प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नेशनल हेराल्ड से जुड़े एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में कांग्रेस सांसद सोनिया गांधी और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया है। इसमें सैम पित्रोदा और सुमन दुबे के नाम भी शामिल हैं। इस मामले से बौखलाई कांग्रेस यह झूठ फैलाने में जुटी है कि ईडी सरकार के दबाव में काम कर रहा है। उनके नेताओं को राजनीति के चलते फंसाया जा रहा है जबकि वास्तविकता यह है कि यह मामला कांग्रेस के कार्यकाल के दौरान ही दर्ज किया गया था।
ईडी ने दिल्ली, मुंबई और लखनऊ स्थित एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (नेशनल हेराल्ड) की लगभग 661 करोड़ रु. की संपत्ति पर कब्जा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कार्रवाई मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 5 (1) के अंतर्गत की जा रही है। नेशनल हेराल्ड की संपत्ति पर चस्पां किए गए नोटिस में स्पष्ट रूप से लिख दिया गया है कि यह संपत्ति अवैध रूप से अर्जित संपत्ति की श्रेणी में आती है।
क्या है मामला, कैसे हुआ घोटाला
इस घोटाले में हवाला रैकेट है, फर्जी कंपनियां हैं, आंकड़ों की हेराफेरी है और ताक पर धर दिए गए नियम-कानून हैं। जवाहर लाल नेहरू ने 1938 में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई थी, जिसमें कांग्रेस के कई नेताओं को शामिल किया गया था। इसके तहत तीन अखबारों, हिंदी में ‘नवजीवन’, उर्दू में ‘कौमी आवाज’ और अंग्रेजी में ‘नेशनल हेराल्ड’ का प्रकाशन शुरू हुआ। कंपनी को कई अंशधारकों की हिस्सेदारी और आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को जनता से मिले चंदे से खड़ा किया गया था, जिसमें 5,000 स्वतंत्रता सेनानियों को कंपनी का शेयरधारक बनाया गया। कंपनी को दशकों तक सरकारी जमीन उपहार स्वरूप दी गई। पर अखबार की प्रकाशक कंपनी को बाद में हजारों करोड़ रुपए की रियल एस्टेट कंपनी में बदल दिया गया और इसे कौड़ियों के दाम सोनिया और राहुल को सौंप दिया गया।
बता दें कि 2008 में बंद होने से पूर्व तक एसोसिएटेड जर्नल्स तीनों अखबारों का प्रकाशन करती रही। 2 अप्रैल, 2008 को यह फैसला लिया गया कि अखबार केवल वेब पर चलेगा, तब एसोसिएटेड जर्नल्स रियल एस्टेट कंपनी बन गई। दिल्ली, चंडीगढ़, लखनऊ, भोपाल, इंदौर और मुंबई में अखबार के नाम पर ली गई सरकारी जमीन पर शॉपिंग मॉल और भव्य इमारतें बना कर कंपनी रियल एस्टेट का कारोबार करने लगी। दिल्ली के बहादुरशाह जफर मार्ग पर हेराल्ड हाउस इमारत से ही कई कार्यालय संचालित होने लगे, हर कार्यालय का किराया लाखों रुपये था। इधर, मुनाफा आ रहा था, उधर कंपनी को घाटे में दिखाया जा रहा था। कंपनी पर 90 करोड़ रु. का कर्ज भी था।
संप्रग-2 के कार्यकाल में एसोसिएटेड जर्नल्स को हड़पने के लिए 23 नवंबर, 2010 को 5 लाख रुपए की पूंजी से एक नई कंपनी बनाई गई, जिसका नाम रखा गया- यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड। कंपनी में सोनिया, राहुल और उनके करीबियों ने 5 लाख रुपये की पूंजी लगाई थी। इसे चैरिटेबल कंपनी यानी लाभरहित कंपनी के तौर पर पंजीकृत किया गया, जिसके 76 प्रतिशत शेयर मां-बेटे यानी सोनिया-राहुल के पास थे और बाकी परिवार के दो शुभचिंतकों-मोतीलाल वोरा (12 प्रतिशत) और ऑस्कर फर्नांडीस (12 प्रतिशत) के पास थे (दोनों ही अब इस दुनिया में नहीं हैं)। इस लिहाज से यह गांधी परिवार की जेबी कंपनी हुई।
3 महीने बाद 26 फरवरी, 2011 को कांग्रेस ने इस कंपनी को बिना ब्याज के 90 करोड़ रुपए का कर्ज दिया, जबकि नियमानुसार कोई राजनीतिक दल किसी को कर्ज नहीं दे सकता। इस 90 करोड़ रुपए के कर्ज से (यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से) मां-बेटे ने 2,000 करोड़ रुपए की स्वामित्व वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स को अधिग्रहीत कर लिया। इसके बाद यंग इंडियन प्रा. लि. ने 90 करोड़ रुपए में से 50 लाख रुपये कांग्रेस पार्टी को लौटा दिए। बची हुई 89 करोड़ 50 लाख रुपये की राशि कांग्रेस ने ‘माफ’ कर दी।
ऐसे हुआ खुलासा
2010 के बाद कांग्रेस नेताओं (सोनिया गांधी, राहुल गांधी आदि) की कंपनी यंग इंडियन द्वारा एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को अधिग्रहित किए जाने पर सवाल उठने लगे क्योंकि यह संपत्ति अब एक गैर-लाभकारी कंपनी के माध्यम से एक निजी नियंत्रण में आ गई थी। इस षड्यंत्र की गंध राजनैतिक गलियारों में फैलने लगी थी। इसी बीच वर्ष 2012 में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने संप्रग-2 सरकार के कार्यकाल में ही दिल्ली की पटियाला हाउस न्यायालय के समक्ष एक निजी याचिका दायर करके यह आरोप लगाया कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी कांग्रेस के कुछ नेताओं के साथ मिलकर आपराधिक षड्यंत्र के तहत एक कंपनी यंग इंडियन के नाम से बनाकर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (नेशनल हेराल्ड) की संपत्ति को गैरकानूनी तरीके से हड़प रहे हैं।
