पाञ्चजन्य के 78वें स्थापना वर्ष पर बात भारत की अष्टायाम कार्यक्रम में केंद्रीय कानून और संसदीय कार्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि आज कांग्रेस संविधान की बात करती है। लेकिन, वर्ष 1951 में संविधान का पहला संशोधन करके अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने की कोशिश की नेहरू जी ने की थी। पिछले कई साल से कांग्रेस संविधान को लेकर फेक नरैटिव गढ़ने की कोशिश कर रही है।
प्रश्न: जिन लोगों ने पहला संविधान संशोधन ही अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ किया था। आज वही लोग मीडिया की आजादी की बात कर रहे हैं?
उत्तर: संविधान का पहला संशोधन पंडित नेहरू लेकर आए थे वो अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाने के लिए किया गया था। आज कांग्रेस के लोग जब बात करते हैं कि भाजपा तीसरी बार सत्ता में आई तो संविधान बदल देगी। ये फेक नरैटिव है। 1951 में पहला संविधान संशोधन पंडित नेहरू ने किया था। केवल संविधान संशोधन की ही बात करें तो कांग्रेस के ही शासन के दौरान सबसे अधिक संविधान से छेड़छाड़ की गई। जमाना चाहे नेहरू जी का हो, इंदिरा गांधी जी का हो, उनके जमाने में तो देश में आपातकाल भी लगाया गया। एक संविधान संशोधन, जिसे 39वां संविधान संशोधन कहते हैं, उसमें तो राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और स्पीकर अगर इनका चुनाव होता है और इस मामले में रिव्यू के लिए कोई कोर्ट जाता है तो उसे कोर्ट में जाने का भी अधिकार नहीं था। ये पूरी तरह से संविधान की भावना के खिलाफ किया गया संशोधन था।
लोकसभा की अवधि 5 साल होती है, लेकिन आपने (कांग्रेस) उसे 6 साल कर दिया। संविधान की आत्मा कहे जाने वाले प्रस्तावना तक को बदल देने वाले अब संविधान की बात कर रहे हैं, तो हम लोगों को हंसी आती है। लेकिन, फेक नरैटिव की बात करें तो 2024 में फेक नरैटिव चलाने वालों को कई जगह लगा कि इसी से उनकी सीटें आ गईं। इसीलिए ये लोग इसे जोर-जोर से बोलते हैं। संविधान में व्यवस्था है कि सांसद होने के नाते शपथ लेते वक्त आपके हाथ में शपथ पत्र के अलावा आपके हाथ में कुछ और नहीं होना चाहिए। बावजूद इसके वो शपथ लेने के दौरान संविधान दिखा रहे थे। ये भी वो इंसान कर रहे थे (राहुल गांधी) जिसने सबसे अधिक संविधान को तोड़ा मरोड़ा। फेक नरैटिव, जिसे ये लोग 1951 से चलाते आ रहे हैं, हरियाणा और महाराष्ट्र में इसकी हवा निकल गई। जनता को भी सच समझ आ चुका है।
प्रश्न: क्या आपको लगता है कि 2024 के चुनाव या फिर उसके अलावा फेक नरैटिव की इस लड़ाई से निपटने में बीजेपी पिछड़ गई?
उत्तर: हमने फेक नरैटिव को काउंटर किया। लेकिन सोशल मीडिया पर डीप फेक और फेक नरैटिव को बार-बार पोस्ट किया जाए तो ये बहुत तेजी से वायरल होता है।
प्रश्न:आपकी सरकार पर मीडिया को कंट्रोल करने के आरोप लगते हैं?
