‘जन के मन तक’ सत्र में वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा ने प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी गौरव द्विवेदी के साथ बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश –
मीडिया में स्वतंत्रता की बहुत बात की जाती है। ऐसे में खबरों को लेकर संतुलन बिठाना चुनौतीपूर्ण होता है। मीडिया की साख को बरकरार रखते हुए इस रास्ते को आपने कैसे अपनाया?
आकाशवाणी और दूरदर्शन की एक लंबी परंपरा है। 1997 में सरकार से अलग कर एक संस्था बना कर प्रसार भारती का गठन किया गया, लेकिन जो प्रशासनिक व्यवस्था है, उसमें जाहिर है कि दूरदर्शन और आकाशवाणी की एक अलग पहुंच है। सरकार के लिए उस पहुंच का लाभ उठाते हुए सरकार से संबंधित खबरों को हम जनता तक पहुंचाते हैं।
इसके अलावा मुझे याद नहीं आता कि इतने दिनों में कभी हमसे कहा गया हो कि आप फलां खबर चलाएं और फलां खबर को न चलाएं। न ही खबरों को लेकर कभी कोई सुझाव दिए गए कि किस खबर को ऐसे चलाया जाना चाहिए। मुझे या मेरी टीम को ऐसा करने के लिए कभी भी कहीं से किसी दबाव का सामना नहीं करना पड़ा। सरकार की तरफ से जो स्वायत्तशासी संस्था की भावना है उसका भी पूरा सम्मान रखा जा रहा है। चूंकि प्रसार भारती का गठन संसद द्वारा पारित कानून के तहत हुआ है, इसलिए हमारा यह प्रसास जरूर रहता है कि संसद की भावना का उल्लंघन न हो पाए।
दूरदर्शन ने अपना ओटीटी चैनल शुरू किया है। इसका अनुभव कैसा रहा? इसकी प्रारंभिक प्रतिक्रिया कैसी है, क्योंकि ओटीटी की दुनिया में कदम रखने की अपनी चुनौतियां हैं?
अगर ओटीटी की बात करें तो इसे अलग देखना उचित नहीं है। जैसे-जैसे तकनीक आगे बढ़ी है, वैसे—वैसे चीजें भी आगे बढ़ती गईं। पहले केवल सुनने की तकनीक थी तो रेडियो चलता था। रेडियो सबसे पहले आकाशवाणी के तौर पर भारत में आया। उसके बाद दृश्यों के माध्यम से लोगों तक पहुंचना संभव हुआ तो दूरदर्शन भारत का पहला चैनल था। इसके बाद चाहे रेडियो हो या टीवी, सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र को भी प्रवेश मिला। पहले टीवी के माध्यम से टेरेस्ट्रियल ट्रांसमिशन यानी रेडियो तरंगों से सामग्री प्रसारित की जाती थी। इसके बाद यह उपग्रह के माध्यम से होने लगा।
आज जो परिस्थितियां हैं, उसमें बड़े बदलाव आए हैं। हम पुरानी कहानियां सुनते हैं कि एक समय था, जब कुछ ही घरों में टीवी हुआ करता था। तब कुछ घंटों के ही कार्यक्रम आते थे। जब कोई विशेष कार्यक्रम आता था तो सारा मुहल्ला उस घर में जाकर बैठ जाता था। फिर चाहे वह रविवार की फीचर फिल्म हो, रामायण हो या कोई अन्य कार्यक्रम। आज जो दो-तीन बुनियादी बदलाव हुए हैं। उससे सबसे पहले स्क्रीन की संख्या बढ़ गई है, जो पहले पूरे मुहल्ले में सिर्फ एक स्क्रीन हुआ करती थी। आज हर किसी के हाथ में मोबाइल के तौर पर स्क्रीन है।
