बांग्लादेश में आए दिन ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जो अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की क्षमताओं के विषय में तो बता ही रही हैं, बल्कि साथ ही यह भी पोल खोल रही हैं कि कथित तानाशाही के विरोध में सरकार सम्हालने आए मोहम्मद यूनुस किस प्रकार की तानाशाही सरकार चला रहे हैं।
फिर चाहे वह महिलाओं की फुटबॉल टीम के साथ किया जा रहा अन्याय हो या फिर हाल ही में महिला आयोग द्वारा सुधार की अनुशंसाओं को रोकने को लेकर इस्लामिक कट्टरपंथी पार्टियों की रैली हो। मगर अब जो समाचार सामने आया है वह और भी हैरान करने वाला है। हैरान करने वाला इसलिए क्योंकि शेख हसीना के शासनकाल पर तानाशाही का आरोप इसलिए लगाया जाता था क्योंकि वे कथित रूप से प्रेस की आवाज दबाती थीं। एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा था, जो बार-बार यह आरोप लगाता रहता था कि शेख हसीना पत्रकारों की आवाज दबाती हैं और देश में जो घट रहा है, उसे बाहर नहीं आने देना चाहती हैं।
मगर अब मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार को लेकर जो रिपोर्ट आई है, उसने यह बताने का प्रयास किया है कि आखिर कौन तानाशाह है? शेख हसीना की सरकार के जाने के बाद नोबल विजेता मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार ने पत्रकारों की आजादी को दबाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी है। वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम डे 2025 के अवसर पर राइट्स एण्ड राइट्स एनालिसिस ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट Bangladesh: Press Freedom Throttled Under Dr Muhammad Yunus शीर्षक से जारी की, जिसमें यह बताया गया कि मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के अंतर्गत पत्रकारों को सुनियोजित और व्यवस्थित उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है और 640 पत्रकारों को अगस्त 2024 से लेकर मार्च 2025 तक निशाना बनाया गया है।
“An atmosphere of fear grips the journalists in Bangladesh”
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Dr Muhammad Yunus’s Interim Government in Bangladesh has attacked 640 journalists since August 2024. Rights and Risks Analysis Group (RRAG) documented these cases in its report released to mark World #PressFreedomDay pic.twitter.com/xB1O4Xl7lW— Dhaka News (@DDNews0) May 4, 2025
परंतु दुर्भाग्य यह है कि शेख हसीना के शासनकाल में अभिव्यक्ति की आजादी दबाई जाने की बात करने वाली लाबी के लिए यह खबर मायने ही नहीं रखती है, तभी पिछले आठ महीनों से इन पत्रकारों के विषय में कोई बात या चर्चा नहीं हो रही है।
इन हमलों में 182 पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किये गए हैं, 206 पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के मामले दर्ज किये गए हैं और 167 पत्रकारों को मान्यता देने से इनकार किया गया और बांग्लादेश वित्तीय इंटेलिजेंस यूनिट, बांग्लादेश सरकार की आतंकी विरोधी एवं मनी लॉन्डरिंग इकाई द्वारा 85 वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ जांच आरंभ हुई है।
क्या ये सब ऐसे मामले नहीं हैं, जिन पर बातें लगातार होनी चाहिए? और ये सभी पत्रकार 39 मीडिया हाउस से जुड़े थे। “बांग्लादेश प्रतिदिन; जातीय प्रेस क्लब; डीबीसी न्यूज; Abnews24.com; कलेर कांथा; एटीएन न्यूज़; बांग्ला इनसाइडर, बांग्लादेश प्रोटिडिन; समकाल, अमाडेर सोमॉय, बैसाखी टीवी, डेली सन, न्यूज24; जुगनटोर, स्वदेश प्रतिदिन, दैनिक मुखोपत्रो, इत्तेफाक, दैनिक कालबेला, टीवी टुडे, दैनिक अमर सोमॉय; दैनिक बांग्ला, इंडिपेंडेंट 24.tv , Somoynews.tv , ढाका टाइम्स, बांग्लादेश पोस्ट, नागोरिक टीवी, संगबाद संगस्थ, चैनल आई, डेली जनकांठा, डेली ग्लोबल टीवी, डेली जुगनटोर; डेली खोला कागोज, डेली जटिया ऑर्थोनिटी, अमाडेर सोमॉय, अमाडेर ऑर्थोनिटी, एकुशी टीवी, एकटोर टीवी, एकुशी सांगबाद और माई टीवी चैनल उन चैनलों में से हैं, जिनके 85 पत्रकार मनी लॉन्डरिंग के लिए जांच के दायरे में हैं।
इस रिपोर्ट में बताया है कि जहाँ इतने मामलों से भी सरकार संतुष्ट नहीं हुई है, तो वहीं पत्रकारों को लगातार ही भेदभाव-विरोधी छात्र आंदोलन के नेताओं की इच्छा पर नौकरी से निकाला जा रहा है। भेदभाव-विरोधी छात्र आंदोलन के ऐक्टिविस्ट्स ने न केवल स्वतंत्र दैनिक द डेली स्टार और प्रोथोम अलो पर हमला किया, बल्कि सोमॉय टीवी में भी जबरन घुस गए, जिससे मालिकों को छात्र प्रदर्शनकारियों की धमकी के कारण बिना किसी आधार के पांच पत्रकारों को नौकरी से निकालने पर मजबूर होना पड़ा।
जिन पत्रकारों ने राजनीतिक हिंसा की बात की, उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। जब नव नियुक्त कल्चरल अड्वाइज़र मुस्तफा सर्वार फारुकी से राजनीतिक हिंसा, राष्ट्रीय एकता, जनता के प्रति जबावदेही और जुलाई-अगस्त 2024 के बीच कितने लोग मारे गए, पर पत्रकारों ने प्रश्न किया तो दीप्टो टीवी के रहमान मिज़ान और एटीएन बांग्ला के फजले रब्बी को उनके पदों से बर्खास्त कर दिया गया।
आरआरएजी के निदेशक सुहास चकमा ने कहा कि प्रेस के अधिकारों पर जो चाबुक चल रहा है, वह आज तक बांग्लादेश की किसी भी सरकार में नहीं हुआ था और अभी देश के पत्रकारों के बीच डर का माहौल बना हुआ है। मोहम्मद यूनुस के बांग्लादेश में अवामी लीग के कार्यकर्ताओं के बाद पत्रकार ही सबसे ज्यादा खतरे में है।
अब इस रिपोर्ट को यूएन संस्थाओं और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विभिन्न व्यक्तियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा और विशेषकर दानदाता देशों और वित्तीय संस्थानों को, जिससे कि उचित कदम उठाए जा सकें।
यह और भी डराने वाली बात है कि इस प्रकार की रिपोर्ट की चर्चा मीडिया में शून्य के समान है।
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