गत 19 जनवरी को बरगांव (मध्य प्रदेश) स्थित जनजातीय कल्याण केंद्र में जनजातीय नृत्य महोत्सव आयोजित हुआ। इसका उद्घाटन श्री श्री 108 नागा साधु भगतगिरि बच्चूजी महाराज और श्री श्री 108 नर्मदानंद जी महाराज ने किया। इस अवसर पर जनजातीय कला केंद्र के अध्यक्ष मनोहर साहू, विधायक ओम प्रकाश धुर्वे, बैगा कलाकार पद्मश्री अर्जुन आदि की उपस्थिति रही। महोत्सव में जनजातीय कलाकारों के प्रदर्शन ने सबका मन मोह लिया। विशेष बात यह रही कि इन कलाकारों के आने-जाने, रुकने और भोजन की व्यवस्था भी जनजातीय कल्याण केंद्र द्वारा की गई थी।
उद्घाटन सत्र में जनजातीय कल्याण केंद्र के छात्रावास के बालकों ने पारंपरिक वेशभूषा में सैला नृत्य प्रस्तुत किया। महोत्सव में सुआ नृत्य, सैला नृत्य, बैगा नृत्य, करमा नृत्य, रीना नृत्य, गैड़ी नृत्य आदि नृत्यों का प्रदर्शन किया गया। पांच मंचों पर 87 दलों ने जनजातीय नृत्य-संगीत की प्रस्तुति दी। इनके नृत्य और गीतों में देव पूजा, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक संस्कार, ऋतु चक्र, रोजमर्रा जीवन एवं धरती मां की झलक मिली। नृत्यों में नर्तकों के सामंजस्य, परंपरागत वाद्य यंत्रों के प्रयोग, पद संचालन की कुशलता एवं चपलता ने सबको चकित कर दिया। जनजातियों ने इन नृत्यों में मांदर, टिमकी, गुदुम्ब, ठिसकी, चुटकी, सिंगबाजा, अलगोझा, चरकुला, झांझ-मंजीरा आदि वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया।
![](https://panchjanya.com/wp-content/uploads/2025/02/p48-png.webp)
ये जनजातीय नृत्य पारंपरिक वेशभूषा में प्रस्तुत किए गए, जिनमें मोरपंख, कौड़ी, पत्थरों की बनी मालाएं, विभिन्न जानवरों के मुखौटे, पैर में पैजना, गले में रंग-बिरंगी सूत माला, बांह में नाग मौरी, सिर पर पगड़ी आदि सम्मिलित हैं। नृत्यों के प्रदर्शन के बाद 87 दलों ने बड़ादेव अर्थात् महादेव के चारों ओर परिक्रमा कर सामूहिक नृत्य किया। इसकी अद्भुत छटा और ऊर्जा ने दर्शकों को भी थिरकने पर मजबूर कर दिया। ऐसा लग रहा था मानो बड़ादेव स्वयं इस नृत्य में शामिल होकर सबको आशीर्वाद दे रहे हों।
अंत में प्रतियोगिता के निर्णय की घड़ी आई, जिसमें बजाग के गोपाल सिंह को प्रथम स्थान, बरसौद के सैला नृत्य को द्वितीय और बालाघाट के बरकत सिंह के दल को तृतीय स्थान मिला। साथ ही दस दलों को सांत्वना पुरस्कार दिए गए। पुरस्कार वितरण समारोह मध्य प्रदेश सरकार के जन स्वास्थ्य और अभियांत्रिकी मंत्री संपतिया उइके एवं संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र सिंह लोधी के आतिथ्य में संपन्न हुआ। संपतिया उइके ने कहा कि यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि इन नृत्य दलों ने हमारी संस्कृति, परंपरा, रीति-रिवाज, प्रकृति की उपासना आदि की प्रस्तुति कर युवा पीढ़ी को इन्हें संजो कर रखने की सीख दी। धर्मेंद्र सिंह लोधी ने प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी 87 दलों को 5,001 रु. की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि संस्कृति मंत्रालय के माध्यम से बरगांव में प्रत्येक वर्ष दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
आज के बदलते युग मे जहां सिनेमाई संगीत गांव-गांव के युवाओं तक पहुंच चुका है। उससे स्वयं की संस्कृति पर खतरा मंडराने लगा है, वहीं दूसरी ओर गैर-जनजातीय समाज भी इन गीतों और नृत्यों में रची-बसी अपनत्व की महक और प्रकृति का संदेश भूल चुका है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए जनजातीय कल्याण केंद्र के स्वयंसेवकों ने मध्य प्रदेश के डिंडौरी, मंडला, शहडोल, उमरिया एवं छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों का भ्रमण किया। यह कार्य लंबे समय तक चला और उसी का परिणाम रहा यह महोत्सव।
टिप्पणियाँ