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धर्म की जय, अधर्म का नाश

अमेरिका के जाॅर्जिया में ‘हिंदूफोबिया’ के विरुद्ध प्रस्तुत विधेयक हमारे लिए चेतना का समय है। यह बताता है कि हम अपनी परंपराओं को अतीत की स्मृति तक सीमित न रखें, बल्कि उन्हें विश्व मंच पर तथ्य, इतिहास और आधुनिक संवादों के माध्यम से प्रस्तुत करें

by स्वामी विशालानन्द
May 2, 2025, 08:30 am IST
in विश्व, विश्लेषण, धर्म-संस्कृति
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“अहिंसा परमो धर्मः’ केवल एक सूक्ति नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। वह आत्मा, जो हजारों वर्षों से न केवल अपने राष्ट्रवासियों को, बल्कि समस्त मानवता को सहिष्णुता, करुणा और सर्वधर्म समभाव का संदेश देती आई है। आज जब दुनिया वैश्विक संघर्षों, पांथिक टकरावों और साम्प्रदायिक विद्वेष की चपेट में है, ऐसे में भारत का सनातन धर्म शांति, समरसता और सृजनात्मकता का प्रकाशस्तंभ बनकर खड़ा होता है। इसी परिप्रेक्ष्य में, अमेरिका के जॉर्जिया राज्य द्वारा ‘हिंदूफोबिया’ के विरुद्ध प्रस्तुत विधेयक एक ऐतिहासिक घटनाक्रम है। यह विधेयक केवल कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि वैश्विक पटल पर हिंदू सभ्यता और उसकी मूलभूत मान्यताओं के प्रति बदलते दृष्टिकोण का प्रतीक है।

‘हिंदूफोबिया’ के विरुद्ध विधेयक

स्वामी विशालानन्द
आध्यात्मिक समाजसेवी और जेल सुधारों के विशेषज्ञ

4 अप्रैल,2025 को जॉर्जिया अमेरिका का पहला ऐसा राज्य बना, जिसने ‘हिंदूफोबिया’ और ‘हिंदू विरोधी घृणा’ के खिलाफ विधेयक ‘सीनेट बिल 375’ प्रस्तुत किया। इस विधेयक का उद्देश्य स्पष्ट है – कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सरकारी निकायों को हिंदू विरोधी भाषण और हिंसक प्रवृत्तियों की पहचान और उन पर कार्रवाई करने का अधिकार देना।

परंतु यह विधेयक केवल एक विधिक पहल नहीं है, यह एक ‘सांस्कृतिक कूटनीति’ का संकेतक भी हो सकता है। यह विधेयक ठीक उस समय आया, जब अमेरिका ने वैश्विक व्यापार पर भारी टैरिफ लगाने का निर्णय लिया, जिससे भारत सहित अनेक देशों की अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की संभावना है।

क्या यह विधेयक अमेरिका में मौजूद भारतीय प्रवासी समुदाय, विशेषतः हिंदू समुदाय को एक सांकेतिक समर्थन देने का प्रयास है? क्या यह अमेरिकी प्रशासन का एक सॉफ्ट पॉवर संकेत है कि ‘हम तुम्हारे साथ हैं’?

सनातन परंपरा की गाथा

भारत की भूमि ने सहिष्णुता और त्याग की ऐसी मिसालें दी हैं, जो आज भी विश्व को प्रेरणा देती हैं। राजा शिवि की कथा इसका ज्वलंत उदाहरण है। महाभारत में वर्णित यह कथा हमें यह बताती है कि परोपकार और धर्मपालन किसी शासक की सबसे बड़ी पहचान होती है। जब अग्नि देव कबूतर का और इंद्रदेव बाज का रूप धारण कर राजा की परीक्षा लेने आए, तब राजा शिवि ने एक महान संकल्प लिया।

कबूतर को शरण देने के बाद, जब बाज ने अपने आहार का अधिकार जताया, तो राजा ने अपने शरीर से मांस काटकर देने का निश्चय किया। जब तराजू में कबूतर के वजन के बराबर मांस नहीं हुआ, तो अंततः राजा स्वयं तराजू में बैठ गए। यह न केवल त्याग की पराकाष्ठा थी, बल्कि यह सनातन धर्म की उस चेतना का दर्शन था, जिसमें दूसरे के प्राणों की रक्षा के लिए आत्मोत्सर्ग को भी धर्म माना गया है।

