बांग्लादेश के कट्टर इस्लामी तत्व एक बार फिर हिंदुओं पर हमलावर हुए हैं। हर उस इलाके में गाहे—बगाहे तनाव पैदा करने की कोशिशें कर रहे हैं जहां हिन्दू बसे हुए हैं। एक दिन ऐसा नहीं जाता जब उस इलाके के हिन्दू चैन की नींद ले पाते हों। रातोंरात कोई नया उपद्रव खड़ा होने की आशंका उन्हें घेरे रहती है। उनके बाल—बच्चों का स्कूल जाना, खेलना—कूदना, महिलाओं का बेपरवाह होकर बाजार जाना अब भी दूभर बना हुआ है। कट्टर मजहबियों ने हिन्दुओं के विरुद्ध ताजा तनाव मैमनसिंह जिले में पैदा किया है। वहां बन रहे एक मंदिर और प्राचीन श्मशान पर गाज गिरी है। मंदिर के स्तम्भ तोड़ डाले गए हैं और श्मशान को भी नेस्तोनाबूद करने की तैयारी है। स्थानीय हिन्दुओं ने एकजुट होकर इसका विरोध तो किया है और प्रशासन की तरफ से लीपापोती की गई है, लेकिन लगता नहीं कि वहां स्थिति में कोई सुधार होगा। कारण, वहां एक ‘एनीमल मार्केट’ बनाने की बात चल रही है।
प्राप्त समाचारों के अनुसार, मैमनसिंह जिले के उचाखिला यूनियन में गत 27 अप्रैल को स्थानीय हिंदुओं ने जबरदस्त प्रदर्शन किया। वहां समाज मिलकर एक मंदिर बना रहा था। लेकिन प्रशासन ने गुपचुप में हमला करके मंदिर में तोड़फोड़ कर दी। वहीं स्थित दो सौ वर्ष पुराने श्मशान स्थल को हटाकर ‘एनीमल मार्केट’ बनाने की भी कोशिश की जा रही है।
स्थानीय हिन्दुओं ने प्रदर्शन के दौरान आरोप लगाया कि ईश्वरगंज उपजिले के निर्बाही अधिकारी मोहम्मद इर्शादुल अहमद मंदिर और श्मशान को जमींदाज करने की कसमें खाए बैठा है। उसने इसे नाक का सवाल बना लिया है और किसी न किसी बहाने उन्हें गिराकर ही मानेगा। वह चाहता है कि वहां ‘एनीमल मार्केट’ बनाई जाए।
ईश्वरगंज के हिंदू नेता पिंटू चौधरी का कहना है कि उचाखिला स्थित श्मशान दो सौ वर्ष पहले से यहां है। पास ही एक मंदिर बनाया जा रहा है। चौधरी के अनुसार, इर्शादुल ने 26 अप्रैल को मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया था। उसी ने श्मशान को वहां से अन्यत्र ले जाने का भी फरमान दिया था। हिन्दुओं का कहना है कि श्मशान तथा मंदिर उनकी आस्था के प्रतीक हैं, इनको हटाने का अर्थ आस्था पर कुठाराघात करना है इसलिए प्रशासन को अपने फैसले को बदलना होगा। इन्हें किसी कीमत पर हटाया नहीं जा सकता है। लेकिन मंदिर और श्मशान पर मजहबी कुठाराघात किया गया है। मंदिर के स्तम्भ गिराए गए हैं। हिन्दू आक्रोशित हैं।
वहीं के रहने वाले परेश साहा का कहना है कि इस्लामी तत्व हिंदुओं को उस इलाके से पलायन करने को मजबूर कर रहे हैं, उन्हें धमकियां दे रहे हैं। देश की सरकार हिन्दुओं के पक्ष में कभी कोई कार्रवाई करती ही नहीं है इसलिए इस मामले पर भी कोई ध्यान नहीं दे रही है। परेश का आरोप है कि श्मशान की जगह पर पशुओं का बाजार बनाने का काम शुरू भी कर दिया गया है। वहां रेत भरी जा रही है।
बांग्लादेश पूजा उद्यापन फ्रंट के सचिव बिजोय मित्रा शुवो भी पूरे मामले से आहत हैं। उनका कहना है कि हिन्दू समाज ने पहले ही प्रशासन को आगाह किया था कि यह तोड़फोड़ न की जाए। लेकिन इस अपील को अनसुना करके प्रशासन ने कोई दखल नहीं दिया। मोहम्मद इर्शादुल अहमद को जब मंदिर को तोड़ने की हरकत के बारे में बताया गया तो उसने भी अनजान बनने की कोशिश की। उसने लापरवाही भरे अंदाज में कहा कि ‘मंदिर के खंभे अनजाने में तोड़ दिए गए ऐसी मंशा नहीं थी।’
इस्लामवादी प्रशासन की हिन्दू विरोधी शैतानी को रफादफा करने में मजहबी जमातें एकजुट हो गई हैं। कट्टी मजहबी जमातें ऐसी हिन्दू विरोधी हरकतों को यूं भी तूल पकड़ने नहीं देतीं। ईश्वरगंज की जमात ‘इस्लामी आंदोलन’ भी इसी प्रयास में जुटी हुई है। 28 अप्रैल को इस जमात ने पत्रकार वार्ता आयोजित करके मंदिर तोड़ने और श्मशान को हटाने की घटनाओं को फर्जी बताया। कुछ दिन पहले असद नूर नामक मानवाधिकार कार्यकर्ता तथा बांग्लादेश से निर्वासित ब्लॉगर ने बताया था कि हिन्दुओं को जबरन जमात-ए-इस्लामी से जुड़ने के लिए धमकाया जा रहा है।
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