यूं तो इस्लामवादी उन्मादी तत्व अपनी पाशविक करतूतों और कट्टरपंथी सोच की वजह से आज पूरे सभ्य जगत में बदनाम हो चले हैं। लेकिन वे दिमागी दिवालिएपन की भी नित नई मिसालें पेश करते रहे हैं। उनके दिमागों में ‘काफिरों’ का ऐसा खौफ बैठ चुका है कि ‘गैर मुस्लिम’ की आस्था से जुड़ी हर चीज से उन्हें खतरा मालूम देता है। बांग्लादेश में इसका ताजा उदाहरण देखने में आया है। वहां एक स्थान पर दो साल् पुराना बरगद का पेड़ था जिसे स्थानीय हिन्दू पवित्र मानकर पूजते आ रहे थे। बस इसी बात को मजहबी उन्मादियों ने ‘खौफ की वजह’ बना लिया और उस प्राचीन पेड़ को ‘शिर्क’ बताकर काट दिया। इस हरकत के पीछे जहां उनका भय वजह था वहीं स्थानीय हिन्दुओं को उकसाना और अपमानित करने की सोच भी इसकी एक बड़ी वजह बनी। स्वाभाविक ही, उस प्राचीन और पूज्य पेड़ के कटने से स्थानीय हिंदू समाज बहुत आहत महसूस कर रहा है। लेकिन मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के राज में इस्लामवादियों की यह करतूत बड़ी शान से प्रचारित की जा रही है।
साफ है कि शेख हसीना के कुर्सी के हटने के बाद से ही बांग्लादेश उन्मादी गर्त में जा रहा है। वहां मुस्लिम उन्मादी हर महकमे, समाज जीवन के हर क्षेत्र पर अपना दबदबा बना रहे हैं। वहां सरकार या समाज के स्तर पर होने वाले फैसलों को वे प्रभावित करना अपना शरियाई हक समझते हैं।
बांग्लादेश में हिन्दुओं को अपमानित, प्रताड़ित करने के कितने ही कृत्य इन मजहबी उन्मादियों ने पिछले 8 महीनों में किए हैं। प्राचीन बरगद के पेड़ को काटना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, हिन्दुओं द्वारा पूजित उस पेड़ को काटकर उनके ‘मजहब’ को भयमुक्ति का एहसास हुआ होगा। उसे क्यों काटा? मजहबी उन्मादियों ने फतवा जारी किया हुआ उस बरगद के विरुद्ध। समाचार बताते हैं कि मदारीपुर जिले में शिराखारा के आलममीर कंडी नाम के गांव की यह घटना है। यहां 200 वर्ष पुराना बरगद का पेड़ हिन्दू तीज त्योहर पर पूजने की लंबी परंपरा चली आ रही थी। कल उन्मादी आरे लेकर आए और पेड़ को देखते देखते काट डाला। काटने के बाद उसे जड़ समेत उखाड़ डाला गया। फिर जश्न मनाया गया। ‘मजहब’ पर आया ‘खतरा’ बचने का जश्न मनाया गया।
BANGLADESH 🇧🇩
This is a 200 year old banyan tree, here the minority Hindu community of Bangladesh comes and worships the tree,
That is why the Islamic terrorists of Bangladesh are cutting down this tree.
So that the Hindu community can no longer worship here.
Think about… pic.twitter.com/UgkYblFuLE
— Bapan. (@bapanbkv) May 6, 2025
‘फतवे’ पर अमल करके उसकी मुनादी की गई। सोशल मीडिया पर पेड़ के कटते हुए फोटो, वीडियो साझा किये गए। वीडियो में कुर्ता-लुंगी और गोल टोपी पहने मुस्लिम लोग खुशी खुशी बरगद के पेड़ पर आरी चलाते दिखते हैं। बेहद घना पेड़ न सिर्फ वहां छाया दे रहा था बल्कि एक सकारात्मक माहौल भी बनाए हुए था। हिन्दू परंपरा में बरगद और पीपल को पूजने का महात्म है। पर्वों पर तो इन पेड़ों की विशेष पूाज की जाती है। इसलिए भी स्थानीय मजहबी उन्मादी चिढ़े रहते थे उस पेड़ से। हिन्दू आस्था पर आरा चलाना तो शायद उनके ‘मजहब’ में पाक माना जाता है। बताते हैं हिन्दू यहां दीये जलाते थे, मन्नते मांगते थे और वे पूरी भी होती थीं। लेकिन स्थानीय मौलवियों को यह पेड़ ‘शिर्क’ लगता था, सो ‘शिर्क’ के विरुद्ध फतवा दे दिया गया। शिर्क का मतलब है ‘खुदा को किसी अन्य चीज के साथ जोड़ने की जुर्रत करना और यह इस्लाम में हराम ठहराया जाता है। फतवा जारी हुआ तो मजहबी उन्मादियों की बांछें खिल गईं, तय दिन आरा लाकर पेड़ काटकर उन्हें सुकून मिला।
गांव के हिन्दू लोग जिस पेड़ में जादुई शक्तियों का वास मानते थे, उसके कटने से कट्टर मुस्लिमों को बड़ी राहत मिली। बताते हैं गत गत 2 मई के दिन मौलवियों ने एक मीटिंग की और तय किया कि पेड़ पूजना ‘शिर्क’ में आता है। यह इस्लाम विरोधी काम है। बस, काट डालो का फरमान जारी हो गया। कई उन्मादी तो उछल—उछलकर बरगद पर कुल्हाड़ियां चला रहे थे तो कुछ आरे से उसे रेत रहे थे।
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