राजा शिवि की कथा केवल एक उदाहरण है। सनातन धर्म में दाधीचि ऋषि का अपनी हड्डियों का दान, राजा हरिश्चंद्र का सत्य के लिए अपना सब कुछ त्याग देना और महात्मा गांधी का अहिंसा का मार्ग अपनाना जैसे अनेक उदाहरण हैं। यह धर्म सभी प्राणियों में आत्मा की एकता को मानता है और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना को प्रोत्साहित करता है। हमारी संस्कृति हमें ही श्रेष्ठ बनने के लिए प्रेरित नहीं करती, अपितु समस्त विश्व को श्रेष्ठता की ओर लेकर जाने का उद्घोष करती है ‘कृष्णवन्तो विश्वमार्यम्’ अर्थात् सारी दुनिया को श्रेष्ठ सभ्य एवं सुसंस्कृत बनाएंगे। जिस तरह वृक्षों में बरगद श्रेष्ठ है, उसी तरह धर्मों में हिंदू धर्म श्रेष्ठ है।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर हिंदू धर्म सर्वश्रेष्ठ क्यों और कैसे है? जबकि आज समाज के अंदर हिंदू धर्म के संबंध में बहुत तरह की भ्रांतियां फैलाई गई हैं। ये भ्रांतियां सिर्फ उस व्यक्ति के मन में हैं, जिसने वेद, उपनिषद् और गीता का अध्ययन नहीं किया है और जो समाज में प्रचलित गलत धारणाओं या सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास करता है। यह भी कि जो स्थानीय परंपरा को ही हिंदू धर्म का हिस्सा मान बैठा है।

हम उन भ्रांतियों की निष्पत्ति की बात नहीं करेंगे, बल्कि यह बताएंगे कि क्यों हिंदू धर्म सर्वश्रेष्ठ है। जिसके अंदर इस सृष्टि में निवास करने वाले तुच्छ जीव पर भी दया की भावना सिखाई जाती है, यहां तक कि चीटियों व पक्षियों तक को दाना-पानी डालने का संस्कार हमारे बाल मन पर ही अंकित कर दिया जाता है, वह हिंदू हिंसक कैसे हो सकता है?

सनातन धर्म न किसी ‘इज्म’ में बंद है, न किसी एक किताब का बंदी है। यह अनुभव, विवेक और सह-अस्तित्व का दर्शन है। यही कारण है कि भारत में न केवल 33 कोटि देवताओं को पूजा जाता है, बल्कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा लाई गईं अनेक परंपराएं भी आज भारत की संस्कृति में समाहित हो चुकी हैं।

स्काॅटलैंड की संसद में भी प्रस्ताव पेश

जॉर्जिया के बाद स्कॉटलैंड की संसद में भी ‘हिंदूफोबिया’ के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि स्कॉटलैंड में हिंदू समाज भेदभाव व सांस्कृतिक असहिष्णुता झेल रहे हैं। Motion S6M-17089 नामक इस प्रस्ताव को एडिनरबरा ईस्टर्न की सांसद और अल्बा पार्टी की नेता ऐश रीगन ने पेश किया।

गांधीवादी शांति समाज (जीपीएस) की रिपोर्ट पर आधारित इस प्रस्ताव का शीर्षक है-Hinduphobia in Scotland: Understanding, Addressing, and Overcoming Prejudice यानी हिंदूफोबिया को समझना, उसका समाधान खोजना और उसे खत्म करना। इसका उद्देश्य स्कॉटलैंड में हिंदुओं के साथ हो रहे भेदभाव, नफरत और समाज में उनकी अनदेखी के विरुद्ध आवाज उठाना है।

रिपोर्ट में मंदिरों पर हमले व तोड़फोड़, कार्यस्थल पर हिंदू कर्मचारियों से भेदभाव, हिंदू त्योहारों व परंपराओं का उपहास, स्कूलों व सार्वजनिक जीवन में सांस्कृतिक अनदेखी और शारीरिक या मानसिक हमले शामिल हैं। यह रिपोर्ट स्कॉटलैंड में रह रहे लगभग 30,000 हिंदुओं की आपबीती है।

जब यह धर्म कहता है ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, तो वह केवल एक भावुक वाक्य नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन दृष्टि है। दुर्भाग्य से, पश्चिमी दुनिया के अनेक शिक्षण संस्थान और मीडिया हाउसों ने हिंदुत्व और हिंदू धर्म के विरुद्ध एक पूर्वाग्रही दृष्टिकोण अपनाया है। कभी हिंदू देवी-देवताओं की अवमानना, कभी मंदिरों पर हमले, कभी धर्मशास्त्रों का विकृत अनुवाद– यह सब हिंदूफोबिया के आधुनिक रूप हैं।

ऐतिहासिक रूप से यह धर्म सबसे अधिक आत्ममंथन और सुधार को अपनाने वाला रहा है। ऐसे में जॉर्जिया राज्य में जो विधेयक लाया गया है, वह अमेरिका के नीति निर्धारकों की बदलती चेतना का संकेत हो सकता है। वे समझ रहे हैं कि भारत की सांस्कृतिक शक्ति केवल बॉलीवुड या तकनीक तक सीमित नहीं है। यह आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शक्ति का प्रवाह है, जो विश्व को संतुलन प्रदान कर सकता है।

जॉर्जिया राज्य का यह विधेयक एक ‘आरंभ’ है। यह हमारे लिए चेतना का समय है कि हम अपनी परंपराओं को केवल अतीत की स्मृति के रूप में न रखें, बल्कि उन्हें विश्व मंच पर तथ्य, इतिहास और आधुनिक संवादों के माध्यम से प्रस्तुत करें।

हिंदू धर्म को रक्षा की नहीं, प्रस्तुति की आवश्यकता है। हमें इतिहास से कहानियां निकालनी होंगी, जैसे राजा शिवि की कथा और वर्तमान संदर्भों में उन्हें सार्थक बनाना होगा।

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