नई दिल्ली । समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजी लाल सुमन ने राज्यसभा में एक ऐसा बयान दे डाला, जिसने इतिहास के महान योद्धा राणा सांगा के बलिदान और शौर्य को अपमानित कर दिया। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा, “अगर मुसलमान बाबर की औलाद हैं, तो तुम लोग गद्दार राणा सांगा की औलाद हो।” यह बयान न सिर्फ ऐतिहासिक तथ्यों की गलत व्याख्या करता है, बल्कि उस वीर राजपूत शासक की गौरवशाली गाथा को भी कलंकित करता है, जिसने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ अपनी आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ी। इस बयान से सदन में हंगामा मच गया और भाजपा ने सपा पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कड़ा जवाब दिया।
क्या हुआ सदन में?
राज्यसभा में उपसभापति हरिवंश को संबोधित करते हुए सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने कहा, “भाजपा का तकियाकलाम है कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है। लेकिन हिंदुस्तान का मुसलमान बाबर को आदर्श नहीं मानता, वह मोहम्मद साहब और सूफी संतों को मानता है। बाबर को भारत कौन लाया? राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बाबर को बुलाया था। अगर मुसलमान बाबर की औलाद हैं, तो तुम गद्दार राणा सांगा की औलाद हो। हम बाबर की आलोचना करते हैं, लेकिन राणा सांगा की क्यों नहीं?”
“राणा सांगा गद्दार थे”
: सपा सांसद रामजी लाल सुमन
राणा सांगा को ‘गद्दार’ बोलने की हिम्मत..😡
80 घाव सहकर इस्लामिक आक्रांताओं से लड़ने वाले, महाराणा प्रताप के दादा को गद्दार कह रहे हैं ये मुगलपरस्त
क्या यही है समाजवादी पार्टी की सोच..? pic.twitter.com/7B0Gk1xF8U
— Shivam Dixit (@ShivamdixitInd) March 22, 2025
इस बयान से सदन में शोर मच गया। उपसभापति हरिवंश ने नाराजगी जताते हुए संसदीय मर्यादा का पालन करने की हिदायत दी, लेकिन सुमन के शब्दों ने पहले ही आग लगा दी थी।
बाबर को भारत में किसने बुलाया, जानिये
बाबर को भारत में दौलत खान लोदी ने बुलाया था। दौलत खान लोदी उस समय पंजाब का सूबेदार था और उसने इब्राहिम लोदी, जो दिल्ली सल्तनत का सुल्तान था, के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। इब्राहिम लोदी की बढ़ती ताकत और अपने प्रभाव को कम होते देख दौलत खान ने बाबर से मदद मांगी। बाबर उस समय काबुल का शासक था और उसने इस अवसर का फायदा उठाया। बाबर ने 1526 में भारत पर आक्रमण किया, जिसके परिणामस्वरूप पानीपत की पहली लड़ाई हुई। इस लड़ाई में उसने इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल साम्राज्य की नींव रखी।
राणा सांगा के बलिदान और शौर्य की अमर गाथा
राणा सांगा, जिनका पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था, मेवाड़ के सिसोदिया वंश के एक महान शासक थे, जिन्होंने 1508 से 1528 तक शासन किया। वे न केवल राजपूतों के एकीकरण के प्रतीक थे, बल्कि विदेशी आक्रांताओं और सुल्तानों के खिलाफ उनके संघर्ष ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया।
राणा सांगा ने अपने जीवन में 18 बड़े युद्ध लड़े और अपने शरीर पर 80 से अधिक घाव खाए, फिर भी कभी हार नहीं मानी। उनकी वीरता का सबसे बड़ा प्रमाण बाबर के साथ 1527 में हुआ खानवा का युद्ध है।
राणा सांगा का संघर्ष सिर्फ बाबर तक सीमित नहीं था। उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सिकंदर खान लोदी, गुजरात के सुल्तान महमूद बेगड़ा और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी जैसे शक्तिशाली आक्रान्ताओं को भी हराया था। एक आंख, एक हाथ और एक पैर खोने के बावजूद वे युद्धभूमि में डटे रहे, जो उनके अदम्य साहस को दर्शाता है।
समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा यह कहना कि वे “गद्दार” थे, न केवल उनके बलिदान का अपमान है, बल्कि उस ऐतिहासिक सत्य को भी तोड़ता-मरोड़ता है, जिसमें उन्होंने भारत की अस्मिता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।
भाजपा का पलटवार और राजनीतिक हंगामा
समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन के इस आपत्तिजनक बयान के बाद भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया दी। भाजपा नेता संजीव बालियान ने कहा- “रामजी लाल सुमन ने संसद में महान वीर राणा सांगा को गद्दार कहकर राजपूत और हिंदू समाज का घोर अपमान किया है। सपा को इसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए।”
मनोज तिवारी ने इसे औरंगजेब को महिमामंडन करने की कोशिश से जोड़ा और कहा- “हमने कभी नहीं कहा कि मुसलमान बाबर के वंशज हैं। औरंगजेब देश का शत्रु था, लेकिन सपा तुष्टिकरण के लिए हमारे नायकों को बदनाम कर रही है।”
वहीं यूपी भाजपा ने सोशल मीडिया पर लिखा- “सपा के नेता अपने संस्कारों के अनुरूप तुष्टिकरण की सियासत में इस कदर डूब चुके हैं कि वो विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन करने के लिए भारतीय महापुरुषों को अपमानित करने में जरा सा भी परहेज नहीं करते। ससंद में सपा सांसद रामजी लाल सुमन की टिप्पणी बेहद शर्मनाक है, उन्हें अपने इस बयान के लिए माफी मांगनी चाहिए।”
तुष्टिकरण के चक्कर में शूरवीरों का अपमान क्यों.?
