सम्पादकीय

औरंगजेब : इतिहास का काला अध्याय और वामपंथी छल

औरंगजेब की नीतियां केवल मंदिर तोड़ने तक सीमित नहीं थीं। उसने हिंदू धर्म के प्रतीकों और परंपराओं का भी अपमान किया। उसके शासन में गोहत्या को बढ़ावा दिया गया और कई बार हिंदू धार्मिक स्थलों में जान-बूझकर गोमांस फेंकने की घटनाएं हुईं

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हितेश शंकर

औरंगजेब एक बार फिर चर्चा में है। यह पहली बार नहीं है, जब समाज ने उसके नाम पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। इतिहास में कुछ ऐसे नाम हैं, जिन्हें सुनते ही भवें तन जाती हैं, मुट्ठियां भिंच भिंच जाती हैं—और यह किसी पूर्वाग्रह का परिणाम नहीं, बल्कि ऐतिहासिक पीड़ा का स्वाभाविक उबाल है। यह वही पीड़ा है, जिसे वामपंथी इतिहासकार बार-बार ढकने की कोशिश करते हैं, अकादमिक जगत में उसे कुशल प्रशासक के मुलम्मे में लपेटकर न्यायप्रिय साबित करने का प्रयास करते हैं। लेकिन सवाल है कि एक आततायी के कुकर्मों को तर्कों के मुलम्मे से कितने दिनों तक ढका जा सकता है?

हितेश शंकर

आज दो घटनाओं ने औरंगजेब के प्रति समाज के आक्रोश को फिर से भड़का दिया है। एक ओर फिल्म ‘छावा’ के जरिये छत्रपति संभाजी महाराज के विराट व्यक्तित्व को देखने का अवसर पूरे देश और दुनिया को मिला, जिसने लोगों को औरंगजेब की असलियत से रू-ब-रू कराया। दूसरी ओर, सपा नेता अबू आजमी का घृणित बयान, जिसमें औरंगजेब की प्रशंसा की गई, लोगों को नागवार गुजरा। स्मरण रहे, पूरा हिंदुस्थान और विशेषकर महाराष्ट्र के समाज के हृदय में छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके पुत्र संभाजी महाराज के प्रति अगाध श्रद्धा है। यह समाज औरंगजेब के अत्याचारों की स्मृतियों को आज भी जीवंत रखे हुए है।

1689 में औरंगजेब ने धोखे से छत्रपति संभाजी महाराज को बंदी बनाया। उन्हें जो अमानवीय यातनाएं दीं, वे किसी भी सभ्य समाज को विचलित करने वाली हैं। उनकी आंखें फोड़ी गईं, नाखून उखाड़े गए, जुबान काटी गई, लेकिन उन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया। (The Great Marathas– H.S. Sardesai) जब समाज उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि दे रहा हो, जिसने अपने धर्म और मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दी, उसी समय कोई औरंगजेब की प्रशंसा करे, यह अपमानजनक न हीं तो और क्या है?

हाल ही में महाकुंभ संपन्न हुआ। कुंभ भी औरंगजेब की बर्बरता की याद दिलाता है। 1666 में हरिद्वार में औरंगजेब ने कुंभ मेले पर हमला किया और हजारों हिंदुओं का नरसंहार किया। यह केवल हत्या नहीं थी, बल्कि हिंदू आस्था को अपवित्र करने का प्रयास था। (History of Aurangzeb– जदुनाथ सरकार)

औरंगजेब के आदेश पर न केवल काशी और मथुरा के मंदिर ध्वस्त किए गए, बल्कि सोमनाथ मंदिर को भी नष्ट करने का फरमान जारी किया गया था। (History of Aurangzeb)

उन्मादी औरंगजेब ने गुजरात के गवर्नर को पत्र लिखकर निर्देश दिया कि यदि वहां फिर से मूर्ति पूजा शुरू हुई हो, तो उस मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाए। औरंगजेब ने 9 अप्रैल, 1669 को हिंदू मंदिरों को गिराने का आदेश जारी किया। (मआसिर-ए-आलमगीरी, लेखक- साकी मुस्ताद खान एवं वाराणसी गजेटियर)

काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशव देव राय मंदिर और अयोध्या के कई मंदिरों का विध्वंस मुगलों की क्रूरता और मजहबी कट्टरता के प्रमाण हैं।

वामपंथी इतिहासकार यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि पूज्य गुरु तेग बहादुर जी की हत्या राजनीतिक कारणों से हुई थी। लेकिन सचाई यह है कि उन्होंने कश्मीरी हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनसे इस्लाम कबूल करने को कहा गया और जब उन्होंने मना कर दिया, तो उन्हें क्रूरतापूर्व मार दिया गया। इसी कारण उन्हें ‘हिन्द की चादर’ कहा जाता है। (Sri Gur Pratap Suraj Granth-भाई संतोख सिंह)

1679 में औरंगजेब ने हिंदुओं पर जजिÞया कर फिर से लागू किया। जजिया कोई शासकीय कर नहीं था, बल्कि ‘काफिरों’ यानी हिंदुओं से वसूली जाने वाली इस्लामिक रंगदारी थी, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर किया जा सके और अंतत: इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया जा सके। (A Short History of Muslim Rule in India- ईश्वरी प्रसाद)

राजपूतों के प्रति औरंगजेब की नीति पूरी तरह से विस्तारवादी और क्रूर थी। उसने मारवाड़ (जोधपुर) और मेवाड़ (उदयपुर) पर आक्रमण कर हजारों राजपूतों की हत्या करवाई। (Annals and Antiquities of Rajasthan जेम्स टॉड)

औरंगजेब की नीतियां केवल मंदिर तोड़ने तक सीमित नहीं थीं। उसने हिंदू धर्म के प्रतीकों और परंपराओं का भी अपमान किया। उसके शासन में गोहत्या को बढ़ावा दिया गया और कई बार हिंदू धार्मिक स्थलों में जान-बूझकर गोमांस फेंकने की घटनाएं हुईं। (The History and Culture of the Indian People– आर.सी मजूमदार)

औरंगजेब को उदार साबित करने का वामपंथी छल और उसकी वास्तविकता-

  • प्रशासन में हिंदुओं की नियुक्ति करना वास्तव में उसकी सत्ता बनाए रखने की मजबूरी थी, न कि सहिष्णुता। औरंगजेब के सहिष्णु होने और हिंदुओं के प्रति सदाशयता रखने का कोई प्रमाण नहीं मिलता।
  • कुछ मंदिरों को दान देना : यह राजनीतिक चाल थी, लेकिन असल मंशा थी प्रमुख मंदिरों को तोड़ना।
  • न्यायप्रिय होने का दावा:अगर वह न्यायप्रिय होता, तो अपने ही भाइयों को नहीं मरवाता, अपने पिता को कैद में नहीं डालता।

औरंगजेब की प्रशंसा अस्वीकार्य है, क्योंकि यह नाम इतिहास में दर्ज कुछ ऐसे नामों में से है, जिन्हें भूलना कठिन ही नहीं, असंभव है। वह सिर्फ एक शासक नहीं था, बल्कि कट्टर मजहबी आततायी था, जिसने हिंदुओं और सिखों के प्रति अपार क्रूरता दिखाई। जब कोई औरंगजेब की प्रशंसा करता है, तो यह केवल इतिहास को विकृत करने का प्रयास नहीं होता, बल्कि उन लाखों हिंदुस्थानी निर्दोषों के बलिदान का अपमान भी होता है, जिन्होंने उसके आतंक का सामना किया। और इसलिए, जब कोई औरंगजेब का गुणगान करता है—तो भवें तनेंगी ही, मुट्ठियां भिंचेंगी ही और समाज प्रतिक्रिया देगा ही। @hiteshshankar

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