख्य प्रतिद्वंदद्धी पार्टी कंजर्वेटिव को सिर्फ 144 सीटें ही मिली हैं और उनकी पार्टी के नेता, जिनके नेतृत्व में यह सारा चुनाव लड़ा गया, पियरे पोइलीवर अपनी सीट भी नहीं बचा पाए।
दो महीने पहले लिबरल पार्टी के जीतने की उम्मीदें ना के बराबर थीं और प्रसिद्धि रेटिंग में लिबरल्स को सिर्फ 25 फीसद अंक मिले थे। उस वक्त कंज़र्वेटिव की सत्ता में वापसी तय मानी जा रही थी और यही वजह थी कि लिबरल पार्टी के कुछ नेताओं ने तो चुनाव तक लड़ने से साफ मना कर दिया था जिनमें से कनाडा के रक्षा मंत्री रहे हरजीत सिंह सज्जन, अनीता आनंद जैसे नेताओं के नाम तो सामने ही आ गए थे, लेकिन बाद में अनीता आनंद ने प्रसिद्धि बढ़ती देखी तो चुनाव लड़ने का फैसला किया और चुनाव जीत गईं।
ऐसा इसलिए था चूंकि कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदो के खिलाफ कनाडा की जनता गुस्से में थी। भारत से बिगड़ते रिश्तों के चलते कनाडाई हिंदुओं का विरोध, ‘सत्ता विरोधी लहर’ जैसी कई बातें थीं लेकिन त्रूदो पर जब इन सभी बातों का दबाव बढ़ा तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और तब मार्क कार्नी को लिबरल पार्टी द्वारा प्रधानमंत्री बनाया गया। कार्नी द्वारा दो महीनों में किए गए बदलावों के चलते उनके नेतृत्व में लिबरल पार्टी की लगातार चौथी बार कनाडा की सत्ता में वापसी हुई है।
कट्टर खालिस्तानी समर्थक और भारत के धुर विरोधी रहे जगमीत सिंह जहां खुद अपनी सीट से ही चुनाव हार गए। वहीं उनकी पार्टी एनडीपी का इन आम चुनावों में सूपड़ा ही साफ हो गया है। जगमीत सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ी एनडीपी पिछली बार की 25 सीटों के मुकाबले इस बार 7 सीटों पर आकर सिमट गई जिसके चलते एनडीपी की राजनीतिक मान्यता तक रद्द होने जा रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां के नियमानुसार किसी भी पार्टी के पास मान्यता के लिए 12 सांसद होने जरूरी हैं।
मार्क कार्नी इकॉनॉमिस्ट और पूर्व केंद्रीय बैंकर हैं। कार्नी को 2008 में बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर चुना गया था। कनाडा को मंदी से बाहर निकालने के लिए उन्होंने जो कदम उठाए, उसकी वजह से 2013 में बैंक ऑफ इंग्लैंड ने उन्हें गवर्नर बनने का प्रस्ताव दिया। बैंक ऑफ इंग्लैंड के 300 साल के इतिहास में वे पहले ऐसे गैर ब्रिटिश नागरिक थे, जिन्हें यह जिम्मेदारी मिली। वे 2020 तक इससे जुड़े रहे। ब्रेक्जिट के दौरान उनके फैसलों ने उन्हें ब्रिटेन में मशहूर बना दिया। इसके अलावा वह ट्रम्प के विरोधी भी हैं। कनाडा के हालातों के लिए ट्रंप को जिम्मेदार बताते हुए फरवरी में एक बहस के दौरान उन्होंने कहा था कि ट्रंप की धमकियों से देश की हालत खराब है, जिस वजह से बहुत से कनाडाई बदतर जीवन जी रहे हैं। अप्रवासियों की संख्या बढ़ने से देश के हालात और भी खराब हुए हैं। यह ब्यान उन्होंने ट्रंप की तरफ से कनाडा पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने के ऐलान के बाद दिया था।
कार्नी भारत और कनाडा के रिश्तों में आए तनाव को खत्म करना चाहते हैं। वे भारत से अच्छे रिश्तों को हिमायती रहे हैं। गत फरवरी में उन्होंने कहा था कि अगर वह कनाडा के प्रधानमंत्री बनते हैं तो भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को फिर से बहाल करेंगे। दरअसल खालिस्तान और खालिस्तानियों के मुद्दे पर भारत और कनाडा के बीच पिछले कुछ साल से राजनीतिक विवाद चल रहे हैं। कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री त्रूदो कई बार भारत विरोधी खालिस्तान आतंकियों के लिए नर्म रुख दिखा चुके हैं। इसके अलावा भारत ने उन पर देश के आंतरिक मसलों में भी दखल देने का आरोप लगाया है।
इस बार जीतने वालों में रूबी सहोता, सुख धालीवाल, मनिंदर सिंद्धू, अमनदीप सोही, सुखदीप कंग, अमरजीत गिल, अनीता आनंद, बर्दिश चग्गर, अंजू ढिल्लों, इक्विंदर सिंह, गुरबख्श सैनी, परम बैंस, जसराज हॉलन, दलविंदर गिल, अमनप्रीत गिल, अर्पण खन्ना, टिम उप्पल, परम गिल, सुखमन गिल, जगशरण सिंह, हर्ब गिल शामिल हैं। कनाडा में हुए आम चुनावों के दौरान पंजाब के मोगा के दो सांसद बने हैं जिनमें केलगरी स्काईव्यू राइडिंग से अमनप्रीत सिंह गिल जबकि एब्बॉट्सफोर्ड साउथ लेगली राइडिंग से सुखमन गिल ने चुनाव जीता है। दोनों युवा सांसद हैं और लंबे समय से कनाडा में रह रहे हैं।
कंज़र्वेटिव पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार पियरे पोइलीवर चुनाव हार गए हैं। कहा जा रहा है कि कुछ साल पूर्व कनाडा में ट्रक चालकों द्वारा बहुत बड़े स्तर पर हड़ताल की गई थी। तब कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता पीयरे ने उस हड़ताल का न सिर्फ जोरदार तरीके से समर्थन किया था बल्कि हड़ताल पर बैठे हड़तालियों को कॉफी तक खुद पिलाते दिखाई देते थे। इसके चलते लोग उनसे नाराज थे। यही वजह रही है कि वह चुनाव हार गए।
जीत के बाद कार्नी ने अपने पहले संबोधन में ही अमेरिका के साथ कनाडा से रिश्ते खत्म करने का ऐलान कर दिया। कार्नी ने कहा कि अमेरिका ने जो विश्वासघात किया है उसे कनाडा कभी नहीं भूलेगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ कनाडा का पुराना संबंध था जो एकजुटता पर टिका हुआ था लेकिन अब वह खत्म हो चुका है। अमेरिका की ग्लोबल ट्रेड पॉलिसी, जिस पर कनाडा ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद भरोसा किया और जिसकी वजह से कई साल तक कनाडा में समृद्धि रही, वह अब खत्म हो गई है।
Leave a Comment