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Russia-Ukraine War: कितनी स्थायी होगी शांति! Trump कितने सफल होंगे कीव और मॉस्को की दूरियां पाटने में!

शांति समझौते की चर्चा के बाद अमेरिका की ओर से कहा गया है कि वह यूक्रेन को रोकी गई सैन्य और गुप्तचरी सहायता फिर से शुरू कर देगा। इसे देखते हुए, रूस पर यह दबाव भी बढ़ा है कि वह शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को ठोस रूप में साबित करे

Published by
Alok Goswami

आज विश्व भर के मीडिया में एक ही खबर प्रमुखता से देखने में आ रही है और वह है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन—रूस युद्धविराम समझौता और उसकी शर्तें। ट्रंप की पुतिन के बीच फोन पर हुई ताजा बात के बाद इस संबंध में कयास तेज हो गए है कि युद्धविराम कब और कैसे लागू होने वाला है।

बेशक, दोनों शीर्ष नेताओं के बीच हुई बातचीत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया है। वार्ता का मुख्य उद्देश्य यूक्रेन के सैनिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही युद्धविराम के लिए एक समझौता को ठोस आकार देना माना जा रहा है। हालांकि मीडिया के वर्ग में यह चर्चा भी चल निकली है कि पुतिन समझौते पर राजी हो गए हैं, लेकिन अभी भी कुछ बिन्दु हैं जिन पर वह स्पष्टीकरण चाहते हैं। लेकिन जो भी है, दोनों नेताओं के बीच हुई वार्ता ने इस बात की झलक दी है कि संभवत: रूस—यूक्रेन युद्ध 30 दिन के संघर्षविराम के बाद कुछ विराम पाएगा।

अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों की वार्ता के जो प्रमुख बिन्दु सामने आए हैं, उनके अनुसार, ट्रंप ने पुतिन से आग्रह किया कि रूस द्वारा घेरे में लिए गए यूक्रेनी सैनिकों की जान बख्शी जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि युद्धविराम के बिना यह संघर्ष और अधिक विनाशकारी हो सकता है। पुतिन ने ट्रंप की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि यदि यूक्रेनी सैनिक आत्मसमर्पण करते हैं, तो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी।

युद्ध से यूक्रेन बुरी तरह तहस-नहस हो चुका है (फाइल चित्र)

अमेरिका ने रूस और यूक्रेन के सामने जो 30-दिन के युद्धविराम का प्रस्ताव रखा है उसे यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने स्वीकार कर लिया है, जबकि पुतिन ने इसे सैद्धांतिक रूप से तो मान लिया है लेकिन साथ ही मास्को का साफ कहना है कि युद्धविराम की शर्तों पर आखिरी चर्चा अभी होनी है यानी रूस की शर्तें मानी गईं तो ही युद्धविराम अमल में लाया जा सकेगा।

शांति समझौते की चर्चा के बाद अमेरिका की ओर से कहा गया है कि वह यूक्रेन को रोकी गई सैन्य और गुप्तचरी सहायता फिर से शुरू कर देगा। इसे देखते हुए, रूस पर यह दबाव भी बढ़ा है कि वह शांति के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को ठोस रूप में साबित करे। कहा जा रहा है कि यदि यह युद्धविराम सफल होता है, तो यह एक दीर्घकालिक शांति योजना का आधार बन सकता है।

लेकिन, जैसा पहले बताया, इस समझौते के कार्यान्वयन के रास्ते में अनेक चुनौतियां भी हैं। रूस और यूक्रेन के बीच एक दूसरे के प्रति भरोसे की कमी है इसलिए युद्धविराम की शर्तों पर असहमति हुई तो यह प्रक्रिया और जटिल बन सकती है। दूसरी तरफ, यदि यह प्रयास विफल होता है, तो संघर्ष और अधिक मारक होने की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

लेकिन हां, ट्रंप और पुतिन की यह वार्ता आगे की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम तो कहा ही जा सकता है। आखिर युद्ध को तीन साल हो चुके हैं, इसका अभी तक कोई ओर—छोर नजर नहीं आ रहा था। लेकिन वाशिंगटन में आई नई सत्ता ने शुरू से ही इसे एक दिशा देने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। ट्रंप ने तो जेलेंस्की से अपनी बहुचर्चित वार्ता में साफ कहा था कि बिना अमेरिकी मदद के जेलेंस्की युद्ध नहीं जीत सकते। लेकिन यहां ध्यान रखना होगा कि समझौते पर सहमति तो बस शुरुआत है। इसमें संदेह नहीं है कि शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा। यह वार्ता न केवल रूस और यूक्रेन के लिए, बल्कि वैश्विक शांति के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर सामने रखती है।

अंतत: यह देखना बाकी है कि अमेरिका, रूस और यूक्रेन के साथ ही फ्रांस और ब्रिटेन एवं नाटो का यह प्रयास कितना सफल होता है। नाटो को सबक सिखाने की कसमें खाने वाले पुतिन क्या शर्तें रखते हैं और अमेरिका उन शर्तों पर कितना लचीला रुख अपनाता है। और क्या यह वास्तव में एक स्थायी समाधान की ओर ले जाता है।

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