उत्तर प्रदेश

वैश्विक तीर्थ बनी अयोध्या- महासचिव चंपत राय

समागम के ‘विरासत का कॉरिडोर’ सत्र में राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा कि महाकुंभ से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अयोध्या आए। 26 जनवरी को भीड़ इतनी बढ़ गई कि पूरी अयोध्या को वन-वे करना पड़ा

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WEB DESK

राम जन्मभूमि आंदोलन से मेरा जुड़ाव रहा है। वर्ष 1987 से मैं अयोध्या में हूं। अयोध्या में तीन मेले प्रमुखत: आयोजित होते हैं। एक चैत्र मास में भगवान का जन्म के समय, उस समय चार दिन का मेला लगता है। तब के समय में रामनवमी पर सरयू में स्नान और दोपहर का भोजन करके लोग अपने घरों को जाने लगते थे। एक दिन में अयोध्या खाली हो जाती थी। हां, दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों से कुछ लोग दूसरे प्रदेश भी आते थे। इसके बाद अयोध्या में दूसरा मेला तब होता है, जब राम जी चार माह के हो जाते हैं। वह माह होता है श्रावण, उस दौरान अयोध्या के 3 हजार छोटे-बड़े मंदिर अपनी स्थिति के अनुसार भगवान को पालने में झुलाते हैं और करीब 8 दिन चलने के बाद यह मेला भी समाप्त हो जाता है। इसके बाद तीसरा मेला कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष को चार कोसी परिक्रमा होती है, इसके बाद देवोत्थान एकादशी को पंचकोसी परिक्रमा भी होती है। बाकी हनुमानगढ़ी में लोग प्रत्येक मंगलवार को और हनुमान जयंती अवसर पर आते हैं।

लेकिन, 2020 में जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया तो अयोध्या में श्रद्धालुओं की संख्या में सहज रूप से वृद्धि हुई। पहले तो यह संख्या 7 हजार तक बढ़ी। बाद में ध्यान में आया कि अब आगंतुकों की संख्या 25 हजार तक हो गई है। लेकिन, 22 जनवरी, 2024 को राम मंदिर में भगवान रामलला प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई तो संख्या में एक झटके में वृद्धि आ गई और प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो अयोध्या में हर दिन करीब 75 हजार श्रद्धालु आने लगे। शनिवार और मंगलवार को यह संख्या एक लाख तक पहुंच जाती है।

पिछले एक साल में करीब 4 से साढ़े चार करोड़ लोगों ने अयोध्या के दर्शन किए। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े की अगर बात करें तो अयोध्या की जनसंख्या 60 हजार के आसपास है। 2011 तक अयोध्या नगर निगम नहीं था, लेकिन आज यह नगर निगम है। निगम बनने के बाद आसपास के गांवों आदि को मिला लिया गया, लेकिन अयोध्या इससे प्रभावित नहीं हुई है। अयोध्या के लिए क्या होना चाहिए, इसको सही रूप में शासन ने समझा गया। वहां सुधार होने शुरू हुए। सबसे जरूरी काम था सफाई। एक मेले के बाद लोग चले जाते थे और गंदगी वहीं पड़ी रहती थी और जब दूसरा मेला आता था तब उसकी सफाई होती थी। अब व्यवस्था बदल गई है। अब मेले के ठीक बाद सफाई की जाती है। दूसरी बात यह है कि सरयू की बगल से एक छोटी सी नहर निकाली गई और पंपिंग के द्वारा उसमें सरयू का जल डाला जाता है। पहले यह ऐसे ही पड़ा रहता था, लेकिन अब उसमें भी सुधार हो गया है।

कुंभ मेले से मैं 1989 से जुड़ा हुआ हूं। 1989 से 2025 तक कोई भी कुंभ आज तक नहीं छूटा। कुंभ का एक स्वभाव देखा है कि सामान्यतया वसंत पंचमी के बाद इसमें एकाएक गिरावट आती है। लेकिन इस बार वसंत पंचमी और माघ पूर्णिमा के बाद भी ग्राफ ऊपर जाता गया। इस बार के कुंभ में सुव्यवस्था और समाज तक उसकी जानकारी पहुंचाई गई। मैंने अयोध्या में किसी से पूछा था कि बड़े-बड़े शक्तिमान देश अपने देश की आधी आबादी को इस प्रकार से एक जगह एकत्रित कर सकते हैं क्या ? लेकिन महाकुंभ में ऐसा हुआ। महाकुंभ का असर अयोध्या पर पड़ा।

26 जनवरी को अयोध्या में भीड़ देखकर मेरे मन में यह डर बैठ गया था कि कहीं कोई हादसा न हो जाए लेकिन 24 घंटे के अंदर प्रशासन के साथ बैठक की और पूरी अयोध्या को ‘वन वे’ कर दिया। लोगों को थोड़ा चलना तो पड़ा, लेकिन वे भगदड़ से बच गए। दर्शन की अवधि को सुबह पांच बजे से रात के 12 बजे तक कर दिया। भगवान राम के दोपहर के विश्राम को भी स्थगित कर दिया। यह तय हुआ कि रात में किसी को भी यहां नहीं रहने देना है। हमारा प्रयोग सफल रहा। 15 जनवरी से 28 फरवरी तक हर दिन 4 से साढ़े चार लाख लोग हर दिन दर्शन के लिए अयोध्या पहुंचे। इस अवधि में करीब डेढ़ करोड़ लोग अयोध्या आए। 10 ट्रेन प्रतिदिन कुंभ से अयोध्या आ रहीं थीं। आर्थिक दृष्टि से समाज को इसका पूरा लाभ मिला है। व्यापार हुआ, लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। और ऐसा होना अभी भी निरंतर जारी है। लोग अब भी लगातार अयोध्या आ रहे हैं।

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