भारत ने एक दशक में स्वास्थ्य के क्षेत्र में असाधारण प्रगति की है। विशेषकर कोरोना महामारी के दौरान चिकित्सा क्षेत्र में भारत ने अपनी क्षमता को पुनर्स्थापित किया है। कोरोना काल में जब चिकित्सकीय व्यवस्थाएं चरमरा गई थीं और अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा सहित पूरी दुनिया बेहाल थी, उस समय भारत सरकार ने न सिर्फ चिकित्सा सुविधा और दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित की, बल्कि रिकॉर्ड समय में कोरोना वैक्सीन बनाकर इसे अपने नागरिकों और दुनिया के कई देशों को भी उपलब्ध कराया। यह चिकित्सा क्षेत्र में विकास का ही परिणाम है कि न केवल विदेशों में इलाज के लिए मरीजों का जाना रुका है, बल्कि कम कीमत पर विश्वस्तरीय इलाज के लिए दुनियाभर से मरीज भारत आने लगे हैं। इससे भारत को सालाना लगभग 110 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आय हो रही है। देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे के विकास के लिए 1948 में कई कदम उठाए गए थे।
1977 में चेचक और पोलिया जैसी बीमारियों के उन्मूलन के लिए देशव्यापी अभियान चलाया गया। आज भारत से चेचक, पोलियो, गिनी वर्म, कुष्ठ रोग एवं यॉज जैसी गंभीर बीमारियों का उन्मूलन हो चुका है। हैजा, मलेरिया, फाइलेरिया, कालाजार पर भी काफी हद तक नियंत्रण पा लिया गया है। तपेदिक (टीबी), जो दुनिया में फिर से सिर उठा रही है, उसे नियंत्रित करने का बीड़ा सरकार ने उठाया है और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय समयसीमा से पहले इस पर नियंत्रण पाने के प्रयास में है। वर्तमान जीवन शैली, तनाव, प्रदूषण, मिलावट के कारण दुनिया भर में मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप, लकवा, किडनी संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। इन्हें नियंत्रित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योग का व्यापक प्रसार कर न केवल भारत, बल्कि विश्व को एक अनुपम उपहार दिया है। आज पूरा विश्व 21 जून को योग दिवस मनाता है। सरकार पोषक तत्वों से भरपूर मोटे अनाज के उपयोग पर भी जोर दे रही है, जो इन बीमारियों की रोकथाम में प्रभावी हैं। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने भी ‘इंटिग्रेटिव मेडिसिन’ का नया विचार दिया है, जिसमें मस्तिष्क, शरीर व औषधि को आपस में एक किया गया है।
संचार एवं अंतरिक्ष सेवाओं में अग्रणी ने बीते एक दशक में अपनी इस शक्ति का उपयोग कर SATCOM आधारित टेलीमेडिसिन द्वारा देश के दूरस्थ क्षेत्रों में आधुनिकतम चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए संजाल भी बिछाया है। इसमें हजारों मेडिकल कॉलेजों के बेहतरीन चिकित्सक घर बैठे चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं।
2018 में जब मोदी सरकार ने ‘आयुष्मान भारत योजना’ की घोषणा की थी, तब कुछ लोगों ने कहा था कि यह अमेरिका की ‘ओबामा केयर योजना’ जैसी है। उनका कहना था कि जब तमाम संसाधनों के बावजूद अमेरिका इसे नहीं चला पाया तो भारत में यह योजना कैसे सफल होगी? लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है कि यह योजना न केवल सफल हुई, बल्कि करोड़ों लोगों को इससे संबल मिला है। इसकी सफलता इसी से आंकी जा सकती है कि देश में अभी 72 करोड़ 25 लाख से अधिक लोग इसके कार्डधारक हैं। शीघ्र ही यह आंकड़ा 100 करोड़ को पार कर जाएगा। यानी देश की लगभग 75 प्रतिशत आबादी तक इस योजना की पहुंच होगी।
चिकित्सकीय उपकरणों के उत्पादन, प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों पर बेहद सस्ती दर पर स्तरीय दवाइयों की उपलब्धता ने चिकित्सा व्यय को काफी कम कर दिया है। सरकार ने तमाम विरोधों के बावजूद हृदय रोगों में प्रयुक्त होने वाले स्टेंट की कीमत लगभग 75 प्रतिशत तक घटा दी है। अभी देश में लोग चिकित्सा पर लगभग 60 प्रतिशत राशि खर्च करते हैं, जो चीन और ब्राजील जैसे विकासशील देशों में लगभग 30 प्रतिशत व 25 प्रतिशत से बहुत अधिक है। इसी के मद्देनजर सरकार ने ‘आयुष्मान भारत’ योजना शुरू की है और स्वास्थ्य बीमा योजना में भी सुधार कर इसे जनहितैषी बनाने पर जोर दे रही है।
