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नाम बड़े दर्शन छोटे

समाचार पत्रों से लेकर टीवी के विज्ञापनों तक में आआपा सरकार अपने कथित ‘वर्ल्ड क्लास’ स्कूलों और बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था का ढिंढोरा पीटती है, लेकिन पड़ताल करने से हकीकत के धरातल पर यह पीआर स्टंट से अधिक कुछ नहीं दिखता। इसका उद्देश्य सिर्फ अपनी छवि को देश—दुनिया में उजला दिखाना है

by
Feb 1, 2025, 09:59 am IST
in विश्लेषण, दिल्ली
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दिल्ली में आम आदमी पार्टी का शिक्षा मॉडल एक छलावा है। वास्तविकता से बिल्कुल विपरीत, मृग मरीचिका की तरह जो दूर से आकर्षक और लुभावना लगता है। सच तो यह है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों की स्थिति बहुत ही खराब है। कहीं स्कूल की इमारत जर्जर है, कहीं बच्चों के बैठने की व्यवस्था नहीं है, कहीं खेलने के लिए मैदान नही हैं। ऊपर से शिक्षकों की भारी कमी और बोर्ड के परिणाम बेहतर दिखाने के लिए आंकड़ों की बाजीगरी। यह है आआपा सरकार के ‘शिक्षा मॉडल’ का सच।

केजरीवाल सरकार शिक्षा बजट तो बढ़ाती रही, लेकिन सरकारी स्कूलों में छात्रों के दाखिले के आंकड़े बढ़ने के बजाय घटते गए और बच्चों की अनुपस्थिति भी बढ़ती गई। स्थिति यह है कि पहले आआपा सरकार शिक्षा का बढ़ा हुआ बजट दिखाती है, फिर उसे घटा देती है। 2022-23 में शिक्षा बजट 4,283 करोड़ रुपये का पेश किया गया, लेकिन शिक्षकों के वेतन में 36 प्रतिशत की कटौती कर दी गई। यानी बजट 4,283 करोड़ रुपये से घटाकर 2,751 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसका असर यह हुआ कि शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होने लगी और शिक्षकों का मनोबल टूटने लगा।

इसी तरह, 2017-21 के बीच दिल्ली में स्वच्छता पर कुल मिलाकर 44 प्रतिशत अधिक राशि खर्च की गई, लेकिन बाद के वर्षों के आंकड़ों पर निगाह डालने पर समझ आता है कि इसमें 16.3 प्रतिशत की गिरावट आई। दूसरी ओर, देश-विदेश में अपनी छवि चमकाने के लिए आआपा सरकार ने विज्ञापनों, प्रचार अभियानों, होर्डिंग्स पर करोड़ों रुपये खर्च किए। बाकायदा स्कूलों में शौचालयों और प्रयोगशालाओं तक का खूब प्रचार-प्रसार किया और वाहवाही लूटी। वास्तविक आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया, लेकिन सचाई यह है कि सरकारी स्कूलों में 75 प्रतिशत लड़कियां और 55 प्रतिशत लड़के शौचालयों की सुविधा से संतुष्ट नहीं हैं।

छात्र-छात्राओं की यही शिकायत रहती है कि शौचालय अक्सर गंदे रहते हैं। एक सच यह भी है कि स्कूलों में कक्षाओं के क्षैतिज विस्तार पर जोर दिया गया, खेल के मैदानों का प्रयोग भवन निर्माण के लिए किया गया। इससे खेल के मैदान सिकुड़ते चले गए। नतीजा, छात्रों के बीच झगड़े बढ़े हैं।

