प्रयागराज महाकुम्भ में पहुंचने वालों की संख्या 55 करोड़ को भी पार कर गई है। देश की लगभग आधी आबादी का यहां पहुंचना समाज विज्ञानियों के लिए भी एक विश्लेषण और शोध के लिए प्रेरित करता है। देश में सामाजिक व्यवस्था पर हो रहे परिवर्तन पर अध्ययन करने वाले शीर्षस्थ मंच गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान के शोधार्थियों ने अपने शोध में नारी सहभागिता को लेकर जो प्रारम्भिक निष्कर्ष सामने आए हैं वह मौजूदा समाज की सोच का खाका खींच रही है। संस्थान के निदेशक प्रो बद्री नारायण और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अर्चना सिंह के नेतृत्व में यह शोध चल रहा है।
डॉ. अर्चना सिंह का कहना है कि महाकुम्भ के विभिन्न एंट्री पॉइंट्स और स्नान घाटों पर उनके अध्ययन दल के सदस्य मौजूद हैं जो अभी भी महा कुम्भ आने वाली आबादी के विभिन्न पहलुओं पर उनसे बातचीत कर उनके बिहेवियर और उनकी सोच को समझने का प्रयत्न कर रही है। डॉ अर्चना का कहना है कि महाकुम्भ आ रही आबादी में आधी आबादी की संख्या 40 फीसदी से अधिक है। इसके पूर्ववर्ती कुम्भ के आयोजनों से यह संख्या अधिक है। इसमें नगरीय क्षेत्र से आने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ी है खासकर 18 से 35 आयु वर्ग से ,जो कई तरह के संकेत दे रही है।
प्रयागराज महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं में नारी शक्ति की संख्या में इस बार अधिक बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है। लेकिन सहभागिता के साथ इसके पीछे के कारक अधिक महत्वपूर्ण हैं। शोध दल की समन्वयक डॉ अर्चना सिंह का कहना है कि इस बार महाकुम्भ में विमेन ओनली ग्रुप की महिलाओं की संख्या अधिक थी जो किसी पुरुष के साथ नहीं बल्कि अकेले आई थी। इसकी वजह एक तरफ अगर उनके शिक्षा की बेहतर स्थिति है तो वहीं दूसरी तरफ खुद को अब वह अधिक सुरक्षित समझ रही है। प्रदेश में सुरक्षित वातावरण से वह घर से भी निकली है और अपने को व्यक्त भी कर रही है। अभी तक जो घर में पूजा अर्चना तक खुद को सीमित रखती थी अब वो सनातन को भी समझने के लिए आगे आई हैं।
महाकुम्भ अध्ययन दल की इस 17 सदस्यीय टीम के निष्कर्ष में यह भी बात सामने आई है कि अब धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं का दृष्टिकोण भी बदला है। शोध दल की सीनियर फेलो डॉ नेहा राय का कहना है कि महाकुम्भ में अखाड़ों और उनके धर्माचार्यों का दृष्टिकोण भी इस बार नारी शक्ति के प्रति अधिक उदारवादी रहा है। अखाड़ों में महिला श्रद्धालुओं को सम्मान और स्वीकृति भी बढ़ी है। इससे सनातन को समझने में उनकी ललक बढ़ी है। इसी दल की शोध सदस्या डॉ प्रीति यादव का कहना है कि बहुत सी महिलाओं ने अखाड़ों के साधु संतों और धर्माचार्यों के सामने अपनी जिज्ञासा और अपने विमर्श भी दिए, जिससे साधु संतों को भी सनातन के विस्तार के लिए रास्ता बनाने में आसानी होगी।
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