पंजाब

पंजाब में किसान आंदोलनों में फूट: नेताओं पर भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े के गंभीर आरोप

पंजाब के किसान आंदोलनों में आपसी मतभेद उजागर, नेताओं पर लंगर की रसद बेचने, उगाही के पैसे का हिसाब न देने और फर्जी भूख हड़ताल के आरोप। जानें डल्लेवाल और भाकियू सिद्धूपुर विवाद की पूरी कहानी।

Published by
राकेश सैन

किसान आंदोलनों के नाम पर पिछले कुछ दशकों से पंजाब में उत्पात मचा रहे लोगों में फूट पड़ गई है। फूट के चलते यह लोग अब एक दूसरे की पोल खोल रहे हैं। इन आंदोलनों का हिस्सा रहे एक नेता ने तो यहां तक कह दिया है कि आंदोलनों में जितना पैसा खर्च हुआ उससे तो किसानों का सारा कर्जा ही उतर जाना था। किसान नेताओं ने लंगर की रसद बाजार में बेचने व किसान नेता डल्लेवाल की चली 125 दिनों की भूख हड़ताल को भी फर्जी बताया है।

तीन खेती कानूनों को लेकर एक साल से ज्यादा समय तक चले आंदोलन में देश-विदेश से आए दान गर्मा गर्मी का माहौल है। किसान संगठनों में उठे मतभेद के बाद अब न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग को लेकर शंभू और खन्नौरी में चले आंदोलन में भी उसी तरह के आरोपों का दोहराव हो रहा है। बड़ी बात यह है कि लंगर की रसद को बेचने और लोगों से की गई उगाही के पैसे का हिसाब न मिलने जैसे आरोप बाहर से नहीं लग रहे, बल्कि भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के नेता ही आपस में लगा रहे हैं, जिनके प्रधान जगजीत सिंह डल्लेवाल 125 दिनों से ज्यादा अनशन पर बैठे रहे। यहां तक कि उनके अनशन पर बैठने पर भी किसान नेता ने सवाल उठाए हैं।

हालांकि, इन आरोपों को डल्लेवाल ने भी खुलकर जवाब दिया है और कहा कि आंदोलन को लेकर रिव्यू बैठक जल्द ही की जा रही है, जिसमें इस तरह के आरोपों को लेकर भी चर्चा की जाएगी। काबिले गौर है कि भाकियू सिद्धूपुर के नेता इन्द्रजीत सिंह कोटबुढ्ढा ने आरोप लगाए हैं कि आंदोलन को चलाने के लिए जितने पैसे की उगाही हुई है उसका कोई हिसाब नहीं दिया जा रहा है। जितना पैसा एकत्रित हुआ है, उतना पैसा तो किसानों का कर्ज उतारने में खर्च किया जाता तो किसानों का कर्ज उतर सकता था।

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि लंगर चलाने के लिए जो भी रसद किसानों को मिलती रही है वह भी बेची जाती रही है चाहे वह दूध हो या गेहूं। इन आरोपों को लेकर जवाबदेही तय होनी चाहिए। एसकेएम के ही एक अन्य नेता जंगवीर सिंह चौहान ने तो जगजीत सिंह डल्लेवाल के 125 दिनों तक बिना कुछ खाए पीए रहने को लेकर ही सवाल उठा दिए हैं। उनका कहना है कि इतने दिनों तक भूखे रहने से विज्ञान भी हैरान है। ज्ञात रहे कि विदेश से आए फंडों का हिसाब किताब न देने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। देश के किसानों को अब फर्जी किसानों के संगठनों से सचेत हो जाना चाहिए।

Share
Leave a Comment