प्रतीकात्मक तस्वीर
40 साल पुराने रेप के एक मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार पीड़िता को इंसाफ दे ही दिया। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि रेप के दौरान पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में कोई चोट का निशान नहीं होने का अर्थ ये नहीं होता है कि उसके साथ दुष्कर्म नहीं हुआ। अपने इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 15 साल पुराने जजमेंट को भी बरकरार रखा है।
इस पूरे मामले के बारे में जानने के लिए हमें 41 साल पहले वर्ष 1984 में जाना होगा। क्योंकि इस घटना की शरुआत होती है, जब एक युवती का एक ट्यूशन टीचर ने अपने कमरे में बलात्कार किया। ये घटना 19 मार्च 1984 की है। एक व्यक्ति के पास तीन लड़कियां प्राइवेट ट्यूशन लेती थीं। लेकिन उस टीचर की एक लड़की पर नीयत डोल गई। उसने दो लड़कियों को किसी कार्य के बहाने से बाहर भेज दिया।
जैसे ही वे दोनों लड़कियां बाहर गईं तो आरोपी ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और फिर उसने पीड़िता के साथ रेप किया। दोनों लड़कियां दरवाजा खोलने की गुहार लगाती रहीं, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो उन्होंने ये बात पीड़िता की दादी को बताई, इसके बाद वहां पहुंची पीड़िता की दादी ने उसे बचाया। आरोपी की दादागीरी तो देखिए कि जब पीड़ित पक्ष ने एफआईआर दर्ज कराने की कोशिश की तो उन्हें धमकाया गया। बाद में आखिरकार इस मामले में केस दर्ज कर लिया गया था।
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मामले की सुनवाई हुई और ट्रायल कोर्ट ने दो साल के अंदर ही आरोपी को 1986 में दोषी करार दे दिया। लेकिन, आरोपी इसके खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट चला गया। लेकिन, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराने में 26 साल का वक्त लगा दिया। लेकिन, जैसे ही इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला पीड़िता के पक्ष में आया तो आरोपी ने उसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में 15 साल तक रेप के इस मामले पर सुनवाई चलती रही। तारीखें बदलती रहीं, लेकिन आखिरकार वो तारीख भी आ गई, जब पीड़िता को इंसाफ मिला। जस्टिस बी मेहता और प्रसन्ना मेहता की बेंच ने फैसला सुना दिया। आरोपी ने तर्क दिया था कि पीड़िता के प्राइवेट पार्ट्स पर कोई चोट का निशान नहीं था, इसलिए ये रेप नहीं। हालांकि, कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। यहां तक कि अदालत में पीड़िता की मां के चरित्र पर सवाल उठाए गए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता को इंसाफ दे दिया।
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