स्वामी ने यह तर्क भी या कि एक राजनीतिक पार्टी के लिए वाणिज्यिक उद्देश्य के लिए धन उधार देना असंवैधानिक है, जैसा कि 1951 के ‘प्रतिनिधित्व अधिनियम’ और 1961 के ‘आयकर अधिनियम’ के अनुसार है, और उन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग की। स्वामी का बयान दर्ज होने के बाद महानगर दंडाधिकारी न्यायालय ने जून 2014 में इस मामले का संज्ञान लेते हुए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को 7 अगस्त को न्यायालय के समक्ष उपस्थित होने का समन जारी कर दिया।
जमानत पर हैं आरोपी
उस समन को दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी द्वारा विचारण न्यायालय के समन को रद्द करने के लिए दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। तब न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि इस मामले में गंभीर आरोप हैं, जिनमें धोखाधड़ी और आपराधिक मंशा के संकेत हैं, इसलिए इन आरोपों की विधिवत जांच आवश्यक है।
एक राजनीतिक दल द्वारा किसी कंपनी को ऋ ण दिए जाने के मामले को भी न्यायालय ने गंभीरता से लिया और यह टिप्पणी की कि राजनीतिक दल सार्वजनिक संसाधनों का इस तरह निजी फायदे के लिए दुरुपयोग नहीं कर सकते। उसके बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी न्यायालय में 19 दिसंबर, 2015 को व्यक्तिगत रूप से पेश हुए और सुनवाई के दौरान न्यायालय ने दोनों को 50,000 रु. के निजी मुचलके पर जमानत दी थी। तब से दोनों जमानत पर बाहर हैं। ईडी मामले की जांच में जुटी हुआ है।
ईडी ने 2014 में शुरू की थी जांच
प्रवर्तन निदेशालय ने वर्ष 2014 में दिल्ली के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश पर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड और यंग इंडियन के खिलाफ पीएमएलए के तहत जांच शुरू की थी। 2016 में प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में एक ECIR (Enforcement Case Information Report) दर्ज की जो कि मनी लॉन्ड्रिंग के लिए एफआईआर करने जैसी ही होती है।
प्रवर्तन निदेशालय का कहना था कि यंग इंडियन को एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की 90 करोड़ रुपये की देनदारी केवल 50 लाख रुपए में ट्रांसफर की गई जिसके बदले में यंग इंडियन को एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की सैकड़ों करोड़ की संपत्ति का अधिकार मिल गया, जो कि मनी लॉन्ड्रिंग की श्रेणी में आता है और यह लेनदेन फर्जी कंपनियों और फर्जी निदेशकों के जरिए किया गया। ईडी ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की जमीन, इमारतों और किराए से हो रही आय के स्रोतों की जांच की।
जांच के दौरान राहुल गांधी, सोनिया गांधी सहित यंग इंडियन के अन्य निदेशकों से भी कई दौर की पूछताछ हुई थी। 15 अप्रैल, 2025 को विधिवत जांच के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के अंतर्गत गांधी परिवार द्वारा नेशनल हेराल्ड की संपत्ति पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के विरुद्ध कब्जे की नीयत के चलते ही आरोप पत्र दायर किया है। कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ भी आरोप पत्र दायर हुआ है। प्रवर्तन निदेशालय ने सोनिया गांधी (पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष) को मुख्य आरोपी बनाया है।
राहुल गांधी (वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता) सहित कांग्रेस से जुड़े सुमन दुबे, सैम पित्रोदा और डोटेक्स मर्चेंडाइज प्राइवेट लिमिटेड के सुनील भंडारी भी आरोपी बनाए गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने धारा 4 के तहत सजा की मांग की है, जिसमें अधिकतम 7 साल की सज़ा हो सकती है। आरोप पत्र में 2017 की इनकम टैक्स असेसमेंट रिपोर्ट के हवाले से प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप लगाया है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड और यंग इंडियन के प्रमुख अधिकारियों ने मिलकर यह आपराधिक साजिश रची। इस साजिश का मकसद था कि एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की लगभग 2,000 करोड़ की संपत्ति पर कब्जा किया जाए।
झूठा विमर्श खड़ा करने का प्रयास
इस मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी समेत जब कई लोग फंस रहे हैं तो कांग्रेस प्रवर्तन निदेशालय के कदम को लोकतंत्र, विपक्ष की आवाज दबाने का प्रयास बता रही है। कांग्रेस इसके खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। एक प्रकार से यह दबाव बनाने की कोशिश है। जबकि न्यायालय के आदेश के बाद ही विधिवत जांच करने के बाद आरोप पत्र दायर किया गया है। पूरा मामला न्यायालय की निगरानी में है। इस मामले में ईडी पर सरकार के दबाव में काम करने का आरोप लगाकर सहानुभूति पाने की कोशिश कर रही कांग्रेस शायद यह भूल गई है कि इस घोटाले की शिकायत यूपीए सरकार के कार्यकाल में दर्ज हुई थी।
न्यायालय के आदेश पर सबकुछ कानून के अनुसार ही हो रहा है।
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