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शरणार्थी या ‘शिकारी’ ? जर्मनी में बच्चे को अफगानी ने मारा चाकू और कातिल को मिली सहानुभूति

हैरानी की बात यह है कि जर्मनी में बच्चे पर हमला करने वाले आरोपी को पहले भी तीन बार हिरासत में लिया जा चुका था। लेकिन हर बार मनोवैज्ञानिक उपचार के बाद छोड़ दिया गया।

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सोनाली मिश्रा

जर्मनी में एक बार फिर से वहां के नागरिकों पर शरणार्थियों द्वारा हमला करने का मामला सामने आया है। 22 जनवरी 2025 को चाकूबाजी की यह घटना बवेरियन शहर अस्चैफेनबर्ग के मध्य स्थित एक सार्वजनिक पार्क में सुबह करीब 11:45 बजे (1045 GMT) हुई। और इसके आरोप में एक 28 वर्षीय अफगानी नागरिक को हिरासत में लिया गया।

हैरानी की बात यह है कि ऐसा उस आरोपी ने पहली बार नहीं किया। उसे पहले भी तीन बार हिरासत में लिया जा चुका था। लेकिन हर बार मनोवैज्ञानिक उपचार के बाद छोड़ दिया गया। चूंकि उसके शरणार्थी होने का दावा अस्वीकृत हो चुका था, इसलिए उसे वापस अफगानिस्तान भी लौटना था। उस अफगानी नागरिक ने एक किंडरगार्टन ग्रुप पर हमला किया। एक बच्चा मारा जा चुका है और दूसरा बच्चा अभी ज़िंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है।

41 वर्षीय व्यक्ति जिसने इस हमले से उन बच्चों को बचाने का प्रयास किया, वह भी मारा गया। ये हमला यूरोप में बढ़ रहे उस आतंकी खतरे की ओर संकेत कर रहा है, जिसका शिकार भारत तो न जाने कब से था, अब यूरोप ने अपनी नीतियों के कारण उस आतंक को अपने घरों में बुला लिया है। यूरोप की कथित सेक्युलर राजनीति ने जैसे नागरिकों को शिकारियों के सामने खुला छोड़ दिया है। पार्क जैसी सुरक्षित जगहें भी असुरक्षित हो गई हैं।

बीबीसी के अनुसार अधिकारियों ने यह भी कहा कि आरोपी के कमरे की तलाशी लेने के बाद यह नहीं पता चला कि वह रेडिकल इस्लाम से प्रेरित था। जर्मनी में ऐसे हमले लगातार हो रहे हैं। जर्मनी नाइफ अटैक सर्च करने पर कई घटनाओं के लिंक सामने आते हैं। मगर यह और भी डराने वाला है कि ऐसी घटनाओं का समर्थन करने के लिए भी लोग पहुंच जाते हैं। जर्मनी में जहां एक तरफ लोग उस छोटे बच्चे और आदमी की इस प्रकार की गई नृशंस हत्या के चलते उन्हें याद करने और श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचे थे तो वहां पर एंटिफ़ा के कार्यकर्ता आए और उन्होंने बच्चे और युवक के परिजनों, घरवाओं और दोस्तों सहित सभी को फासिस्ट कहा।

यह परिदृश्य डराने वाला है, क्योंकि यहाँ पर सहानुभूति कातिल के साथ है। सहानुभूति उस हिंसक मानसिकता के साथ है जिसने बिना किसी कारण दो लोगों की जानें ले ली। जो नारे लगा रहे थे वे सभी युवा हैं। आखिर इन युवाओं के दिनों में यह जहर कौन भर रहा है? वामपंथी संगठन एंटिफ़ा वैसे ही कट्टर इस्लाम के साथ जाकर खड़ा होता है। वह हमास के साथ खड़ा होता है।

इस वीडियो के जवाब में लोगों ने प्रश्न किया कि आखिर एंटिफ़ा को पैसे कौन देता है? जर्मनी में इस घटना के बाद एक बार फिर से राजनीति तेज हो गई है।  क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स के नेता मर्ज़ ने इस घटना को लेकर कहा कि पिछले दस वर्षों में हमने अनियंत्रित शरणार्थी नीति के साल देखे हैं। उन्होंने यूरोपीय यूनियन के शरणार्थी नियमों को पालन न करने योग्य बताया और यह भी कहा कि जर्मनी को अपने राष्ट्रीय कानूनों को प्राथमिकता देने का अधिकार है।

मर्ज़ को इस बात का डर है कि कहीं इन सभी का लाभ राष्ट्रवादी पार्टी एएफडी न उठा ले। एएफडी की नेता एलिस वीडल ने अगले सप्ताह होने वाले चुनावों को लेकर यही कहा है कि जर्मनी की सीमाएं बंद की जाएं और अवैध शरणार्थियों को वापस भेजा जाए। बीबीसी के अनुसार उन्होनें सोशल मीडिया पर लिखा कि एशफेनबर्ग के चाकू आतंक का परिणाम अब सामने आना ही चाहिए।

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