एक समय था जब कहा जाता था कि अंग्रेजों के राज में सूरज कभी नहीं डूबता है। अर्थात इतना बड़े भूभाग पर उनका अधिकार था। हालांकि अब ऐसा नहीं है, अब सूरज डूबता भी है और उगता भी है। मगर फिर भी एक विषय ऐसा है, जिसके विषय में कहा जा सकता है कि उसका अंधेरा ब्रिटेन से लेकर भारत तक एक ही तरह है। वह है किशोरियों की सेक्शुअल ग्रूमिंग का अंधेरा। इसमें किशोरियों को यह पता ही नहीं चलता है कि कब वे एक संगठित और सुनियोजित अपराध का शिकार हो गई हैं।
हालांकि भारत में राजस्थान में ब्यावार जिले में जो मामला सामने आया है, वैसा मामला नया नहीं है। भारत में अजमेर में पहले यह कांड हो चुका है, जिसमें सैकड़ों लड़कियां एक संगठित अपराध का शिकार हो गई थीं। मगर इन लड़कियों की पीड़ा का स्वर स्थाई ही रहा, क्योंकि अपराधी कानून की पकड़ से बाहर थे और 1992 में हुए संगठित अपराध के लिए वर्ष 2024 में सजा दी गई।
मगर यह अपराध ऐसा नहीं था कि केवल भारत के अजमेर में ही हो रहा था, जहां पर नफीस चिश्ती, नसीम उर्फ टार्जन, सलीम चिश्ती, सोहिल गनी, सैयद जमीर हुसैन और इकबाल भाटी को सजा मिली थी। क्या इसे संयोग कहा जाएगा कि वर्ष 1992 में जब भारत में अजमेर में बच्चियों के साथ इतना घिनौना अपराध सामने आया था, तो वहीं उससे कुछ वर्ष बाद ही या कहें उसी दौरान ब्रिटेन में भी श्वेत ईसाई किशोरियों के साथ यही घिनौना अपराध हो रहा था।
वर्ष 2014 में गार्डीअन में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ था कि रोदेरहम में पिछले 16 वर्षों की अवधि में लगभग 1400 बच्चों के साथ बहुत ही सुनियोजित तरीके से शोषण हुआ। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार 11 वर्ष तक की बच्चियाँ इस संगठित अपराध का शिकार हुईं थीं।
और ऐसे ही न जाने कितनी पीडिताऐं थीं। पीड़ाओं का आरंभ लालच से हुआ। वह लालच जिसमें एक बच्ची या किशोरी सहज ही विश्वास कर लेती है, क्योंकि उसका कोमल मन इस बात के लिए तैयार ही नहीं होता कि उसकी निश्छलता का भी कोई लाभ उठा सकता है।
वे किशोरियाँ, जिन्हें यह नहीं पता होता है कि उनके वस्त्र या उनका गैर-मजहब का होना ही वह कारण हो सकता है, जो उन्हें दूसरे की नजर में केवल एक वस्तु ही बना देता है। ब्रिटेन में ग्रूमिंग गैंग्स की जो पीड़िताएं अभी अपनी कहानी बताती हैं, वे इस बात को लगातार कहती हैं कि उन पर नस्लीय टिप्पणियाँ की जाती थीं और उनके कपड़ों के आधार पर उन्हें सहज उपलब्ध माना जाता था।
मगर इस उपलब्धता के भ्रम के कारण जो उनके साथ हुआ, वह भयावह था। भारत हो या ब्रिटेन, ऐसी किशोरियों के लिए अंधेरा ही कायम रहा। उन्हें देह व्यापार के धंधे में धकेला गया। यह किसी भी लड़की के साथ किया जाने वाला सबसे घिनौना अपराध है। और प्रश्न यह उठता है कि आखिर अजमेर से लेकर ब्रिटेन और फिर अब राजस्थान के ब्यावार तक इन किशोरियों का अपराध क्या था, जो इन्हें ऐसे संगठित अपराध के जाल में फँसाया गया?
ब्रिटेन के ग्रूमिंग गैंग्स की कहानियाँ और पीड़ाएं और इसके साथ ही पीड़िताओं की पीड़ा का नकार हाल ही में फिर से चर्चा में आया था, जब सोशल मीडिया पर एलन मस्क ने इस मामले को उठाया था। बहुत हंगामा हुआ और पीड़िताओं ने आगे आकर अपनी कहानी भी बताई कि कैसे उन्हें तोहफों आदि के साथ बरगलाया जाता था, और फिर जब वे जाल में फंस जाती थीं, तो उन्हें किसी और के साथ भेज दिया जाता था।
जब सोशल मीडिया पर हम ब्रिटेन के ग्रूमिंग गैंग्स के विषय में बात कर रहे थे, उस समय यह नहीं पता था कि भारत में ही राजस्थान में एक बार फिर से किशोरियाँ केवल अपनी धार्मिक पहचान के कारण निशाने पर हैं। उन्हें भी ऐसे ही जाल में फँसाया गया।
वहाँ पर भी नाबालिग लड़कियों को मोबाइल फोन देकर उन्हें अपने जाल में फँसाया। और उनके साथ बलात्कार किया। चूंकि मामला नाबालिग लड़कियों से जुड़ा हुआ है, तो कई लड़कियां डर और लोक लाज के कारण अपना मुंह नहीं खोलती हैं। वहीं इस मामले में जो बच्चियाँ सामने आई हैं, उनमें से एक ने बताया कि कैसे उन्हें स्कूल जाते समय रास्ते में रोककर जबरन दोस्ती का दबाव डालते थे और फिर कहा कि मजहब छिपाकर दोस्ती की और फिर रेस्टोरेंट ले जाकर अश्लील वीडियो और फ़ोटो लेने के बाद ब्लैकमेल करते थे।
मगर केवल ब्लैकमेल ही नहीं करते थे, वह उन लड़कियों पर सहेलियों से दोस्ती कराने का दबाव डालते थे। पीड़िता ने जो चौंकाने वाला खुलासा किया है उसमें जाति के आधार पर लड़कियों को फँसाने की बात की है। पीड़िता ने यह भी बताया कि उसे बुर्का पहनने, और रोज़े रखने के लिए भी दबाव डाला गया।
हालांकि इस मामले के सामने आने के बाद रिहान मोहम्मद,सोहेल मंसूरी,लुकमान, अरमान पठान,साहिल कुरैशी को हिरासत में ले लिया गया है। मगर फिर भी जो बात गौर करने वाली है वह यह कि 1992 में अजमेर की लड़कियों की पीड़ा हो, या फिर ब्रिटेन के पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग्स की पीड़िताओं की पीड़ा, या फिर अब ब्यावार में इन किशोरियों की पीड़ा, इन सबका स्वर एक ही है।
इन सभी की देह अपने धार्मिक या सांस्कृतिक अंतर के कारण निशाना बनी, और इससे भी बढ़कर यह कि दशकों से चली आ रही इन पीड़ाओं को विमर्श में स्थान नहीं मिलता। पीड़ाएं बढ़ती रहती हैं, पीड़ाओं का दायरा बढ़ता रहता है, पीड़ाओं को अपने भीतर समाने वाली लड़कियां बदलती रहती हैं, मगर नहीं बदलती है तो विमर्श में वह चुप्पी जो इन लड़कियों की धार्मिक पहचान के कारण विमर्श में हमेशा बनी रहती है।
भारत से लेकर ब्रिटेन तक धार्मिक पहचान के कारण होने वाले यौन शोषण की पीड़ा का अंधेरा एक सा ही है।
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