उत्तर: नहीं। हम किसी मीडिया को कंट्रोल नहीं करते हैं। वह अपने तरीके से ही काम करता है। पीएम नरेंद्र मोदी जितनी भी संस्थाएं हैं, सभी को स्वतंत्र तरीके से काम करने देते हैं। रही बात मीडिया की तो आप खुद देखते हैं कि मीडिया में कितना प्रधानमंत्री के बारे में बोला जाता है। मीडिया में यही विपक्ष बात करता है, लेकिन फिर भी ये कहते हैं कि हमें बोलने नहीं दिया जाता है। इसी को तो फेक नरैटिव कहते हैं, लेकिन अब इसकी हवा तो निकल ही चुकी है। फेक नरैटिव को लेकर मैंने हरियाणा में कहा था कि काठ की हांडी एक ही बार चढ़ती है, बार-बार नहीं चढ़ती।
प्रश्न: 26 जनवरी को कांग्रेस के नेता महू पहुंच रहे हैं औऱ अब तो उनके साथ जयभीम वाले नेता भी जुड़ गए हैं। फेक नरैटिव फिर से वो 26 जनवरी को शुरू कर देंगे?
उत्तर: 1891 में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का जन्म महू में हुआ था, तब महू छावनी थी। देश आजाद होने के बाद कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन, इन्हें महू की जरा सी भी याद नहीं आई। जब महू में स्मारक बनाने को लेकर किसी ने नेहरू जी को पत्र लिखा तो उन्होंने जबाव दिया कि किसी निजी साधन से स्मारक बना लो। शायद राहुल गांधी को पता नहीं, लेकिन नेहरू जी को लिखा पत्र आज भी है। महू में जहां स्मारक बना और ये लोग जा रहे हैं, ये तो देखो कि इसे किसने बनाए? मध्य प्रदेश में जब सुंदरलाल पटवा की भाजपा की सरकार बनी तो महू में स्मारक बनाया जा सका। राहुल गांधी की छोड़ पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की बात करें, वो तो देश के प्रधानमंत्री थे दो बार पीएम रहे कभी महू नहीं गए।
कांग्रेस पार्टी से प्रधानमंत्री रहा देश का कोई भी व्यक्ति महू नहीं गया। गए तो केवल एक और वो हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो 14 अप्रैल 2016 को महू गए और बाबा साहब भीमराव आंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रश्न: वक्फ बोर्ड बिल लाया गया और फिर जेपीसी बनाकर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इससे सरकार की मंशा पर संशय होता है?
उत्तर: मोदी जी की सरकार वक्फ अमेंडमेंट बिल-2024 लेकर आई। कैबिनेट ने इसको लेकर फैसला किया, फिर बिल बना और फिर इसे इंट्रोड्यूस किया। विपक्ष की मांग थी कि इस पर एक कमेटी बने। जेपीसी बनी, उसकी बैठकें हो रही हैं। जगदंबिका पाल जो कि जेपीसी के चेयरपर्सन हैं, उन्होंने फील्ड विजिट भी की। तेजी से इस मामले में कार्रवाई की जा रही है। जब ये बिल बना था, तभी अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने अपनी बात रखी थी। वक्फ की जमीन पर तो कलेक्टर तक को जाने का अधिकार नहीं है। विपक्ष वक्फ पर कहता है कि संसद को इसका अधिकार नहीं है, तो इससे पहले कैसे संशोधन हुए थे।
इस पर किसी तरह की शंका करने की जरूरत नहीं है, जल्द ही संसद में इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
प्रश्न: वर्शिप एक्ट में संशोधन करने को लेकर क्या सरकार सोचती है?
उत्तर: ये मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, इसलिए उस पर मुझे टिप्पणी नहीं करनी है। लेकिन, हां जब भी सरकार से कोई एफिडेविट मांगा जाएगा तो देश हित में ही काम किया जाएगा।
प्रश्न: क्या कोलेजियमं सिस्टम में सुधार की गुंजाइश है और इसके बारे में सरकार कुछ सोच रही है?
