केरल में प्रतिबंधित संगठन अब नए रूप में सामने आ रहे हैं। इनमें केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित आतंकी संगठन पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई), कैम्पस फ्रंट आफ इंडिया, आल इंडिया इमाम काउंसिल (एआईआईसी), नेशनल कन्फेडरेशन आफ ह्यूमन राइट्स आर्गनाइजेशन (एनसीएचआरओ), रिहैब फाउंडेशन इंडिया (आरआईएफ), नेशनल वुमन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पॉवर इंडिया फाउंडेशन जैसी संस्थाएं शामिल हैं। सरकार ने इन संगठनों पर देशविरोधी गतिविधियों के कारण सितंबर 2022 में प्रतिबंध लगाया था। इस बार इन संगठनों ने मानवाधिकार संगठन का चोला पहना है। नए संगठन का नाम नेशनल कन्फेडरेशन फॉर ह्यूमन डिग्निटी एंड राइट्स (एनसीएचडीआर) है, जो कि एनसीएचआरओ का नया अवतार है। एनसीएचडीआर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के वेश में काम करता है, जिसे हाल ही में कोझिकोड में ‘लॉन्च’ किया गया है।
प्रतिबंध के बाद इस्लामी आतंकी संगठन पीएफआई के स्लीपर सेल निष्क्रिय हो गए थे, लेकिन लेकिन अब ये नए रूप में केरल के विभिन्न जिलों में ‘सक्रिय’ हो रहे हैं। खुफिया एजेंसियां भी इसके बारे में आगाह कर चुकी हैं। हालांकि, अभी तक स्लीपर सेल के सरगना और उसके गुर्गों के बारे में कुछ ठोस सुराग हाथ नहीं लगा है, लेकिन एजेंसियों को इतना मालूम है कि वे एक ही छतरी के नीचे जिला इकाइयों के रूप में काम कर रहे हैं। दरअसल, यह कवायद प्रतिबंध और गिरफ्तारी से बचने की है।
संंदिग्ध संगठन एनसीएचआरओ का अध्यक्ष रहा विलायोदी सिवनकुट्टी अब एनसीएचडीआर का अध्यक्ष बनाया गया है। एनसीएचआरओ तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, गोवा और नई दिल्ली में सक्रिय है। एनसीएचडीआर का ‘लॉन्चिंग’ कार्यक्रम पहले जमात-ए-इस्लामी से जुड़े विद्यार्थी भवन में होने वाला था, लेकिन बाद में इसे इन्डोर स्टेडियम में स्थानांतरित कर दिया गया। 16 फरवरी को उद्घाटन समारोह की पूरी तैयारी हो गई थी। स्टेडियम के चारों तरफ बड़ी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई थी, लेकिन तय समय से ठीक पहले आयोजकों में से एक वाहिद शेख ने प्रदेश अध्यक्ष विलायोदी शिवनकुट्टी के फेसबुक अकांउट से बयान जारी कर बताया कि कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया है। शिवनकुट्टी ने कहा कि कार्यक्रम ‘सही’ समय’ पर ‘सही जगह’ पर आयोजित किया जाएगा।
नाम नया, काम पुराना
महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्यक्रम में जमात-ए-इस्लामी के नेताओं के अलावा वाहिद शेख, सादिक उलियिल, अफजल खासिमी, प्रो. खाजा खानी (तमिलनाडु मुस्लिम मुन्नेट्टा कझकम सचिव), मुहम्मद मुनीर (इंडियन तौहीद जमात, चेन्नई), वर्कला राज, रसिक रहीम और श्वेता भट्ट, आर. राजगोपाल भाग लेने वाले थे। इनमें से अधिकांश पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
अफजल खासिमी प्रतिबंधित आल इंडिया इमाम काउंसिल का राज्य महासचिव है, जिसने प्रतिबंधित आतंकी संगठन पीएफआई की रैली में विवादित बयान दिया था। सुन्नी संगठनों सहित विभिन्न समुदायों के आक्रोश के बाद उसे बयान को वापस लेना पड़ा था। इसी तरह, सादिक उलियिल वेलयफेयर पार्टी के कन्नूर जिले का उपाध्यक्ष था, जो अब जमात-ए-इस्लामी के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले ‘मानवाधिकार’ संगठन का राज्य नेता है। वर्कला राज अब्दुल नासर मदनी का करीबी सहयोगी है। वह इस्लामिक सेवक संघ और केरल स्थित पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का वरिष्ठ पदाधिकारी रह चुका है। इन दोनों संगठनों की स्थापना मदनी ने की थी।
