बांग्लादेश के 'मुख्य सलाहकार' मोहम्मद यूनुस और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ (फाइल चित्र)
बांग्लादेश ने ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ पाकिस्तान के माध्यम से 50,000 टन चावल खरीदने पर सहमति जताई थी। इसी माह के आरंभ में इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया। इसके तहत, पहले चरण में पाकिस्तानी कार्गो शिप 25,000 टन चावल लेकर बांग्लादेश के लिए रवाना हो चुका है। 25,000 टन की दूसरी खेप अगले माह के शुरू में भेजी जाएगी।
भारत के परंपरागत रूप से मजहब के आधार पर दुश्मनी की हद तक विरोधी रहे पाकिस्तान को अब पूरब में उसके जैसा ही उन्मादी ‘दोस्त’ मिला है। उसका यह ‘दोस्त’ कभी उसी का हिस्सा हुआ करता था लेकिन पाकिस्तान के बर्बरतापूर्ण व्यवहार से आहतत होकर उससे कटकर स्वतंत्र देश बना था। और पिछले 53 वर्ष से दोनों के बीच न वैसे कूटनीतिक संबंध रहे, न आपस में मिलना रहा।
लेकिन 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में तख्तापलट करने के बाद, जिस प्रकार से मजहबी उन्मादियों की तूती बोल रही है उसमें उस देश को पाकिस्तान अपने पाले में करने की ओर तेजी से बढ़ा है। उसी का नतीजा है कि अब बांग्लादेश और कभी उसके कट्अर शत्रु रहे जिन्ना के देश के बीच 1971 के बाद पहली बार सीधा व्यापार शुरू हुआ है। इस व्यापारिक संबंध के तहत, पहली बार पाकिस्तान का एक पोत कई चीजें लेकर बांग्लादेश के लिए रवाना हो चुका है।
पिछले साल तक स्थितियां बहुत भिन्न थीं। बांग्लादेश की तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को कथित ‘विदेशी मदद’ से कुर्सी से हटाकर यूनुस के नेतृत्व में कट्टरपंथियों की सरकार काम कर रही है। इसलिए कट्टर मजहबी सोच वाले जिन्ना के देश और उसके बीच कम से कम एक मुद्दे पर तो निकटता बननी ही थी, और वह मुद्दा है भारत के प्रति दोनों में जिहादी सोच। इस धरातल पर, दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में नरमाई आती गई। अब हाल यह है कि मोहम्मद युनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और आगे बढ़ाते हुए कई ‘क्षेत्रों’ में ‘निकट सहयोग’ की कसमें खाई हैं।
इस नजदीकी के पहले सबूत के तौर पर इस्लामाबाद भी सकारात्मक रुख दिखाते हुए बांग्लादेश के लिए रसद भेज रहा है। बांग्लादेश ने ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ पाकिस्तान के माध्यम से 50,000 टन चावल खरीदने पर सहमति जताई थी। इसी माह के आरंभ में इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया। इसके तहत, पहले चरण में पाकिस्तानी कार्गो शिप 25,000 टन चावल लेकर बांग्लादेश के लिए रवाना हो चुका है। 25,000 टन की दूसरी खेप अगले माह के शुरू में भेजी जाएगी।
इस कारोबारी सहयोग को बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच दशकों से निष्क्रिय पड़े व्यापार चैनलों को फिर से खोलने की दिशा में एक बड़े कदम के तौर पर देखा जा रहा है। इस व्यापार समझौते से दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध मजबूत होने और ‘डायरेक्ट शिपिंग रूट’ बनने को लेकर जोश दिखाया जा रहा है।
हसीना के तख्तापलट में खास भूमिका निभाने वाली उनकी कट्टर विरोधी रही बांग्लादेश की जमात-ए-इस्लामी पार्टी फिर से मजबूत हुई है। यह जमात इस्लाम के नाम पर खुद को पाकिस्तान के अधिक नजदीक देखती है इसलिए उसके साथ अच्छे संबंधों की हिमायती रही है। इसमें संदेह नहीं कि मोहम्मद यूनुस भी इन इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतों की कठपुतली की तरह हरकतें करते हुए उनके प्रभाव में हैं। यह एक बड़ी वजह है जिसके कारण पहली बार बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच आधिकारिक स्तर पर कारोबारी नाता बना है।
भारत विभाजन के बाद बने पाकिस्तान का ही एक हिस्सा ‘पूर्वी पाकिस्तान’ कहलाता था। यह 1971 में स्वतंत्र होकर बांग्लादेश बना। इसे स्वतंत्र कराने में भारत का महत्वपूर्ण सहयोग रहा, राजनीतिक और रणनीतिक, दोनों मोर्चों पर। मुस्लिम बहुल बांग्लादेश का गठन बांग्ला भाषा और बांग्ला अस्मिता के नाम पर हुआ था। लेकिन पिछले साल 5 अगस्त को शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद, वहां इस्लामिक कट्टरपंथी ताकतें तालिबान की तरह देश को पाषाण युग में लौटा ले जाने की राह पर चल रही हैं।
1971 में नया देश बने बांग्लादेश का जिन्ना के देश से कोई कारोबारी संबंध नहीं रहा था। लेकिन इतने वर्ष बाद, पहली बार दोनों देशों के बीच व्यापारिक समझौता हुआ है। इसी नए व्यापारिक संबंध के तहत, पहली बार पाकिस्तान के चावल पोर्ट कासिम से बांग्लादेश के लिए रवाना हुआ।
इस नए ‘संबंध’ को लेकर विशेषज्ञ आशंकित हैं। उन्हें लग रहा है कि पाकिस्तान सहयोग की आड़ में बांग्लादेश के कट्टर मजहबी तत्वों को शह देगा। उनमें भारत विरोध का जहर और तीखा करेगा। बहुत संभव है, पाकिस्तान की इस रणनीति का सबक उसे कम्युनिस्ट चीन से मिला हो, क्योंकि चीन भी दुनिया के इस हिस्से में भारत की बढ़ती ताकत को पचा नहीं पा रहा है। संभव है, उसकी योजना भारत को बांग्लादेश की ओर से भी घेरने की हो। इस दिशा में भारत के रणनीतिकारों और सुरक्षा विशेषज्ञों को विशेष नजर रखनी होगी। देखना होगा कि कहीं चीन का पिट्ठू जिन्ना का देश बांग्लादेश को अपने शैतानी मंसूबों का भी साझेदार न बना ले।
Leave a Comment