देश में 2014 तक लगभग 400 मेडिकल कॉलेज थे, जिनकी संख्या 2024 में बढ़कर 725 हो गई। इसी तरह, 2014 में एमबीबीएस की लगभग 55,000 सीटें थीं, जो 2024 में बढ़कर लगभग 1,15,000 हो गई। इसके अलावा, एमडी, एमएस की सीटें भी लगभग दोगुनी हो गई हैं। सरकार ने उन्नयन योजना के तहत सरकारी जिला अस्पतालों के मेडिकल कॉलेज का विकास कर इसे संभव बनाया है। इस योजना के कारण एक तरफ तो चिकित्सकों की कमी पूरी हो रही है, ग्रामीण क्षेत्रों में भी चिकित्सक एवं विशेषज्ञ उपलब्ध हो रहे हैं और दूसरी तरफ विद्यार्थियों को घर के पास मेडिकल शिक्षा उपलब्ध हो रही है। इससे मानसिक तनाव, आवाजाही पर होने वाला अपव्यय भी रुका है। जिन जिलों में ऐसे मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं, वहां के लोगों के लिए रोजगार के रास्ते भी खुल रहे हैं।
सरकार ने आनलाइन रजिस्ट्रेशन सिस्टम लागू कर मरीजों को घर बैठे ही योग्य चिकित्सकों से इलाज की सुविधा प्रदान की है। इससे मरीजों को अब इलाज के लिए धक्के नहीं खाने पड़ते और न ही लंबा इंतजार करना पड़ता है। सभी चिकित्सकीय दस्तावेज आनलाइन उपलब्ध होते हैं और इसे देश में कहीं पर भी देखा जा सकता है। इसी तरह, खून की जांच के लिए सुई चुभोने की जरूरत नहीं पड़ती। ToucHb मरीज की उंगली के परीक्षण से ही खून की कमी का पता लगा लेती है। इसी तरह, SuChek मशीन मधुमेह का तत्काल पता लगा लेती है।
इसके अलावा, सरकार ने धूम्रपान छोड़ने के इच्छुक लोगों को प्रोत्साहित करने और उनका समर्थन करने के लिए एम-सेसेशन (m-Cessation or QuitNow program) नामक एक मोबाइल-आधारित सुविधा भी उपलब्ध करा रही है। इच्छुक व्यक्ति एक टोल फ्री नंबर पर मिस्ड कॉल देकर यह सुविधा प्राप्त कर सकते हैं। यह कदम कैंसर की रोकथाम के लिए उठाया गया है। यही नहीं, m-Diabetes द्वारा मधुमेह और उससे होने वाली समस्याओं के रोकथाम की व्यवस्था की गई है। ‘स्वस्थ भारत’ मोबाइल एप वैक्सीन ट्रैकर, इंडिया फाइट डेंगू डिजिटल प्लेटफॉर्म द्वारा भारत को प्रभावित करने वाले मौसमी बीमारियों की रोकथाम के दूसरे उदाहरण हैं।
यही नहीं, हृदय, किडनी, कैंसर, अंग प्रत्यारोपण और पेट सहित जटिल आपरेशन में रोबोटिक सर्जरी जैसी आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल अब आम हो गया है। यह सुविधा अब महानगरों से निकल कर छोटे शहरों में भी उपलब्ध है। चिकित्सा के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) का उपयोग भी बढ़ रहा है। एआई का उपयोग बेहतर चिकित्सा सलाह लेने के लिए किया जा रहा है। सीटी स्कैन, एमआरआई जैसी तकनीकों से बीमारियों का सटीक इलाज संभव हो गया है। थ्री-डी प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग जहां मानव ऊतकों के निर्माण, अंग प्रत्यारोपण में, जबकि स्क्रीन रीडर्स का उपयोग दृष्टि बाधित लोगों के लिए वरदान से कम नहीं है।
राष्ट्रीय एजिंग रिपोर्ट-2023 के अनुसार, 2050 तक भारत में बुजुर्गों की संख्या दोगुनी यानी लगभग 21 प्रतिशत हो जाएगी। उनके स्वास्थ्य की आवश्यकताओं को देखते हुए नेशनल प्रोग्राम फॉर हेल्थ केयर आफ एलडर्ली (एनपीएचसीई) शुरू किया गया है। सबको समान चिकित्सा मिले, इसलिए अस्पतालों के लिए न्यूनतम आवश्यकता वाले दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं। साथ ही, अधिकांश रोगों के लिए 21 स्पेशियलिटी और सुपर स्पेशियलिटी स्पेसीयलिटी और सुपर स्पेसीयलिटी गाइडलाइन भी तय की गई है, ताकि चिकित्सकों पर मरीजों का विश्वास बढ़े और पूरे देश में एक बीमारी का एक समान आधुनिक इलाज हो सके।
कम पैसे में आधुनिक चिकित्सा उपलब्ध कराने के लिए देश में चिकित्सा उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस दृष्टि से आंध्र प्रदेश में आंध्र प्रदेश मेड टेक जोन की स्थापना की गई है। बदलती वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक परिस्थितियों के मद्देनजर मानसिक स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक योजना लागू की गई है। नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम, डिस्ट्रिक्ट मेंटल हेल्थ प्रोग्राम, टेली मानस एक लोगों को न केवल मानसिक रूप से स्वस्थ रखने की सलाह देता है, बल्कि तनाव से बचाव के उपाय तो सुझाता है ही, मानसिक तनाव के लक्षण भी बताता है। इस एप पर 24 घंटे टेलीफोन और वीडियो सलाह दी जाती है। इसके लिए i-GOT एक सपोर्ट प्लेटफॉर्म है। इसके अलावा, NIMHANS स्वास्थ्य कर्मियों को आनलाइन प्रक्षिशण भी देता है।
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