राणा सांगा को गद्दार कहना न सिर्फ ऐतिहासिक अज्ञानता है, बल्कि उन लाखों लोगों की भावनाओं पर चोट है, जो उन्हें एक प्रेरणा मानते हैं। उनका जीवन बलिदान, शौर्य और स्वाभिमान की मिसाल है। सपा के सांसद रामजी लाल सुमन का यह बयान तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह देश के गौरवशाली इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश है। बाबर एक आक्रांता था, लेकिन राणा सांगा ने उसका मुकाबला किया, न कि उसका साथ दिया। ऐसे में सपा को अपने इस बयान पर माफी मांगनी चाहिए और इतिहास के साथ छेड़छाड़ बंद करनी चाहिए।
शिवम् दीक्षित एक अनुभवी भारतीय पत्रकार, मीडिया एवं सोशल मीडिया विशेषज्ञ, राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार विजेता, और डिजिटल रणनीतिकार हैं, जिन्होंने 2015 में पत्रकारिता की शुरुआत मनसुख टाइम्स (साप्ताहिक समाचार पत्र) से की। इसके बाद वे संचार टाइम्स, समाचार प्लस, दैनिक निवाण टाइम्स, और दैनिक हिंट में विभिन्न भूमिकाओं में कार्य किया, जिसमें रिपोर्टिंग, डिजिटल संपादन और सोशल मीडिया प्रबंधन शामिल हैं।
उन्होंने न्यूज़ नेटवर्क ऑफ इंडिया (NNI) में रिपोर्टर कोऑर्डिनेटर के रूप में काम किया, जहां इंडियाज़ पेपर परियोजना का नेतृत्व करते हुए 500 वेबसाइटों का प्रबंधन किया और इस परियोजना को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में स्थान दिलाया।
वर्तमान में, शिवम् राष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य (1948 में स्थापित) में उपसंपादक के रूप में कार्यरत हैं।
शिवम् की पत्रकारिता में राष्ट्रीयता, सामाजिक मुद्दों और तथ्यपरक रिपोर्टिंग पर जोर रहा है। उनकी कई रिपोर्ट्स, जैसे नूंह (मेवात) हिंसा, हल्द्वानी वनभूलपुरा हिंसा, जम्मू-कश्मीर पर "बदलता कश्मीर", "नए भारत का नया कश्मीर", "370 के बाद कश्मीर", "टेररिज्म से टूरिज्म", और अयोध्या राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले के बदलाव जैसे "कितनी बदली अयोध्या", "अयोध्या का विकास", और "अयोध्या का अर्थ चक्र", कई राष्ट्रीय मंचों पर सराही गई हैं।
उनकी उपलब्धियों में देवऋषि नारद पत्रकार सम्मान (2023) शामिल है, जिसे उन्होंने जहांगीरपुरी हिंसा के मुख्य आरोपी अंसार खान की साजिश को उजागर करने के लिए प्राप्त किया। यह सम्मान 8 मई, 2023 को दिल्ली में इंद्रप्रस्थ विश्व संवाद केंद्र (IVSK) द्वारा आयोजित समारोह में दिया गया, जिसमें केन्द्रीय राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल, RSS के सह-प्रचार प्रमुख नरेंद्र जी, और उदय महुरकर जैसे गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
शिवम् की लेखन शैली प्रभावशाली और पाठकों को सोचने पर मजबूर करने वाली है, और वे डिजिटल, प्रिंट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय रहे हैं। उनकी यात्रा भड़ास4मीडिया, लाइव हिन्दुस्तान, एनडीटीवी, और सामाचार4मीडिया जैसे मंचों पर चर्चा का विषय रही है, जो उनकी पत्रकारिता और डिजिटल रणनीति के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
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