उत्तर: कोलेजियम सिस्टम कोई संविधान में नहीं लिखा है। 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आर्टिकल 124 की व्याख्या की, उसकी उत्पत्ति वहीं से हुई। उसके बाद से ही इसकी एक व्यवस्था चल गई। पीएम मोदी ने देश की बागडोर संभालने के बाद एक नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइनमेंट कमीशन बनाया। प्रस्ताव दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पास हुआ। देश के आधे से अधिक राज्यों ने भी उसका अनुमोदन किया। लेकिन, ज्युडिशियल रिव्यू के लिए सुप्रीम कोर्ट गया तो उसे अमान्य करार दे दिया गया।
पीएम नरेंद्र मोदी न्यायिक व्यवस्था में सुधार के पक्षधर रहे हैं। अगर आप 2004-2014 के न्यायिक नियुक्तियों के आंकड़े को उठाएंगे तो उसमें आपको इसका ज्यादा प्रभाव देखने को मिलेगा। लेकिन, 2014 से 24 के बीच कोलेजियम का कम प्रभाव देखने को मिल रहा है। हम सुधार की ओर बढ़ रहे हैं।
प्रश्न: आईएएस, आईपीएस और आईएफएस की ही तरह से इंडियन ज्युडिशियल सर्विस को लेकर चर्चा क्यों नहीं होती?
उत्तर: ऑल इंडिया ज्युडिशियल सर्विसेस का विषय लंबे वक्त से विचार में है। संविधान के आर्टिकल 312 में एक बार संशोधन किया गया, लेकिन संविधान की मूल भावना, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ही तय किया है और वो है न्यायालयों की स्वतंत्रता। ज्युडिशियरी के मामले में सरकार का कितना दखल हो इसको लेकर एक थिन रिलेशन बना हुआ है। ज्युडिशियल सर्विसेस को लागू करने में हम लगे हुए हैं।
प्रश्न: लोवर कोर्ट के जजों की एक शिकायत रहती है कि जब हाई कोर्ट में जज की नियुक्ति की बात आती है तो वकील ज्यादा बन रहे हैं और उनकी संख्या कम हो रही है। क्या उनके अनुभव का लाभ, जिसे उन्होंने अर्जित कर रखा है, लेकिन उन्हें कम मौके मिलते हैं क्या वजह है?
उत्तर: सही बात है कि सुप्रीम कोर्ट में तो शायद एक ही जज होगा, जो कि जिला अदालत से पहुंचा है। इसका कोटा होता है। अधिकतर हाई कोर्ट के जज ही सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं। इसके अलावा जिला अदालत से हाई कोर्ट पहुंचने के लिए कोटा निर्धारित है। लेकिन, सुझावों पर इनपुट लेना चाहिए।
प्रश्न: क्या देश के चार कोनों में सुप्रीम कोर्ट की अलग-अलग बेंचों का गठन नहीं हो सकता?
उत्तर: ये मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अभी इसकी आवश्यकता नहीं है। ये दिल्ली में ही रहेगा।
प्रश्न: अक्सर ये देखा जाता है कि अदालतों में पेंडिग केसों पर जजो और सरकारों की तरफ से अलग-अलग रुख आते हैं, लेकिन ये कब बंद होगा?
उत्तर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद हमने एक प्रक्रिया शुरू की है, जिसे हम एजिंग एनालिसिस। जिसमें ये देखा जाता है कि अगर कोर्ट में कोई केस पेंडिंग है तो कितने साल से पेंडिंग है? इसकी समीक्षा करने के बाद हमने ई कोर्ट-3 करके इसका पार्ट बना दिया है। इसके बाद एडीआर में तेजी आई है। लोक अदालतों के कामों में भी तेजी आई है, साथ ही मामलों के निस्तारण में तेजी आई है। जिला अदालतों में ही सबसे अधिक मामले पेंडिंग हैं। 4.5 करोड़ के आसपास मामले जिला अदालतों में पेंडिंग हैं। तारीख पर तारीख प्रथा समाप्त करने के लिए मैंने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के सामने बोला है।
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