नई दिल्ली । छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में और तेलंगाना सीमा पर चल रहे देश के अब तक के सबसे बड़े नक्सल विरोधी अभियान ‘ऑपरेशन कगार’ ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। लगभग 10,000 सुरक्षाबलों की चक्रव्यूह जैसी घेराबंदी से नक्सली बुरी तरह घबरा गए हैं।
इसी घबराहट के चलते जी नक्सली बरसों से निर्दोष वनवासियों और सुरक्षाबलों का खून बहाते रहे, अब अपने लाल आतंक की जड़ें उखड़ती देखकर उस “संविधान” की दुहाई देने लगे हैं, जिसे उन्होंने कभी स्वीकार ही नहीं किया था।
बता दें नक्सलियों की केंद्रीय कमेटी ने केंद्र और राज्य सरकारों के नाम एक के बाद एक नया पर्चा जारी जारी कर रहे हैं, इन पर्चों में बिना शर्त युद्धविराम और शांति वार्ता की गुहार लगाई गई है। नक्सलियों द्वारा जारी किए गए पर्चे में दावा किया गया है कि “ऑपरेशन कगार” के तहत सैकड़ों नक्सलियों और निर्दोष वनवासियों की हत्याएं हुई हैं।
लेकिन असलियत में लाल आतंकियों का यह आरोप खोखला भर है। जबकी सच्चाई यह है कि सुरक्षाबलों ने अपने नक्सल विरोधी अभियानों से वनवासी जनता को नक्सली आतंक से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया है।
बरहाल जो नक्सली संगठन कल तक बंदूक के बल पर सत्ता और क्षेत्र कब्जाने का सपना देखते थे, आज ‘ऑपरेशन कगार’ से अपनी खिसकती जमीन और बिखरते संगठन को बचाने के लिए शांति और संवैधानिक अधिकारों की बातें कर रहे हैं।
जारी किए गए पर्चे में युद्धविराम की मांग करते हुए नक्सलियों ने यह भी स्वीकार किया कि उनके पीएलजीए बलों ने भी हथियार डाल दिए हैं।
बता दें कि सुरक्षाबलों के इस ऑपरेशन से नक्सली बुरी तरह टूट गए हैं, विशेषकर झारखंड के बोकारो में केंद्रीय कमेटी के शीर्ष नेता “कामरेड विवेक” समेत कई अन्य बड़े नक्सली नेताओं के मारे जाने के बाद नक्सलियों का मनोबल पूरी तरह टूट चुका है। अब डर और हताशा में वे सरकार से गिड़गिड़ा रहे हैं कि “ऑपरेशन कगार” को रोका जाए और बातचीत का रास्ता अपनाया जाए।
मौजूदा स्थिति की बात करें तो फिलहाल छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड और मध्यप्रदेश में नक्सलियों के उपर सुरक्षाबलों का अभूतपूर्व दबदबा बना हुआ है। कर्रेगुट्टा इलाके की नाकेबंदी कर नक्सलियों के गढ़ को चारों ओर से घेरा जा चुका है। कई महत्वपूर्ण नक्सली ठिकानों का सफाया किया जा चुका है जिसके चलते अब उनके नेता या तो ढेर हो रहे हैं या आत्मसमर्पण की गुहार लगा रहे हैं।
बरहाल नक्सलियों के इस अचानक ‘शांति प्रस्ताव’ को उनकी “रणनीतिक हार” के रूप में देखा जा रहा है रहे हैं। वर्षों से संविधान को ठुकराकर हिंसा का मार्ग अपनाने वाले नक्सली अब अपनी मौत सामने देखकर उसी संविधान का सहारा लेने को मजबूर हो गए हैं। लेकिन देश की सरकार और सुरक्षाबल इस बार ठान चुके हैं — नक्सलवाद को जड़ से खत्म करके ही दम लेंगे।
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