अति पवित्र एवं प्रगाढ़ आस्था का पर्व महाकुंभ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर आयोजित होने वाला विश्व का विशालतम आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम है। अनगिनत सहस्त्राब्दियों से अनवरत चली आ रही कुंभ की यह अत्यंत अलौकिक आध्यात्मिक परंपरा है, जिसके सांस्कृतिक एवं सामाजिक आयामों के साथ आज उसका आर्थिक आयाम भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कुंभ भारतीय संस्कृति का परिचायक है। इसमें जाति-पाति, ऊंच-नीच का भेदभाव भुलाकर लोग एक ही रंग में रंगे दिखाई देते हैं। बिना बुलाए करोड़ों लोग इस उत्सव में सम्मिलित होते हैं। समग्र राष्ट्र की शिराओं में इस आयोजन की ऊर्जा स्पंदित होती है। पौराणिक विवरणों के अनुसार प्राचीन काल में देवों और असुरों के बीच हुए सागर मंथन से अमृत कलश निकला था। उस दिव्य अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवों और दानवों में 12 दिन (मानव के 12 वर्षों तक) महाभयंकर युद्ध हुआ था। उसी समय उस अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी थीं, जहां क्रम से कुंभ पर्व का आयोजन होता है। हर 12 वर्ष में होने वाला प्रयाग का यह कुंभ इस बार महाकुंभ है। वस्तुत: 12 कुंभ के बाद 144वें वर्ष में प्रयाग में महाकुंभ आयोजित होता है।
इस बार महाकुंभ मेले में 45 करोड़ लोगों के आने का अनुमान है। यानी विश्व की जनसंख्या की 5 प्रतिशत संख्या महाकुंभ की साक्षी बनेगी। संख्या के लिहाज से महाकुंभ मेला क्षेत्र में 49 वेटिकन सिटी (दुनिया का सबसे छोटा देश) कुंभ बसाई जा सकती हैं। बड़े राष्ट्रों की जनसंख्या की दृष्टि से कुंभ विश्व के तीसरे बड़े देश जैसा होगा। महाकुंभ में श्रद्धालुओं के आने की संभावित संख्या पाकिस्तान की जनसंख्या से लगभग दोगुनी और अमेरिका की जनसंख्या से लगभग 6 करोड़ अधिक होगी। 13 जनवरी से 26 फरवरी तक 45 दिन की अवधि में 12 लाख श्रद्धालु कल्पवास करेंगे।
अक्षय पुण्य एवं कल्पवास
कुंभ स्नान से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। पौराणिक वचन है –
अश्वमेध सहस्राणि वाजपेय शतानि च।
लक्षप्रदक्षिणा भूमे: कुम्भस्नानेन तत् फलम्।।
अर्थात् एक हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वाजपेय यज्ञ, एक लाख बार भूमि की परिक्रमा करने से जो पुण्य-फल प्राप्त होता है, वह एक बार कुंभ स्नान से प्राप्त होता है। महाकुंभ के दौरान कई लोग कल्पवास का पालन करते हैं। इसे निष्ठापूर्वक पूर्ण करने वालों को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। वैसे तो कल्पवास कभी भी किया जा सकता है। लेकिन सूर्य जब धनु राशि से निकलकर मकर राशि की यात्रा आरंभ करते हैं, तब एक माह के कल्पवास से ठीक वैसा ही पुण्य मिलता है, जो कल्प में ब्रह्म देव के एक दिन के समान होता है। इसलिए कई लोग मकर संक्रांति के दिन से भी कल्पवास की शुरुआत करते हैं। कल्पवास पूरे एक महीने तक चलता है। इस दौरान साधक संगम तट पर रहते हुए कल्पवास के नियमों का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं और साथ ही ज्ञान, सत्संग और साधु-महात्माओं की संगति का लाभ उठाते हैं। कल्पवास के 21 नियम हैं।