इसी तरह, प्रयोगशालाओं की स्थिति भी खराब है। प्रयोगशालाओं में प्रयोग के उपकरण नहीं हैं। कम्प्यूटर शिक्षा की हालत तो और भी दयनीय है। कम्प्यूटर विज्ञान विभाग में फंड की कमी है। आकंड़ों की मानें तो दिल्ली सरकार ने कम्प्यूटर शिक्षा पर कोई जोर ही नहीं दिया। 2022-23 में इसके लिए 60 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, लेकिन इसके ठीक अगले साल यह बजट आवंटन साढ़े दस करोड़ पर आ गया। छात्रों को पुराने सिस्टम एक-दूसरे के साथ साझा करने पड़ रहे हैं। हां, एक चीज में यह सरकार अवश्य आगे रही और वह है इसने कई शैक्षिक योजनाओं के नाम बदले, जिससे मुश्किलें अवश्य बढ़ गईं। जैसे, राजीव गांधी स्टेट स्पोर्ट्स अवार्ड का नाम बदलकर राजीव गांधी स्पोर्ट्स अवार्ड्स-रिवार्ड्स कर दिया। और इसके बजट को कई मदों में बांट दिया।

इससे फंड के सही इस्तेमाल में गड़बड़ी दिखने लगी। राजकीय प्रतिभा विद्यालयों में होने वाली प्रवेश नीति को बदलकर ‘स्कूल्स आफ स्पेशलाइज्ड एक्सेलेंस’ नाम रख दिया गया और निजी स्कूलों के लिए 50 प्रतिशत सीटें आरक्षित कर दी गईं इसका असर यह हुआ कि 2013-24 के बीच एससी समुदाय के छात्रों का नामांकन भी 16.4 प्रतिशत से घटकर 12.5 प्रतिशत पर सिमट गया। इसमें गिरावट लगातार जारी है। इसी तरह, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में एससी समुदाय से आने वाली लड़कियों की संख्या 13 प्रतिशत है, लेकिन 2023 के आंकड़ों की मानें तो उनमें से केवल 4.54 प्रतिशत लड़कियों को ही माहवारी पैड दिए गए। महत्वपूर्ण बात यह है कि 60 प्रतिशत छात्र तो ऐसे हैं, जिन्हें स्कूलों में दाखिला लेने के कई महीने बाद किताबें मिल पाती हैं। ये हैं दिल्ली सरकार के कामकाज के तरीके। अब बात करते हैं दिल्ली सरकार की योजनाओं के बारे में।

आआपा सरकार कहने को तो कई योजनाएं चला रही है, लेकिन उन योजनाओं का लाभ दिल्ली के छात्रों को सही तरीके से नहीं मिल पा रहा। मिड डे मील योजना यह योजना 15 अगस्त 1995 को शुरू की गई थी, लेकिन भ्रष्टाचार, कुप्रबंधन के कारण यह सवालों के घेरे में है। इसी तरह, इस सरकार ने उच्च शिक्षा और कौशल विकास गारंटी योजना शुरू की थी। इसके तहत कौशल विकास के लिए छात्रों को 10 लाख रुपये तक का ऋण बिना किसी गारंटी के प्रदान किया जाना था। लेकिन जानकारी के अभाव के कारण कई छात्र इसका लाभ नहीं ले पाते हैं।

केंद्रीय योजना से वैर

केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून-2009 के तहत ‘नो-डिटेंशन’ नीति लागू की थी। इसमें आठवीं कक्षा तक के सभी छात्रों को अगली कक्षा में प्रोन्नत करना अनिवार्य किया गया है, यानी उन्हें किसी भी कक्षा में रोका नहीं जा सकता। इस नीति का मुख्य उद्देश्य यह था कि बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिले और वे बीच में पढ़ाई न छोडे। लेकिन दिल्ली के शिक्षा निदेशालय (डीओई) ने 2024-25 शैक्षणिक सत्र के लिए कक्षा 5 और 8 के लिए ‘नो-डिटेंशन’ नीति को ही रद्द कर दिया।

आआपा सरकार का शैक्षणिक सत्र 2023-24 में कक्षा 9 में दो बार अनुत्तीर्ण होने वाले 17,308 छात्रों को नेशनल इंस्टीट्यूट आफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) में स्थानांतरित करने का निर्णय भी सवालों के घेरे में है। आआपा सरकार का दावा है कि उसका यह कदम छात्रों को शिक्षा से वंचित होने से बचाएगा, लेकिन कई अभिभावकों को लगता है कि यह कमजोर छात्रों को मुख्यधारा की शिक्षा से दूर धकेलने का बहाना मात्र है।

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