नई दिल्ली । साल 2020 के दिल्ली दंगों में एक पुलिसकर्मी पर पिस्तौल तानने और हिंसा भड़काने के आरोपी शाहरुख पठान को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है। दिल्ली की एक अदालत ने शुक्रवार को पठान को 15 दिन की अंतरिम जमानत दी, जिसे लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। अदालत ने यह राहत उसके बीमार पिता की देखभाल के लिए दी, लेकिन इस फैसले ने उसकी हिंसक छवि और गंभीर आरोपों को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। क्या एक ऐसा शख्स, जिस पर दंगों में शामिल होने और पुलिस पर हमले जैसे संगीन इल्जाम हैं, इतनी आसानी से जमानत का हकदार है?
हिंसा की तस्वीरों से सुर्खियों में आया शाहरुख
शाहरुख पठान का नाम तब चर्चा में आया, जब 24 फरवरी, 2020 को उत्तर-पूर्वी दिल्ली के मौजपुर चौक पर भड़के दंगों के दौरान उसने पुलिस कांस्टेबल दीपक दहिया पर पिस्तौल तानी। इस घटना की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे, जिसमें वह सड़क पर खुलेआम हथियार लहराते और पुलिस पर निशाना साधते नजर आया था। उस पर एक दंगाई भीड़ का हिस्सा होने का भी आरोप है, जिसने एक व्यक्ति को गोली मारकर घायल कर दिया। इन दंगों में 53 लोगों की जान गई थी और सैकड़ों घायल हुए थे। पठान पर दो अलग-अलग मामलों में मुकदमा चल रहा है, जो उसकी आपराधिक गतिविधियों की गंभीरता को दर्शाता है।
कोर्ट का फैसला : राहत या विवाद?
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश समीर बाजपेयी की अदालत ने पठान को 20,000 रुपये के निजी बांड और समान राशि की जमानत पर 15 दिन की अंतरिम जमानत दी। पठान ने अपनी याचिका में दावा किया कि उसके पिता गंभीर रूप से बीमार हैं और उनकी देखभाल के लिए उसकी मौजूदगी जरूरी है। कोर्ट ने उसके पिता के मेडिकल दस्तावेजों और जांच अधिकारी द्वारा पेश की गई तस्वीरों को देखा, जिसमें उनकी खराब हालत दिखाई गई थी।
अदालत ने कहा- “आवेदक के पिता के खराब स्वास्थ्य को देखते हुए उसे यह राहत दी जा रही है।” लेकिन क्या यह कारण एक ऐसे शख्स को जमानत देने के लिए काफी है, जिसने दंगों के दौरान उन्माद फैलाया हो, जिसने कानून के रखवालों पर ही हमला किया था.? जिसकी तस्वीर पूरी दुनिया ने देखी थी।
सख्त शर्तें, लेकिन मगर सवाल बरकरार
अदालत ने पठान की अंतरिम जमानत के साथ कुछ शर्तें भी रखीं। उसे अपना मोबाइल नंबर पुलिस को देना होगा, फोन हमेशा चालू रखना होगा, किसी गवाह या सह-आरोपी से संपर्क नहीं करना होगा और हर दूसरे दिन पुलिस स्टेशन में हाजिरी देनी होगी। इसके बावजूद, कई लोगों का मानना है कि ये शर्तें उसकी हिंसक पृष्ठभूमि को देखते हुए नाकाफी हैं। हालांकि 15 दिन की अवधि खत्म होने पर उसे जेल अधीक्षक के समक्ष आत्मसमर्पण करना होगा।
दंगों का काला अध्याय और शाहरुख की भूमिका
फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध और समर्थन में हुए प्रदर्शनों के बाद भड़के थे। इन दंगों ने दिल्ली को हिंसा की आग में झोंक दिया था, और शाहरुख पठान उन चेहरों में से एक था, जिन्होंने इस आग को और भड़काने का काम किया। पुलिसकर्मी पर पिस्तौल तानने की उसकी तस्वीर न सिर्फ हिंसा का प्रतीक बनी, बल्कि यह भी सवाल उठाया कि कानून के प्रति ऐसी बेखौफ हरकत करने वाले को कितनी आसानी से राहत मिल सकती है।
जनता की नाराजगी और कानूनी बहस
शाहरुख पठान को अंतरिम जमानत मिलने का फैसला सोशल मीडिया और आम लोगों के बीच बहस का विषय बन गया है। कई लोग इसे कोर्ट का “नरम रवैया” मान रहे हैं, जबकि कुछ का कहना है कि मानवीय आधार पर यह फैसला सही है। लेकिन सवाल यह है कि क्या एक ऐसा शख्स, जिसने न सिर्फ कानून को चुनौती दी, बल्कि समाज में हिंसा को बढ़ावा दिया, उसे इस तरह की छूट दी जानी चाहिए..?
बरहाल शाहरुख पठान की अंतरिम जमानत भले ही 15 दिनों के लिए हो, लेकिन उसके खिलाफ चल रहे मुकदमों का अंतिम फैसला अभी बाकी है। उसकी हरकतों ने समाज में एक गहरी छाप छोड़ी है। अब क्या वह अपनी अंतरिम जमानत की शर्तों का पालन करेगा या फिर यह अवधि नए विवादों को जन्म देगी, यह देखना बाकी है। लेकिन एक बात साफ है—शाहरुख पठान का नाम दिल्ली दंगों के काले अध्याय से कभी अलग नहीं हो सकता।
टिप्पणियाँ