कोई बरगलाकर आपसे आपकी पहचान को कुछ वक्त के लिए छीन सकता है, लेकिन हमेशा के लिए उस सत्य को नहीं मिटाया जा सकता जो आपकी आत्मा से जुड़ा है। लेकिन सनातन धर्म की यही महानता है कि दूसरे मतों में ले जाए गए लोगों को उनका मूल धर्म सदैव अपनी ओर आकर्षित करता है। ऐसी ही एक घटना झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले से आई है, जहां कन्वर्जन के कुचक्र का शिकार बनकर दूसरे मतों में जाने वाले वनवासी समुदाय के 68 परिवार के 200 लोगों ने सनातन धर्मं में घर वापसी की।
क्या है पूरा मामला
जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज के सानिध्य में विश्व कल्याण आश्रम की ओर से गोइलकेरा प्रखंड के अंतर्गत आने वाले पारलीपोस गांव में आयोजित 56वें नि:शुल्क चिकित्सा शिविर में आयोजित स्वधर्मानयन अभियान के अंतर्गत पश्चिमी सिंहभूम जिले के सुदूर क्षेत्र में रहने वाले वनवासी जन जातीय समुदाय के 68 परिवार 200 लोगों ने स्वधर्म में वापसी की। इन लोगों मतांतरण कराने वालों ने अपने झूठे माया जाल में फंसाकर इनका स्वधर्म त्याग करवा दिया था। लेकिन, इनसे इनका सनातन धर्म के प्रति लगाव खत्म नहीं हुआ।
इसके बाद इन सभी ने जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज के हाथों से गंगाजल का पान कर एवं श्री राम नाम का वाचन कर पुनः सनातन धर्म में घर वापसी की । इस दौरान पूज्य शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि “”स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।”
पिछले कुछ दिनों में शंकराचार्य ने जिले के कई आदिवासी गांवों में स्वधर्मानयन अभियान के तहत धर्म संचार सभाओं को संबोधित किया, जिससे जन जातीय समुदाय में सनातन धर्म को लेकर जागृति हुई है और लोग धर्मांतरण के कुचक्र को समझ कर स्वतः अपने धर्म की ओर वापसी के लिए प्रेरित हो रहे हैं। कार्यक्रम में विश्व कल्याण आश्रम के नव नियुक्त प्रभारी, ब्रह्मचारी विश्वानंद जी आध्यात्मिक उत्थान मंडल के सभी सदस्य एवं इंद्रजीत मालिक,
शिव प्रसाद सिंहदेव, रॉबी लकड़ा ने अपने कठिन परिश्रम से इस आयोजन को सफल कराया।
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