मदनी 14 फरवरी, 1998 को तमिलनाडु के कोयंबतूर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के आरोप में 9 वर्ष तक जेल में रह चुका है। इसमें 65 लोग मारे गए थे, जबकि 200 लोग घायल हुए थे। यह बम विस्फोट भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की चुनावी रैली में किया गया था। 2008 में बेंगलुरु में हुए सिलसिलेवार बम धमाको में भी मदनी 2010 में गिरफ्तार किया गया था। इस बम धमाके में एक की मौत हो गई थी, जबकि 20 घायल हो गए थे। वहीं, सिवनकुट्टी पहले माओवादी था, जबकि वाहिद शेख के बारे में बताया जाता है कि वह 11 जुलाई, 2006 को हुए मुंबई ट्रेन धमाके में आरोपी था।
इन प्रतिबंधित संगठनों की नए रूप में वापसी खतरनाक है। इन संगठनों से जुड़े लोग सोशल मीडिया पर अपना अधिकार पाने के लिए खूनी संघर्ष का आह्वान करते हैं। इसलिए केंद्रीय खुफिया एजेंसियां भी इन पर निगाह रखे हुए है। लेकिन केरल का गृह मंत्रालय आंख बंद किए हुए है। केरल के हिंदू संगठनों ने उद्घाटन कार्यक्रम पर रोक लगाने की मांग की थी। हिंदू ऐक्यवादी ने इसे लेकर कोझिकोड शहर पुलिस आयुक्त से शिकायत भी की थी। हालांकि, वाहिद शेख का दावा है कि एनसीएचडीआर एक खुला संगठन है, न कि राजनीतिक दल और आतंकी संगठन।
स्लीपर सेल में अधिकतर एसडीपीआई कार्यकर्ता हैं, जो अक्सर पार्कों, समुद्र तटों और बस-स्टैंड आदि पर मिलते हैं। वे इस बात का खास ध्यान रख रहे हैं कि पुलिस या खुफिया एजेंसियों की निगाह में न आएं। इसलिए वे विरोध प्रदर्शन और नारेबाजी करने की बजाय सिर्फ पर्यावरण से जुड़े मुद्दों, समाज सेवा और मानवाधिकारों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। स्लीपर सेल के गुर्गे किसी अन्य मुद्दे पर सीधी प्रतिक्रिया देते ही नहीं। कुल मिलाकर समाज के समक्ष वे खुद को ‘अच्छा’ दिखाने की कोशिश करते हैं। उनमें से कई माकपा के लिए काम कर रहे हैं।
केरल में बांग्लादेशी घुसपैठिए
केरल में बढ़ती बांग्लादेशी घुसपैठ भी चिंता का बड़ा कारण है। फर्जी दस्तावेज के आधार पर राज्य में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए रहते हैं, इसलिए उन्हें पकड़ना आसान नहीं है। ये सभी निर्माण क्षेत्र से लेकर गली-मोहल्लों में सब्जी आदि बेचने के कामों में लगे हुए हैं। इनमें अधिकतर आपराधिक प्रवृत्ति के हैं। केरल में आने के बाद वे अपराधियों के गिरोहों में शामिल हो जाते हैं या मादक पदार्थों की तस्करी करने लगते हैं। ये लोग अभी हाल ही में राज्य पुलिस ने मन्नम, पीरावोम तालुक, एर्नाकुलम में सैयद मोहम्मद के घर में छिपे 27 बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया था। ये सभी एक बिल्डिंग ठेकेदार के मातहत काम कर रहे थे। सभी पश्चिम बंगाल में घुसपैठ के बाद एजेंट के माध्यम से केरल आए थे। एर्नाकुलम ग्रामीण जिला पुलिस ने आतंकवाद रोधी दस्ते के सहयोग से बांग्लादेशियों का पता लगाने और धर-पकड़ कर निर्वासित करने के लिए आपरेशन क्लीन शुरू किया है।
