जीत का जश्न मनाते भाजपा के कार्यकर्ता
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दो-तिहाई सीटें हासिल कर पिछले तीन चुनाव से सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आआपा) को करारी मात दी है। यहां तक कि पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज सहित पार्टी के तमाम दिग्गज भी अपनी सीट न बचा सके। हालांकि निवर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना कालकाजी सीट से जीत गई, जो अंतिम दौर की गिनती तक पीछे चल रही थीं। गाजे-बाजे के साथ आआपा में शामिल किए गए शिक्षक अवध ओझा पटपड़गंज सीट से बुरी तरह चुनाव हार गए। दिल्ली जीत के साथ यह 19वां राज्य होगा, जिसमें भाजपा या उसके गठबंधन की सरकार है। पुरातन पार्टी कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव में शून्य की हैट्रिक लगाई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 4.26 प्रशित था, जो इस बार लगभग 2 प्रतिशत की मामूली वृद्धि के साथ 6.34 प्रतिशत हो गया। लेकिन इस बार भी वह दिल्ली में अपना खाता नहीं खोल सकी। शीला दीक्षित के बाद कांग्रेस दिल्ली में किसी को चेहरा नहीं बना सकी और संगठनात्मक रूप से कमजोर होती चली गई।
भाजपा ने दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से 48 सीटें जीतकर बहुमत का आंकड़ा हासिल किया। इस बार कुल 60.54 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2020 से लगभग ढाई प्रतिशत कम है। उस समय आआपा ने 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी और भाजपा ने 8। इस चुनाव में भाजपा की जीत के साथ दिल्ली में 2013 से चल रहा आम आदमी पार्टी का राज समाप्त हो गया। अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली से हार गए. भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रवेश वर्मा ने उन्हें 4,000 से अधिक वोटों से पटकनी दी। इस प्रतिष्ठापूर्ण सीट पर दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित भी कांग्रेस पार्टी से चुनाव मैदान में थे, जो तीसरे स्थान पर रहे। यह सीट इसलिए महत्वपूर्ण होती है कि यहां इतिहास ने अपने आप को दोहराया है। केजरीवाल ने यहीं से 2013 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकर अपनी चुनावी राजनीति की शुरुआत की थी। इस हार के साथ केजरीवाल का घमंड भी चकनाचूर हो गया। वह बार-बार यह कहते थे कि ‘इस जन्म में भाजपा उन्हें हरा नहीं पाएगी।’ इस चुनाव की खास बात यह थी कि भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए कोई दावेदार पेश नहीं किया था। तमाम चुनावों में अपनी सफल रणनीति को दोबारा आजमाते हुए पार्टी यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही चुनाव मैदान में उतरी, जिस पर जनता ने पूरा भरोसा जताया। भाजपा ने इस चुनाव में बूथ स्तर तक मेहनत की और पार्टी के कार्यकर्ता आआपा सरकार की विफलताओं को जनता तक पहुंचाने में कामयाब रहे।
विभिन्न मामलों में जेल गए आम आदमी पार्टी के तमाम नेता चुनाव हारे हैं। अदालत का फैसला भले ही देर से आए, लेकिन जनता ने इनके ‘दागदार’ होने पर मुहर लगा दी है। अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में जमानत पर हैं। मनीष सिसोदिया भी इसी मामले में जमानत पर हैं। चुनाव में भाजपा की ऐसी आंधी चली की मनीष सिसोदिया भी जंगपुरा सीट से चुनाव हार गए। इसके अलावा, धनशोधन मामले में जमानत पर चल रहे पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन शकूर बस्ती सीट से, पत्नी पर जुल्म ढहाने के आरोपी सोमनाथ भारती मालवीय नगर सीट और दिल्ली दंगों के आरोपी आरोपी ताहिर हुसैन भी हार गए। एआईएमआईएम के उम्मीदवार ताहिर हुसैन की तो जमानत जब्त हो गई। हालांकि, जेल यात्रा कर चुके अमानतुल्लाह खान चुनाव जीतने में कामयाब रहे।
