मुगल आक्रांता औरंगजेब को दफन हुए सैकड़ों साल बीत चुके हैं। उसकी संतानें भी दफन हो चुकी हैं, लेकिन वो सोच आज भी जिंदा है। उस सोच से संचालित हो रहे नफरती ऐसे हैं कि वो उस सच को स्वीकारना तो दूर की बात है, उसे सुनना भी पसंद नहीं करते हैं कि औरंगजेब एक आक्रांता था। उसने भारत में न केवल हिन्दुओं का नरसंहार किया, बल्कि हिन्दू अस्मिता के प्रतीक देश के मंदिरों को सबसे अधिक नष्ट किया। औरंगजेब के अत्याचारों के इतिहास में कई सबूत हैं। वाराणसी गजेटियर में भी उसका उल्लेख है।
वाराणसी गजेटियर देता है औरंगजेब के हिन्दू अत्याचारों के सबूत
औरंगजेब का खुद का इकबाली बयान कलीमत-ई-तय्यीबत में दर्ज है, जिसमें वो अपने पोते बिदार बख्त से कहता है- ‘औरंगाबाद के पास सतारा गांव मेरे शिकार की जगह था हां पहाड़ पर खांडेराय की छवि वाला एक मंदिर था। अल्लाह के फजल से मैंने उसे ढहा दिया।’
साकी मुस्तैद खान की पुस्तक ‘मासिर-ए-आलमगीरी’ के अध्याय 12 में मुताबिक, 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने अपने सभी प्रांतों के गवर्नर को आदेश जारी किए कि हिंदुओं के सभी स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त कर दिया जाए। ये आदेश उसके शासन वाले सभी 21 सूबों में लागू हुए। यहां हिंदुओं की धार्मिक प्रथाओं और त्योहारों को मनाने पर भी रोक लगा दी गई। इस आदेश का जिक्र 1965 में प्रकाशित वाराणसी गजेटियर के पेज नंबर- 56-57 पर भी देखा जा सकता है।
इन पृष्ठों पर साफ लिखा है, “औरंगज़ेब को कीर्तती विश्वेश्वर का पुराना मंदिर मिला, जो उस साइट पर नष्ट कर दिया गया। इसकी कुछ सामग्री के साथ, आलमगिरी मस्जिद जो रत्नेश्वर के मंदिर के पास खड़ी है…से पुराने मंदिर के अवशेषों की वास्तुकला की शैली से संकेत मिलता है कि मंदिर उसके विनाश के समय लगभग छह या सात शताब्दियों पुराना रहा होगा- हिंदू आज भी इस स्थान पर आते हैं क्योंकि वे इसे पवित्रता का स्थान मानते हैं और प्रांगण के एक हिस्से (संभवतः पुराने मंदिर का अवशेष) की पूजा करते हैं, खासकर शिवरात्रि के अवसर पर जब कम से कम पिछली सदी के मध्य तक भीड़ इस स्थान पर उमड़ती थी और अपनी भेंट चढ़ाती थी जिसे मस्जिद के मुल्ला हड़प लेते थे।’
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9 अप्रैल, 1669 को औरंगजेब ने प्रांतीय गवर्नर को हिंदू मंदिरों और स्कूलों को ध्वस्त करने का आदेश जारी किया जिसे वाराणसी के फौजदार ने शहर में विश्वनाथ और बिंदुमाधव सहित कई मंदिरों को गिराकर पूरा किया। प्रत्येक दो ऊंची मीनारों के स्थान पर एक मस्जिद बनाई गई। औरंगजेब ने शहर का नाम बदलकर मुहम्मदाबाद भी कर दिया और यहां की टकसाल से जारी सिक्कों ने भी इस नाम को पीछे छोड़ दिया। हालाँकि, नया नाम प्रचलन में नहीं आया बल्कि इसका इस्तेमाल केवल आधिकारिक तौर पर किया गया, जो कि बादशाह की मृत्यु के बाद से ही चलन में है।’’
अभिलेख मिटाने में भी पीछे नहीं था ये औरंगजेब
इस आदेश के बाद तो जैसे भारत भर में जहां तक भी औरंगजेब की सत्ता थी, मंदिर गिराने का सिलसिला ही शुरू हो गया था, जिसे लेकर सभी बड़े इतिहासकार एकमत हैं और यह मानते हैं कि इसी आदेश के बाद सोमनाथ, काशी विश्वनाथ समेत सैकड़ों मंदिरों का विध्वंस किया गया। केवल मंदिरों को ही नहीं, इतिहास को भी तोड़-मरोड़कर उसे नष्ट करने का काम औरंगजेब ने अपने शासनकाल में शुरू करवा दिया था। जैसे ही उसके शासन का दूसरा दशक आरंभ हुआ, उसने सभी काल क्रम के अभिलेख मिटा दिए और आगे से निरंतर लिखे जानेवाले किसी भी लेखन को बंद कर देने का आदेश दिया। यही कारण है कि उस दौरान के औरंगजेब के कृत्यों का ब्योरा शाही दस्तावेजों में नाममात्र का सिर्फ सूचना के स्तर पर मिलता है। इसका जिक्र इतिहासकार स्टेनली लेनपूल ने “औरंगजेब एंड द डिके आफ द मुगल एंपायर” में किया है।
अब्राहम एराली के अनुसार, “1670 में औरंगज़ेब ने उज्जैन के आसपास के सभी मंदिरों को नष्ट कर दिया था” और बाद में “300 मंदिरों को चित्तौड़, उदयपुर और जयपुर के आसपास नष्ट कर दिया गया।” अन्य हिंदू मंदिरों में से 1705 के अभियानों में कहीं और नष्ट कर दिया गया; और “औरंगज़ेब की धार्मिक नीति ने उनके और नौवें सिख गुरु, तेग बहादुर के बीच घर्षण पैदा कर दिया, जिसे जब्त कर लिया गया और दिल्ली ले जाया गया, उन्हें औरंगज़ेब ने इस्लाम अपनाने के लिए बुलाया और मना करने पर, उन्हें यातना दी गई और नवंबर 1675 में उनका सिर कलम कर दिया गया। (Eraly, Abraham (2000), “Emperors of the Peacock Throne: The Saga of the Great Mughals”)
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