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स्वास्थ्य सेवाएं ‘वेंटिलेटर’ पर

दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा उपकरणों की ही नहीं, डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की कमी एक गंभीर समस्या है, जो हाल ही में विभिन्न रपटों में उजागर हुई है

by बरखा दुबे
Feb 3, 2025, 08:34 am IST
in विश्लेषण, दिल्ली
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आआपा ने 2015 के विधानसभा चुनाव में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के बड़े-बड़े वादे किए थे। सत्ता में आने के बाद केजरीवाल सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक, मुफ्त इलाज, 30 जानलेवा बीमारियों के लिए मुफ्त इलाज, मल्टी-स्पेशलिटी पॉलीक्लिनिक्स, अस्पतालों में बिस्तरों की क्षमता बढ़ाकर 30,000 करने का खूब प्रचार किया। लेकिन कोरोना महामारी ने उन दावों की पोल खोल दी। न अस्पतालों में आक्सीजन उपलब्ध थी और न ही मरीजों के लिए बिस्तर। यह थी दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की वास्तविक स्थिति थी।

सत्ता में आने के बाद आआपा सरकार ने स्वास्थ्य बजट 2015 में 2,500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2019-20 में 7,484 करोड़ रुपये कर दिया। दावा किया कि इस राशि से बुनियादी ढांचे में सुधार, स्वास्थ्य पेशेवरों की नियुक्त और प्राथमिक चिकित्सा का विस्तार किया जाएगा। लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं दिखी। केजरीवाल सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक मॉडल भी लागू किया।

कहने को मोहल्ला क्लीनिक गरीबों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती है, लेकिन कोराना काल में दूर-दूर तक मोहल्ला क्लीनिक कहीं दिखे ही नहीं। इसी तरह, पॉलीक्लीनिक की सेवाएं भी सवालों के घेरे में हैं। अस्पतालों में 30,000 बिस्तर उपलब्ध कराने के दावे करने वाली आआपा सरकार अभी तक मात्र 394 बिस्तर ही जोड़ पाई। आआपा सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मरीजों की नि:शुल्क सर्जरी के लिए मौजूदा औषधालयों को बहु-विशिष्ट पॉलीक्लीनिकों में बदला और 41 निजी अस्पतालों के साथ साझेदारी की। लेकिन प्रशासनिक जटिलताओं के कारण योजनाओं की गति धीमी रही।

प्रशासनिक विफलताएं

6 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति की विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली के अस्पतालों में बिस्तरों, डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की भारी कमी है, विशेषकर महत्वपूर्ण विभागों जैसे, एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर में। कई सरकारी अस्पतालों में आवश्यक चिकित्सा उपकरण भी नहीं हैं, जैसे कि आईसीयू बेड, वेंटिलेटर, सीटी स्कैन मशीनें, और एमआरआई मशीनें। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, सरकारी अस्पतालों में 34 प्रतिशत डॉक्टरों, 29 प्रतिशत पैरामेडिकल स्टाफ और 66 प्रतिशत मेडिकल लेक्चरर की कमी है। साथ ही, प्रशासनिक कर्मचारियों की भी कमी है, जिससे अस्पतालों की कार्य क्षमता पर असर पड़ा है। दिल्ली के कई बड़े अस्पतालों, जैसे एलएनजेपी, दीन दयाल उपाध्याय और इंदिरा गांधी अस्पताल में दवाओं का स्टॉक खत्म होने के कारण मरीजों को बिना इलाज लौटना पड़ता है।

केजरीवाल के स्वास्थ्य मंत्री भी कई बार कह चुके हैं कि दिल्ली के अस्पताल और डिस्पेंसरियां दवाओं की कमी से जूझ रही हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र की कायापलट के आआपा सरकार के दावों की पोल नीति आयोग की रिपोर्ट ‘स्वस्थ राज्य, प्रगतिशील भारत’ खोलती है। इसके अनुसार, स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में दिल्ली 50.2 अंकों के साथ 7 केंद्र शासित प्रदेशों में पांचवें स्थान पर है। यहां तक कि दिल्ली उच्च न्यायालय भी अस्पतालों की स्थिति पर चिंता जता चुका है। वास्तव में दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा को ही इलाज की जरूरत है। आआपा सरकार की नीतियों में अपारदर्शिता, योजना का अभाव और प्रशासनिक अक्षमता इसका सबसे बड़ा कारण है।

भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला कहते हैं, ‘‘आआपा ने दिल्ली को लाहौर से भी बदतर स्थिति में ला दिया है। आज दिल्ली का हाल यह है कि लोग बिना मास्क लगाए घर से बाहर नहीं निकल सकते। दिल्ली प्रदूषण के मामले में लाहौर को भी पीछे छोड़ चुकी है। दिल्ली का एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) 500-600 के स्तर को पार कर चुका है, जो बेहद खतरनाक स्थिति को दर्शाता है। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने के बजाय दोषारोपण की राजनीति में लगी रहती है। वे उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दीपावली को जिम्मेदार ठहराते हैं। पहले पंजाब में पराली जलाने के कारण प्रदूषण बढ़ने का आरोप लगाते थे, लेकिन अब जबकि पंजाब में उनकी सरकार है, तो वे इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह दिखाता है कि आआपा सरकार प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या का समाधान निकालने में पूरी तरह विफल रही है और इसका खामियाजा दिल्ली की जनता को भुगतना पड़ रहा है।’’

मोहल्ला क्लिनिक में फर्जीवाड़ा

मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया की एथिक्स कमेटी के सदस्य रह चुके डॉ. राजेंद्र ऐरन कहते हैं, ‘‘स्वास्थ्य विभाग ने 2023 में 7 मोहल्ला क्लीनिकों के तीन महीने (जुलाई-सितंबर) का रिकॉर्ड खंगाला था। पता चला कि डॉक्टर क्लीनिक आते ही नहीं थे। वे पहले से रिकॉर्डेड वीडियो के जरिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाते थे। उनकी गैर-मौजूदगी में भी पर्ची पर टेस्ट और दवाएं लिखी जा रही थीं। बाद में पता चला कि ये टेस्ट फर्जी मरीजों पर किए जा रहे थे। यानी ऐसे मरीजों को लैब टेस्ट कराए जा रहे थे जो वास्तव में थे ही नहीं। इन्हें ‘घोस्ट पेशेंट’ कहा जाता है।

लगभग 500 रोगियों के टेस्ट प्रत्येक मोहल्ला क्लीनिक पर रोज किए जा रहे थे। इतने रोगी तो मोहल्ला क्लीनिक में आते ही नहीं थे। एगिलिस डाइयग्नास्टिक और मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर, इन दो प्राइवेट लैब को अनैतिक फायदा पहुंचाने के लिए यह फर्जीवाड़ा हो रहा था। जांच में 7 मोहल्ला क्लीनिकों में 11,657 पर्चियां ऐसी मिलीं, जिनमें मरीज का मोबाइल नंबर जीरो लिखा हुआ था।

8,251 मामलों में मोबाइल नंबर की जगह खाली थी, जबकि 3,092 में मोबाइल नंबर ‘9999999999’ लिखे गए थे। 400 प्रविष्टियां ऐसी थीं, जिनमें 1-5 अंक से शुरू होने वाले फोन नंबर थे, जबकि इन अंकों से कोई फोन नंबर शुरू नहीं होता। 999 मामलों में 15 या उससे ज्यादा मरीजों के नाम के आगे एक ही नंबर लिख दिया गया था।

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