ये हैं-सत्यवचन, अहिंसा, इंद्रियों पर नियंत्रण, प्राणियों पर दया, ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन, व्यसनों से दूर रहना, ब्रह्म मुहूर्त में जागना, नियमित तीन बार पवित्र नदी में स्नान करना, त्रिकाल संध्या का ध्यान करना, पितरों के लिए तर्पण व पिंडदान, दान, अंतर्मुखी जप, सत्संग, संकल्पित क्षेत्र से बाहर न जाना, किसी की भी निंदा न करना, साधु-संन्यासियों की सेवा, जप और कीर्तन, एक समय भोजन ग्रहण करना, भूमि पर सोना, अग्नि सेवन न करना, देव पूजन करना। कल्पवास के इन नियमों में ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। कल्पवास का अनन्त पुण्य है। जो व्यक्ति श्रद्धा और निष्ठापूर्वक कल्पवास के नियमों का पालन करता है, उसे इच्छित फल की प्राप्ति होने के साथ ही जान्म-जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। महाभारत के अनुसार माघ महीने में किया गया कल्पवास उतना ही पुण्यदायी होता है, जितना 100 वर्ष तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करना। कल्पवास के नियमों का पालन करने वाले को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि, सौभाग्य मिलता है।
समरस समागम
देश-विदेश के हिंदू समाज के सभी संप्रदाय और जातियों के धनी एवं साधारण परिवारों के आबाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष सहित सभी श्रद्धालु बिना भेदभाव के मेले में सत्संग, स्नान और दर्शन का पूरा लाभ उठाते हैं। हिंदू श्रद्धालुओं के अतिरिक्त कुछ अन्य मत-पंथों के श्रद्धालु भी कुंभ स्नान के लिए आते हैं। कुंभ मेले के दौरान अनेक समारोह आयोजित होते हैं। हाथी, घोड़ों और रथों पर अखाड़ों की पारंपरिक शोभायात्रा निकलती है, जिसे ‘पेशवाई’ कहा जाता है। ‘शाही स्नान’ अर्थात् अमृत स्नान के पूर्व शोभा यात्रा निकलती है। इसमें अखाड़ा प्रदर्शन, चमचमाती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में तथा अनेक अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां संचालित होती हैं, जो करोड़ों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती हैं।
महाकुंभ-2025 में भारी वैश्विक आकर्षण देखा जा रहा है। संगम में डुबकी लगाने के लिए पहले ही दिन से विश्व भर से श्रद्धालु महाकुंभ में पहुंच रहे हैं। मेले के पहले दिन 13 जनवरी को ही 1.6 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने संगम में स्नान किया। ब्राजील, जर्मनी, जापान, इंग्लैंड, अमेरिका, स्पेन से भी श्रद्धालु प्रयागराज पहुंच रहे हैं। इस प्रकार महाकुंभ अब भारतीयों का नहीं, वरन् एक वैश्विक उत्सव बन गया है। इस्लामिक देशों में भी महाकुंभ को लेकर उत्सुकता देखी जा रही है। विश्व भर में लोग इस भव्य आध्यात्मिक आयोजन को देखने के लिए उत्सुक हैं और महाकुंभ के बारे में गूगल पर सर्च कर रहे हैं। उन देशों पर दृष्टि डालें जहां महाकुंभ एक ट्रेंडिंग सर्च का विषय रहा है तो, उनमें सबसे ऊपर पाकिस्तान है। इसके बाद कतर, यूएई और बहरीन जैसे इस्लामिक देशों ने भी महाकुंभ में रुचि दिखाई है। नेपाल, सिंगापुर, आॅस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड, ब्रिटेन, थाईलैंड और अमेरिका में भी लोग महाकुंभ के बारे में पढ़ रहे हैं और खोज रहे हैं। हिंदू बहुल नेपाल के लोगों ने सबसे अधिक महाकुंभ को लेकर सर्च किया है।
प्रयागराज के पवित्र संगम में महाकुंभ स्नान से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता और शांति का संचार भी होता है। महाकुंभ से लौटते समय लोग गंगाजल, संगम की मिट्टी और तुलसी भी लाते हैं। श्रद्धालु केवल भौतिक पूजा सामग्री ही नहीं, वरन् आध्यात्मिक अनुभव और उसके साथ सुख-समृद्धि, पारिवारिक सौहार्द, समरसता-मूलक संदेश और अक्षय आशीर्वाद भी साथ लेकर आते हैं।
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