कार्यक्रम के मंच पर लेफ्टिनेंट कर्नल (से.नि.) डॉ. प्रवीण कुमार रेड्डी एवं गोपाल आर्य
गोपाल आर्य ने कहा कि देश और परिस्थिति के हिसाब से नई परिभाषाएं गढ़ी जाती हैं। मौजूदा परिस्थिति में कुंभ के साथ पर्यावरण को जोड़ना कि इससे क्या निकल सकता है, मुझे लगता है कि हम उसे पुन: परिभाषित कर रहे हैं। पहले कुंभ के मंथन से अध्यात्म, धर्म पर चर्चा से समाज के लिए संदेश जाता था। वर्तमान में कुंभ से पर्यावरण के लिए एक नया संदेश निकलकर जाए, उसकी अपेक्षा की जा रही है।
महाकुंभ के दौरान छोटा-सा गिलहरी प्रयास हुआ। वह यह कि क्या ऐसा छोटा-सा प्रयास हो सकता है, जिसमें एक भी पैसा खर्च न हो, यानी बजट शून्य हो? क्या ऐसा कोई छोटा-सा प्रयास हो सकता है, जिसमें कोई कार्यालय न बनाया जाए? क्या ‘एक थाली और थैला’ जैसा भी कोई अभियान हो सकता है, जो कुंभ को कचरा मुक्त कर सके? क्या घर-घर से कपड़े के थैला को इकट्ठा करके कुंभ में 8,000 टन प्लास्टिक कचरे को कम किया जा सकता है? ये सारे प्रयास महाकुंभ के दौरान समाज के माध्यम से हुए हैं। इसमें तीन चरण थे। पहला, जन-जन को कुंभ कैसे ले जाया जाए? दूसरा, घर-घर में कुंभ कैसे हो सकता है? और तीसरा, कुंभ में कुंभ कैसे हो सकता है?
मीडिया एवं सोशल मीडिया के माध्यम से इतना किया जा सकता था कि श्रद्धालु वहां कचरा न डालें। हमारा प्रयास था कि लोग गंगा मां को प्रदूषित न करें। इससे श्रद्धालु जागरूक हुए। जो लोग कुंभ नहीं पहुंच सकते थे, उन्हें कुंभ से जोड़ने के लिए हर घर से एक थाली अभियान शुरू किया। हमने सोचा भी नहीं था कि यह अभियान इतना बड़ा हो जाएगा। कुंभ में कुंभ का परिणाम यह निकला कि जब हमने थालियां मांगी तो लोगों ने बाकायदा उसकी आरती उतार कर भेजा। एक वृद्ध माता एक थैला देना चाहती थीं, जिसे उन्होंने सात दिन में हाथ से सिलाई कर तैयार किया था। लेकिन जब उन्हें पता चला कि सामान कुंभ भेजे जा चुके हैं तो उन्होंने कहा कि वे कुंभ जा सकेंगी या नहीं, बस किसी भी तरह उनका थैला वहां पहुंचा दिया जाए। इस प्रकार की भावना ही कुंभ में कुंभ है। कुंभ में हमने लगभग सवा 10 लाख थालियां बांटी। इस शून्य बजट अभियान में हर दानकर्ता ने थाली खरीद कर हमें दान दिया।
बात थैला और थाली की नहीं है, बल्कि इसके जरिए समाज में जाने वाला वह संदेश है कि एक छोटे से प्रयास से समाज स्वच्छ, हरित और पवित्र हो सकता है। महाकुंभ में 90 प्रतिशत अखाड़ों और जहां भंडारे चल रहे थे, वहां सवा दस लाख थालियां, ढाई लाख गिलास और 13 लाख थैले वितरित किए गए।
लेफ्टिनेंट कर्नल (से.नि.) डॉ. प्रवीण कुमाार रेड्डी ने कहा कि महाकुंभ में आयोजित ‘नेत्र कुंभ’ हमारे लिए तीसरा अनुभव है। 2019 में प्रयागराज और 2021 में हरिद्वार कुंभ में भी इसका आयोजन किया गया था। 2012 से पहले चारधाम यात्रा में कई श्रद्धालुओं को अपनी जान गंवानी पड़ती थी। इस पर चिंतन करके कुछ डॉक्टरों ने एक छोटा-सा स्वास्थ्य शिविर शुरू किया। इसे ‘स्वामी विवेकानंद हेल्थ मिशन सोसाइटी’ नाम दिया गया। वर्तमान में वृंदावन, दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक यह संस्था 14 चैरिटेबल अस्पतालों का संचालन करती है। पहले जिस चारधाम यात्रा में ढाई से तीन हजार लोग अपनी जान गंवाते थे, वहीं अब यह शून्य हो गई है। यह यात्रा चैत्र से शुरू होकर दीपावली तक चलती है। इस दौरान यह संस्था साढ़े तीन से चार लाख श्रद्धालुओं की सेवा करती है। देश भर के 1,000 से अधिक चिकित्सक भी इसमें अपनी सेवाएं देते हैं। इसी को आगे बढ़ाते हुए कुछ डॉक्टरों ने विचार किया कि 2019 कुंभ में कुछ अलग क्या किया जा सकता है? इस पर विचार के बाद आंखों की मुफ्त जांच का विचार आया। 2019 में 52 दिन चलने वाले कुंभ में हमारी संस्था ने ढाई से तीन लाख श्रद्धालुओं की आंखों की जांच की और लगभग डेढ़ लाख जरूरतमंद लोगों को चश्मा वितरित किया। कई लोग सवाल करते थे कि कुंभ में चश्मा पहनने कौन आएगा? लेकिन कुंभ में हमने दो लाख से अधिक लोगों की जांच की और उन्हें चश्मा दिया। 2025 महाकुंभ में नेत्र कुंभ में भी लोगों के आंखों की गुणवत्तापूर्ण जांच की गई और उन्हें चश्मा प्रदान किया गया। देश में आंखों की लगभग 80 प्रतिशत बीमारी मोतियाबिंद जैसी है, जिसका उपचार किया जा सकता है। पीएम स्वास्थ्य योजना में भी आजकल 2000 रुपये में सर्जरी हो जाती है। नेत्र कुंभ में लगभग 2,40,000 लोगों की आंखों की जांच की गई। इसमें 53 संगठन शामिल हुए।
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