पुलिस ने अभी तक 35 बांग्लादेशियों को गिरफ्तार किया है। दरअसल, असम में राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण शुरू हुआ तो वहां से बांग्लादेशी घुसपैठिए कोच्चि आने लगे। चूंकि केरल में मजदूरी का काम आसानी से मिल जाता है, जिसका घुसपैठिए फायदा उठाते हैं। ये घुसपैठिए केरल से कर्नाटक और तेलंगाना चले जाते हैं। पहले केरल में अन्य राज्यों से आने वाले मजदूरों को पंजीकरण कराना पड़ता था, लेकिन अब इसमें ढिलाई के कारण इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। इस घुसपैठ के पीछे माकपा का तुष्टीकरण एजेंडा भी है। माकपा की ट्रेड यूनियन विंग सीटू भी इसमें बड़ी भूमिका निभाते है, क्योंकि आगे चलकर ये घुसपैठिए माकपा का वोटबैंक बन सकते हैं।
समस्या यह है कि घुसपैठिए अब स्थानीय लड़कियों से शादी भी कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों में यह संख्या लगभग 75 बताई गई है, जबकि बिना किसी दस्तावेज या पंजीकरण के भी शादियां हो रही हैं। बीते वर्ष 17-18 दिसंबर को पश्चिम बंगाल, असम और केरल पुलिस ने ‘आपरेशन प्रघात’ में आतंक के एक बड़े मॉड्यूल का खुलासा किया था। एटीएस ने आठ आतंकियों को गिरफ्तार किया था। इनमें केरल के कासरगोड से गिरफ्तार मोहम्मद साद उर्फ साद शेख भी शामिल था। वह फर्जी पासपोर्ट पर केरल आया था और भवन निर्माण मजदूर के रूप में काम कर रहा था।
केरल की वामपंथी सरकार पूरी तरह से मुस्लिम तुष्टीकरण में जुटी हुई है। उसके राज में मंदिरों में नमाज पढ़ी जा रही है, मजहबी आयोजन करवाए जा रहे हैं और मांस पका कर मंदिरों को अपवित्र किया जा रहा है। यहां तक कि सरकारी कार्यक्रमों में नमाज पढ़ी जा रही हैं। हिंदू परंपराओं पर इस तरह के राज्य प्रायोजित हमले लगातार हो रहे हैं।
गत फरवरी में तिरुअनंतपुरम के शंखमुखम तट पर स्थित चट्टानी मंच आट्टू मंडपम पर मांसाहारी भोजन पकाया गया था। यह सब कुदुंबश्री नामक सरकारी संस्था द्वारा आयोजित एक खाद्य उत्सव ‘थीरासमगमम’ (बीच मीट) के दौरान हुआ था। इसकी शिकायत की गई। लेकिन सबूत होने के बावजूद दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। आट्टू मंडपम् एक पवित्र स्थल है, जहां श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर उत्सव के हिस्से के रूप में अरट्टू पूजा होती है। हिंदू नेताओं ने मंडपम के पास निर्मित अस्थायी शौचालयों पर भी आपत्ति जताई थी, जिन्हें बाद में पुलिस ने हटा दिया था।
इसी तरह, बीते दिनों अलप्पुझा जिले में केंद्रीय परियोजना का उद्घाटन इस्लामी रीति-रिवाज के अनुसार हुई। उद्घाटन समारोह में इस्लामी प्रार्थनाएं पढ़ी गईं। यह सब अलप्पुझा जिले के कायमकुलन में 17 फरवरी को नगरपालिका स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र के उद्घाटन के दौरान हुआ। इसमें रतीब और दुआ मजलिस (नमाज मंडली) का आयोजन किया गया था। इस इस्लामी आयोजन का नेतृत्व मुस्लिम विचारक चालीस्सेरी थंगल ने किया था। उस कार्यक्रम में माकपा सरकार के मंत्री और विधायक भी थे। यह परियोजना केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की है। जिस वार्ड में यह कार्यक्रम हुआ, उसका प्रतिनिधित्व इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के पार्षद करते हैं। सवाल है कि सरकारी समारोह में इस्लामी रस्मों को मानना क्या देश के संविधान और इसकी पंथनिरपेक्ष प्रकृति का अपमान नहीं है?

