हलाल प्रमाणन पर विवाद ने सुप्रीम कोर्ट में एक नई बहस को जन्म दिया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सीमेंट और छड़ जैसे गैर-मांस उत्पादों के हलाल प्रमाणन पर सवाल उठाते हुए इसे अनावश्यक बताया। उन्होंने यह मुद्दा शीर्ष अदालत में उस समय उठाया, जब उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हलाल प्रमाणन वाले खाद्य उत्पादों के भंडारण, बिक्री और वितरण पर प्रतिबंध लगाने की अधिसूचना को चुनौती दी जा रही थी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हलाल प्रमाणन के दायरे में आटा, बेसन और सीमेंट जैसे उत्पादों को शामिल करने पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा- “बेसन हलाल या गैर-हलाल कैसे हो सकता है?”
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हलाल प्रमाणन के लिए एजेंसियां शुल्क ले रही हैं, जिससे भारी राजस्व अर्जित हो रहा है।
उन्होंने अदालत के सामने यह मुद्दा उठाया कि जो लोग हलाल उत्पादों में विश्वास नहीं रखते, उन्हें भी हलाल-प्रमाणित उत्पादों के लिए अधिक कीमत क्यों चुकानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा केवल मांस उत्पादों तक सीमित नहीं है, बल्कि अन्य गैर-मांस उत्पादों तक भी पहुंच गया है।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने हलाल प्रमाणन को व्यक्तिगत पसंद और स्वैच्छिक बताते हुए कहा कि किसी पर इसे अपनाने के लिए कोई दबाव नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि यह जीवनशैली का मामला है और केंद्र सरकार की नीतियों के तहत इसका समर्थन किया जाता है।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 18 नवंबर, 2023 को जारी अधिसूचना का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि यह राज्य का अधिकार क्षेत्र है। केंद्र के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने अपने हलफनामे में स्पष्ट किया कि हलाल प्रमाणन के संबंध में उनकी कोई भूमिका या अधिकार नहीं है।
न्यायालय का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को जवाब दाखिल करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया और मामले की अगली सुनवाई 24 मार्च से शुरू होने वाले सप्ताह में निर्धारित की। अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य संबंधित पक्षों से भी इस मुद्दे पर जवाब मांगा है।
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