अगले साल 2026 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा के चुनाव कई मायनों में पिछले चुनावों से अलग होने जा रहा हैं। इस चुनाव में सभी दलों की अपनी अलग-अलग प्राथमिकताएं होंगी। जहाँ ममता बनर्जी सत्ता में चौथी बार वापसी का प्रयास करेंगी वहीं भाजपा पश्चिम बंगाल में सत्ता में पहली बार आने के लिए चुनाव लड़ेगी। मगर इन दोनों दलों के अलावे कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट दलों की चुनावी प्राथमिकताएं काफी अलग होंगी। वो खुद जीतने के बजाय अन्य दलों की जीत हार को तय करने के लिए होगी।
पश्चिम बंगाल में अगले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की तरह ही कांग्रेस पार्टी का ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन की कोई संभावना नहीं है। ममता बनर्जी यह नहीं चाहती कि कांग्रेस पार्टी या कम्युनिस्ट पार्टियां उनके राज्य में मजबूत हो, क्योंकि ये दल उनके मुस्लिम मतदाता वर्ग को अपने पाले में करने का प्रयास कर सकती है। कांग्रेस पार्टी को राज्य में समूल नाश करना ममता बनर्जी का पहला प्रयास है। इसी कारण सागरदिघी विधानसभा सीट से उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी से जीते बायरन बिस्वास को ममता बनर्जी ने बिना देरी किये अपने पार्टी में शामिल करवा लिया और कांग्रेस पार्टी को विधानसभा में फिर से शून्य पर पहुंचा दिया।
कांग्रेस पार्टी मुर्शिदाबाद जिले के सागरदिघी विधानसभा सीट से उपचुनाव जीतकर पश्चिम बंगाल विधानसभा में अपना खाता अवश्य खोलने में कामयाब रही थी। मगर कांग्रेस के विधायक बायरन बिस्वास को अपने पार्टी में शामिल करवाकर ममता बनर्जी कांग्रेस पार्टी को शून्य पर लाकर खड़ा कर दिया। कांग्रेस पार्टी इस अवसाद से नहीं निकल पा रही है। अगर बायरन बिस्वास में होते तो सिर्फ चार राज्य ऐसे होते, जहाँ कांग्रेस पार्टी के एक भी विधायक नहीं हैं। पश्चिम बंगाल उन पांच राज्यों में सबसे बड़ा राज्य है, जहाँ कांग्रेस पार्टी का एक भी विधायक नहीं है। कांग्रेस पार्टी का एक बड़ा लक्ष्य पश्चिम बंगाल के विधानसभा में अपना खाता खोलकर ऐसे राज्यों की संख्या को कम करना है, जहाँ कांग्रेस पार्टी का एक भी विधायक नहीं है।
अतएव कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पहला निशाना ममता बनर्जी ही होगी। जैसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने आम आदमी पार्टी से दूरी बनाया वैसे ही पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ममता बनर्जी से दूरी बनाकर राजनीति करेगी। कांग्रेस पार्टी के लिए पश्चिम बंगाल एक दुःस्वप्न की तरह हैं। 2016 के विधानसभा चुनाव में 44 सीट जीतकर मुख्य विपक्षी दल बनाने वाली कांग्रेस पार्टी 2021 के विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी।
कांग्रेस पार्टी का एक प्रयास होगा कि ममता बनर्जी के राजनीतिक कद को छोटा किया जाए। ममता बनर्जी का भाजपा विरोधी इंडि गठबंधन खेमे में कद दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है। अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में हारने के बाद अब ममता बनर्जी एकमात्र इंडि गठबंधन की अघोषित नेत्री बन गई हैं। अब इंडि गठबंधन के दल जैसे आप, राजद सहित कई अन्य दल गठबंधन का नेतृत्व ममता बनर्जी को सौंपने की मांग खुले या दबी जुबान से करने लगे हैं।
साथ ही ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी के जले पर नमक तब छिड़क कर जख्म तो ताजा कर दिया, जब उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपना स्पष्ट समर्थन आप को किया। हालांकि, कांग्रेस पार्टी आप के दिल्ली में हार के कारण इस तथ्य से अवश्य खुश है कि इन दलों के समर्थन के बावजूद भी आप चुनाव हार गई है।
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पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की हालत दयनीय
कांग्रेस पार्टी की पश्चिम बंगाल में स्थिति काफी दयनीय है। 2021 के विधानसभा चुनाव में संयुक्त मोर्चा के तहत कम्युनिस्ट दलों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ते हुए 92 सीटों पर चुनाव लड़कर 79 सीटों पर अपनी जमानत जब्त करवा लिया था। जहाँ 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने दो लोकसभा की सीट जीतने के साथ 14 विधानसभा की सीटों पर बढ़त बनाया था, वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी सिर्फ एक ही सीट जीत सकी और महज 10 विधानसभा की सीटों पर बढ़त बनाने में कामयाब रही थी।
2024 के लोकसभा चुनाव में एक मुद्दे पर ममता बनर्जी और गांधी परिवार एकमत अवश्य थे। दोनों परिवारों के निशाने पर अधीर रंजन चौधरी थे। गाँधी परिवार राहुल गाँधी को बड़ी भूमिका देने के लिए अधीर रंजन चौधरी को चुनाव हरवाना चाहता था। वहीं ममता बनर्जी अपने पुराने राजनितिक प्रतिद्वंदिता के कारण अधीर रंजन चौधरी को हराना चाहती थीं। इसी कारण ममता बनर्जी ने गुजरात से क्रिकेटर युसूफ पठान को अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ बहरामपुर से चुनाव लड़वाकर अपना यह लक्ष्य पूरा किया। अगर अधीर रंजन चौधरी लोकसभा का चुनाव जीत जाते तो उन्हें विपक्ष के नेता की कुर्सी सौंपने की नैतिक जिम्मेदारी कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार की होती।
राहुल गांधी इस लक्ष्य के साथ भी पश्चिम बंगाल में उतरेंगे की अगर ममता बनर्जी को चुनाव हरवा दिया जाता हैं तो वो भाजपा विरोधी खेमे में सबसे प्रमुख चेहरा होंगे और इंडि गठबंधन की कमान ममता बनर्जी को सौंपने की मांग अन्य दल करना बंद कर देंगे।
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