भाजपा ने सवाल उठाया है कि क्या पिनराई विजयन सरकार ऐसा करके कायमकुलम नगरपालिका में शरीयत शासन की घोषणा की है? यदि नहीं, तो सरकार को उद्घाटन समारोह के दौरान मजहबी चीजें करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।
दरअसल, इस प्रकार के षड्यंत्रों को सत्तारूढ़ माकपा का समर्थन प्राप्त होता है। ऐसा करके वह अपना वोट बैंक सुनिश्चित करती है। चूंकि अगले कुछ महीनों में केरल में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं। इसके बाद अप्रैल 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसलिए माकपा का तुष्टीकरण भी जोरों पर है।
यह याद रखना चाहिए कि पिछले साल जब उत्तरी केरल में एक निजी स्कूल के प्रबंधन ने एक नवनिर्मित स्कूल भवन के उद्घाटन के मौके पर गणपति होमम का आयोजन किया था, तब सत्तारूढ़ एलडीएफ और विपक्षी कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंंट (यूडीएफ) दोनों ने हंगामा किया था। वह निजी समारोह था, जिसमें सिर्फ प्रबंधन के सदस्य शामिल हुए थे। अब जबकि सरकारी कार्यक्रम में नमाज का आयोजन किया तब दोनों पक्षों के मुंह पर ताले पड़े हुए हैं।
पलक्कड़ में हमास आतंकियों की तस्वीरें

त्रिथला और पलक्कड़ जिलों से चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है। इसमें कहा गया है कि ‘16 फरवरी, 2025 को मस्जिद उरूस पर जो जुलूस निकाला गया था, उसमें हाथियों पर जो बैनर लगे हुए थे, उनमें हमास और हिजबुल्लाह आतंकी संगठनों के आतंकियों की तस्वीरें लगी हुई थीं।’ ‘थरवाडीस, थेकेकेभागम’ (पूर्वज, दक्षिणी छोर) शीर्षक वाले इन बैनरों पर याह्या सिनवार, इस्माइल हनियेह और हसन नसरुल्लाह की तस्वीरें थीं। ये तीनों आतंकी इस्रायली हमले में मारे जा चुके हैं। यह सब माकपा और कांग्रेस नेताओं की मौजूदगी में हुआ, इसलिए इसे लेकर विवाद बढ़ गया है।
हालांकि, कार्यक्रम के आयोजकों ने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन त्रिथला में एक मस्जिद के वार्षिक ‘उरूस’ पर आयोजित कार्यक्रम में कांग्रेस नेता वी.टी. बालाराम और सत्तारूढ़ माकपा के मंत्री एम.बी. राजेश की मौजूदगी पर लोग भड़के हुए हैं। इस कार्यक्रम में लगभग 3,000 लोग मौजूद थे। इससे पूर्व 27 अक्तूबर, 2023 को जमात-ए-इस्लामी की युवा शाखा सॉलिडेरिटी यूथ मूवमेंट ने मलप्पुरम में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसे हमास के आतंकी खालिद मार्शल ने वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया था। भाजपा सहित हिंदू संगठनों ने इसके खिलाफ राज्य में विरोध प्रदर्शन किया था, लेकिन उस समय भी माकपा सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। इस बार भी अभी कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है।
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