अण्णा आंदोलन, झूठे वादों, शीशमहल और शराब घोटाले में तिहाड़ जेल होते हुए उनकी राजनीतिक कहानी अब विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद पटाक्षेप की तरफ बढ़ चली है। केजरीवाल और आआपा की हार के कारणों का जब-जब विश्लेषण किया जाएगा, तब-तब इस पर चर्चा होगी कि दिल्ली में जिन मुद्दों पर उसने राजनीति शुरू की, सत्ता हासिल की, उन्हीं में घिरकर वह रसातल में पहुंच गई। सबसे बड़ा मसला भ्रष्टाचार ही है। केजरीवाल सभी राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते आ रहे थे। कभी दस्तावेज दिखाते थे, तो कभी सूची जारी करके गिनाते थे कि कौन नेता कितना भ्रष्ट है। वह स्वयं को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में सबसे बड़े ‘चैम्पियन’ के तौर पर पेश करते थे, लेकिन खुद ही भ्रष्टाचार के दलदल में धंसे नजर आए। शराब घोटाले में पहले मनीष सिसोदिया और फिर बाद में खुद केजरीवाल जेल गए। अरविंद केजरीवाल का कार्यकाल शराब की नदी बहाने के लिए भी याद किया जाएगा। नई आबकारी नीति के तहत गली-गली में शराब की दुकानें, एक के साथ एक मुफ्त और भारी छूट के साथ शराब बिक्री से दिल्ली का नागरिक और विशेष तौर पर महिलाएं आजिज थीं। इन्हीं महिलाओं की बदौलत केजरीवाल बंपर जीत के साथ सत्ता में आए थे। दिल्ली में पहला विधानसभा चुनाव 1993 में हुआ था। तब मदनलाल खुराना के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी। 1998 में शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं और लगातार तीन बार इस पद पर रहीं। 2013 में शीला दीक्षित को हराकर आआपा सत्ता में आई और तब से दिल्ली की सत्ता पर काबिज थी।
दूसरा अहम पहलू केजरीवाल के हवाई विकास मॉडल और वे तूफानी वादे थे, जो कभी हकीकत न बन सके। सोशल मीडिया पर आपको आज भी केजरीवाल के वे वादे गूंजते सुनाई देंगे, जिसमें वह दिल्ली को ‘पेरिस’ तो कभी ‘वेनिस’ बनाने का वादा करते रहे। दिल्ली झीलों का शहर तो न बना, लेकिन जलभराव की राजधानी जरूर बन गया। दिल्ली 2013 से यमुना की सफाई का उनका वादा सुनती आ रही थी, लेकिन आज भी यमुना झाग वाला जहरीला नाला ही है। अपनी ‘हिट एंड रन’ की राजनीति से अभी तक कामयाब हासिल करते रहे केजरीवाल ने दबाव और हताशा में यह दावा कर दिया कि हरियाणा की सरकार ने यमुना के पानी में जहर मिला दिया है। बात यहीं तक नहीं थी, उन्होंने यह दावा भी किया उनके इंजीनियरों ने इस ‘जहर’ को दिल्ली पहुंचने से रोक दिया। इस तरह चुनाव में यमुना में प्रदूषण बड़ा मुद्दा बना और अपने बचकाना आरोपों से वह घिरते चले गए। चुनाव आयोग ने बार-बार उनके इस आरोप के सुबूत मांगे, तो केजरीवाल अपनी परंपरागत शैली में आयोग की नीयत पर ही सवाल उठाने लगे। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने यमुना का पानी पी कर केजरीवाल को भी ऐसा करने की चुनौती दी। बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी उन्हें चुनौती दी कि उन्होंने अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में डुबकी लगाई है, केजरीवाल भी यमुना में डुबकी लगाकर दिखाएं। कुल मिलाकर यमुना का ‘जहर’ केजरीवाल को ही ले डूबा।