पहले प्रसारक जो दिखाता था, उसे देखना बाध्यता थी। आपके पास कोई चारा नहीं था। अब ऐसा नहीं है। आज इतने सारे स्रोतों से कार्यक्रम आ रहे हैं तो लोग अपनी पसंद-नापसंद के हिसाब से विषय चुनकर कार्यक्रम देखते हैं। फिर चाहे माध्यम और भाषा कोई भी हो। लोग अपनी पसंद का कार्यक्रम अपने समय पर अपन रूचि के अनुसार देखना चाहते हैं। इसके लिए पुराना माध्यम उपयुक्त नहीं है। उसके लिए डिजिटल या स्ट्रीमिंग मोड ही आवश्यक है। आज लोग इंटरनेट के जरिए सबसे ज्यादा समय मोबाइल पर बिताते हैं। दुनिया की बड़ी रिसर्च कंपनियों में से एक गार्टनर की एक रिपोर्ट 2012 में आई थी।
इसमें बताया गया था कि मोबाइल पर डेटा की खपत डेस्कटॉप की तुलना में काफी बढ़ गई है। इस बात को अब काफी साल हो चुके हैं। अब ऐसी परिस्थिति में जहां हर हाथ में एक स्क्रीन है, जिस पर लोग अपनी पसंद की चीजें अपने समय पर देख सकते हैं तो एक लोक सेवा प्रसारक होने के नाते प्रसार भारती का भी उस माध्यम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना आवश्यक हो गया। हम प्रसारक हैं, एक संस्था हैं, इसलिए सभी हमें देखें, ऐसा तो टीवी पर ही संभव है। ऐसे में हमारा जो भी दायित्व है, उसे पूरा करने के लिए यह आवश्यक है कि हम हर माध्यम पर उपलब्ध रहें।
आज ओटीटी प्लेटफार्म पर अश्लीलता परोसी जा रही है। ऐसे में अश्लील और श्लीन के बीच सामंजस्य बिठाना और वाणिज्यिक पहलू को भी ध्यान में रखना, इस पर देश में बहस चल रही है। कहा जा रहा है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर एक नीति और सेंसरशिप होनी चाहिए। क्या आप मानते हैं कि ये चुनौतियां आपके सामने रहेंगी?
यह चुनौती सिर्फ हमारे सामने ही नहीं है, यह उन सभी लोगों के सामने भी है, जो एक उच्च गुणवत्ता वाला कार्यक्रम लोगों तक ले जाना चाहते हैं। जहां तक इसके विनियमन का सवाल है तो यह प्रक्रिया करीब ढाई साल से चल रही है। लोगों द्वारा भी कई ऐसे प्लेटफॉर्म पर आने वाले कार्यक्रमों के प्रकार पर चिंता व्यक्त की गई है। सोशल मीडिया पर, अखबारों में, पत्रिकाओं में इस विषय को लेकर लेख आए हैं। संसद में भी सवाल उठे हैं। कुछ संसदीय समितियां हैं, जो इस विषय पर विचार कर रही हैं। यह हमेशा होता है कि जब तकनीक तेजी से आगे बढ़ जाती है, तो हमारी न्यायिक प्रक्रिया, हमारे नियम और कायदे, सभी उस तकनीक पर नियंत्रण के लिए, उसका प्रयोग करने के लिए एक व्यवस्था बनाते हैं। इन सब बातों को देखते हुए इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। जल्द ही इसके लिए नियम बना दिए जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चार महत्वपूर्ण शब्दों का बड़े सटीक तरीके से उपयोग किया है- रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म और इन्फॉर्म। मेरे ख्याल से इसी में शासन और प्रशासन, दोनों की जितनी भूमिका है, वह स्पष्ट हो जाती है। यानी आप व्यवस्था में सुधार करिए, बेहतर काम करिए, जो वर्तमान परिदृश्य है उसको परिवर्तित करिए और उसके बाद इसकी जानकारी सब तक पहुंचे, इसकी व्यवस्था कीजिए। अभी ये चारों काम एक साथ चलते हैं। सरकार जो काम कर रही है या देश, दुनिया में जो भी कुछ हो रहा है, उसकी सही और प्रामाणिक जानकारी जनता तक पहुंचाना भी प्रशासन का एक अभिन्न अंग है।
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