गत 20 और 21 जनवरी को महाकुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर 17 में अखिल भारतीय संत समागम का आयोजन हुआ। इसमें देशभर के विभिन्न मत-पंथ व संप्रदायों के संतों ने सामाजिक समरसता पर मंथन किया। इन सभी ने एक स्वर से ‘न हिंदू पतितो भवेत’ का उद्घोष किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि महाकुंभ सारे विश्व को अध्यात्म का संदेश दे रहा है। इस समय पूरा भारत महाकुंभ क्षेत्र में स्थित है।
प्रयाग की पावन धरती संपूर्ण हिंदू समाज को एक सूत्र में गूंथने का काम कर रही है। कुंभ से एकता, समता, समानता व समरसता का संदेश देने के साथ ही समाज से भेदभाव को समाप्त करने का संकल्प लें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख श्री रामलाल ने कहा कि सर्वे भवन्तु सुखिन:, वसुधैव कुटुम्बकम्, विश्व कल्याण की भावना, यही हिंदुत्व, यही सनातन है।
प्राचीनकाल से भारत सनातन राष्ट्र है। आने वाला समय भारत का है। स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि हिंदू समाज को तोड़ने के अनेक प्रयत्न हुए। सनातन के अंदर अस्पृश्यता नाम की चीज नहीं थी। 1857 से पहले की कोई भी पुस्तक जातिगत विभाजन से संबंधित नहीं है। साध्वी उर्मिला ने कहा कि जाति-पाति के चक्कर में न पड़ें। आपस में छिन्न-भिन्न रहेंगे तो धर्म को मजबूत नहीं कर पाएंगे।
महंत विकास दास जी ने कहा कि भक्तों का विश्वास संतों पर होता है। समरसता का रास्ता हम नहीं बताएंगे तो कौन बताएगा। प्रभु राम ने किसी को छोटा या बड़ा नहीं माना। डॉ. कृष्ण गोपाल एवं प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने उपस्थित संतों पर पुष्प वर्षा की। उन्हें समरसता से संबंधित पुस्तक तथा स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया। इस अवसर पर सामाजिक समरसता गतिविधि के राष्ट्रीय संयोजक श्याम प्रसाद, सह संयोजक रवीन्द्र किरकोले, विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री देवजी भाई रावत सहित अन्य उपस्थित थे।
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