केजरीवाल अपनी हर विफलता के लिए दूसरों को कटघरे में खड़ा करते आ रहे थे। दिल्ली इससे ऊब चुकी थी। दिल्ली कभी उपराज्यपाल और कभी केंद्र सरकार पर अपनी विफलता का ठीकरा फोड़ने वाली उनकी राजनीति को समझ चुकी थी। केजरीवाल जिस शिक्षा मॉडल और मोहल्ला क्लीनिक का दंभ भरते थे, वह भूल रहे थे कि उनका वोटर उनके इन दावों की हकीकत को रोज देखता और भोगता है। हकीकत न तो केजरीवाल देखना चाहते थे और न ही उनके द्वारा प्रायोजित मीडिया संस्थान और स्वयंभू पत्रकार। मुफ्त पानी का वादा करके सत्ता में आई केजरीवाल व बाद में आतिशी सरकार में दिल्ली का एक बहुत बड़ा इलाका पानी के लिए तरसता रहा। टैंकर माफिया के जरिये पार्टी के नेताओं का एक सिंडिकेट दिन-रात मोटी कमाई कर रहा था। दिल्ली की सड़कें गड्ढों में बदल चुकी हैं। जल निकासी की व्यवस्था दम तोड़ रही है, जिससे हल्की सी बारिश में दिल्ली की सड़कें तालाब बन जाती हैं। मुफ्त बिजली का वादा दिल्ली में अघोषित पावर कट में तब्दील हो चुका था।
केजरीवाल के सफर को नीली वैगन-आर से सैकड़ों करोड़ रुपये के शीशमहल के सफर के तौर पर भी देखा जा रहा है। उनकी टीम ने पुरानी नीली वैगन-आर में मफलर बांधकर बैठा खांसता सा आम आदमी की छवि तैयार की थी, जिसने बच्चों तक की कसमें खाईं कि न बंगला लेंगे, न सुविधाएं। फिर जनता ने इसी दिल्ली में महंगी एसयूवी के काफिलों में चलते सीएम को देखा। दिल्ली ने यह भी देखा कि कैसे एक व्यक्ति ने कोरोना में मरते लोगों को छोड़कर अपने लिए सैकड़ों करोड़ का शीशमहल बनवाया। इस शीशमहल के परदे से लेकर कमोड तक की लग्जरी की कहानियां पूरी दिल्ली की जुबान पर थी। दिल्ली ने यह भी देखा कि दूसरों पर परिवारवाद का आरोप लगाने वाले केजरीवाल के जेल जाते ही उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ‘सुपर सीएम’ की हैसियत में आ गई थीं। जनता यह देख रही थी कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान की सरकारें कैसे अपने वादों को पूरा कर रही हैं। एक तरफ ‘डिलीवरेंस’ था और दूसरी तरफ प्रशासनिक विफलता, बहानेबाजी और झूठे आरोप। लोकतंत्र की खूबसूरती यही है, यदि आप जन-जीवन को सुगम और सुविधाजनक नहीं बना सकते, तो आप ठुकरा दिए जाएंगे।
अरविंद केजरीवाल पूरे चुनाव अभियान में दिल्ली को यह नहीं समझा सके कि वह 10 साल में राजधानी को लंदन या पेरिस तो छोड़िए, साफ हवा में सांस लेने वाला शहर क्यों नहीं बना सके? आआपा दिल्ली को यह नहीं बता सकी कि हर बार पांच साल की मोहलत मांगने वाले अरविंद केजरीवाल यमुना साफ क्यों नहीं कर सके? टीम केजरीवाल लोगों के इस सवाल का जवाब देने में नाकाम रही कि आम आदमी होने का दावा करने वाले केजरीवाल ने अपने लिए शीशमहल क्यों बनाया? शिक्षा का नायाब मॉडल तैयार करने का दावा करने वाली आआपा इस बात को नहीं झुठला पाई कि उसके स्कूल, कालेज और यूनिवर्सिटी सिर्फ कागजी और हवाई हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता और अरविंद केजरीवाल के गुरु अण्णा हजारे बार-बार कहते रहे हैं कि केजरीवाल अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। हाल ही में उन्होंने कहा था कि उनके दिमाग में पैसा बैठ गया और वे पैसे के पीछे भागने लगे। दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम आने के तुरंत बाद भी उन्होंने अपनी बात दोहराई। उन्होंने केजरीवाल को फिर से नसीहत देते हुए कहा, ‘‘मैं लंबे समय से कहता रहा हूं कि उम्मीदवार का आचार, विचार और चरित्र शुद्ध होना चाहिए। केजरीवाल को बहुत समझाया, लेकिन उन्होंने समाज के बारे में नहीं सोचा और राजनीति में चले गए। वे शराब में लिप्त रहे। उनकी छवि खराब रही, इस वजह से इन्हें कम वोट मिले हैं। मुझे उनसे बहुत उम्मीद थी, लेकिन वह रास्ता छोड़ गए।’’
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