जब अपने पैरों पर खड़े होने की बात होती है, तो उसका शाब्दिक अर्थ यह नहीं होता कि कोई व्यक्ति या समाज अपने पैरों पर खड़ा हो जाए। अपने पैरों पर खड़ा होने का मतलब है—आर्थिक तौर पर कोई देश अपने पैरों पर खड़ा हो जाए। भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद तो 1947 में ही हो गया था, लेकिन आर्थिक आजादी की यात्रा बहुत लंबी थी। भारतीय सत्तर के दशक तक विदेशी गेंहू पर निर्भर थे। अस्सी और नब्बे के दशक तक देश की अर्थव्यवस्था के बड़े ब्रांड विदेशी ही थे, यह एक सुखद स्थिति नहीं थी।
उद्योगों का विकास कोई घटना नहीं होता। यह एक प्रक्रिया के तहत होता है। इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण संस्थान रहा है आईएफसीआई। इसे पुराने लोग ‘इंडस्ट्रियल फाइनेंस कॉरपोरेशन आफ इंडिया’ के नाम से जानते हैं। यह उन चुनिंदा संस्थानों में से एक है, जो यह कह सकता है कि उसकी उम्र और अंग्रेजों से मिली भारतीय आजादी की उम्र लगभग बराबर है। इसका गठन 1948 में हुआ था। यह भारत का प्रथम विकास वित्तीय संस्थान था जिसे आर्थिक विकास को बढ़ाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था।
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है-कोषपूर्वा: समारम्भा:, तस्मात् पूर्वं कोषमवेक्षेत अर्थात् सारे कार्य कोष पर निर्भर हैं, इसलिए राजा को चाहिए कि वह सबसे पहले कोष पर ध्यान दे। राजा अपने कोष पर ध्यान ब्याज पर कर्ज लगाकर दे सकता है, पर उद्यमों के लिए कोष का इंतजाम आसान नहीं होता। साल भर पहले ही आजाद हुए देश में बड़े बैंक भी इस स्थिति में नहीं थे कि वे उद्यमों को लंबी अवधि के लिए कर्ज दे पाएं। उद्यमों को जमने के लिए थोड़े लंबे समय के लिए कर्ज की जरूरत होती है, जो आईएफसीआई द्वारा दिए जाते थे। देश के कई महत्वपूर्ण संस्थानों की नींव आईएफसीआई द्वारा दी गई पूंजी से ही रखी गई। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज जैसे महत्वपूर्ण संस्थान के पीछे एक समय आईएफसीआई का सहयोग रहा है।
बुनियादी ढांचे में योगदान
2023-24 में आईएफसीआई का शुद्ध लाभ 128 करोड़ रुपए रहा, यद्यपि आईएफसीआई ने सिर्फ लाभ कमाने को अपना उद्देश्य नहीं बनाया था। शेयर बाजार में अभी आईएफसीआई का बाजार मूल्य करीब 16,000 करोड़ रुपए है। यानी अब शेयर बाजार निवेशक आईएफसीआई के कारोबार को बहुत सकारात्मक तरीके से ले रहे हैं। आजादी मिलने के बाद के शुरुआती वर्षों में उद्यमों को जमाने का उद्यम लाभदायक न था। पर आईएफसीआई ने वह उद्यम किया। अडाणी मुंद्रा पोर्ट, जीएमआर गोवा इंटरनेशनल एयरपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों का देश के बुनियादी ढांचे में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
इन संस्थानों को खड़ा करने में आईएफसीआई का योगदान है। हवाई अड्डे, सड़कें, टेलीकॉम, पॉवर, अचल सम्पदा, विनिर्माण, सेवा क्षेत्र में आईएफसीआई का विशिष्ट योगदान रहा है। इन वर्षों के दौरान आईएफसीआई ने विभिन्न संस्थानों (सहयोगी कंपनियों सहित) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो आज अपने-अपने क्षेत्रों में अग्रणी हैं जिनमें से कुछ स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन आफ इण्डिया लिमिटेड (एसएचसीआईएल), नेशनल स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसई), एलआईसी हाऊसिंग फाइनेंस लिमिटेड, टूरिज्म फाइनेंस कॉरपोरेशन आफ इण्डिया लिमिटेड (टीएफसीआई) एवं इकरा लिमिटेड हैं।
अनुसूचित जातियों के बीच उद्यम
भारत सरकार ने अनुसूचित जातियों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने तथा उन्हें रियायती दरों पर वित्त प्रदान करने हेतु आईएफसीआई के पास 200 करोड़ रुपए की निधि रखी है। आईएफसीआई ने भी अग्रणी निवेशक तथा निधि के प्रायोजक के रूप में 50 करोड़ रुपए की राशि का योगदान किया है।
आईएफसीआई वेंचर कैपिटल फंड्स लिमिटेड, आईएफसीआई लिमिटेड की सहायक कम्पनी, इस निधि की निवेश प्रबन्धक है। यह निधि वित्तीय वर्ष 2014-15 से परिचालित है और आईवीसीएफ इस योजना के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। यानी आईएफसीआई की पहुंच समाज के ऐसे तबकों तक रही है जहां आम तौर पर दूसरे वित्तीय संस्थान नहीं पहुंचे हैं। देश की अनुसूचित जातियों के बीच उद्यमिता के विकास के संदर्भ सिर्फ आर्थिक ही नहीं हैं, सामाजिक संदर्भ भी हैं।
लघु उद्यमों का विकास उस क्षेत्र में तेजी से हुआ है, जिसमें आईएफसीआई का योगदान रहा है। गौरतलब है कि देश में दलित उद्यमिता के क्षेत्र में बीते कुछ बरसों में महत्वपूर्ण काम हुए हैं। दलित इंडियन चैंबर आफ कॉमर्स एंड, इंडस्ट्री नामक संस्थान इस क्षेत्र में अभूतपूर्व काम कर रहा है। इस संस्थान का सूत्र वाक्य है-नौकरी देने वाले बनो, नौकरी तलाशने वाले नहीं। नौकरी देने के लिए उद्यम जरूरी हैं। आईएफसीआई की भूमिका इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह संस्थान उद्यम जमाने के धंधे में जुटा हुआ है।
प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेटिव योजना यानी ‘पीएलआई’ यानी उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना, आईएफसीआई ने प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव योजना यानी पीएलआई में खास भूमिका निभाई है।
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, ‘पीएलआई’ एक ऐसी योजना है जो स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए घरेलू उद्योगों को सहयोग देती है। जब ऐसा होता है, तो विशेष रूप से तैयार किए गए उत्पाद सामने आते हैं जो ग्राहकों को संतुष्ट करते हैं। घरेलू व्यवसाय आयात बिलों को कम करने में भी मदद करते हैं। इस योजना के अनुसार, सरकार घरेलू कंपनियों और प्रतिष्ठानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने या उनका विस्तार करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिसके लिए वह वृद्धिशील बिक्री पर प्रोत्साहन प्रदान करती है।
इस योजना का उद्देश्य उत्पादन के खास क्षेत्रों को प्रोत्साहित करना है- जिनमें मोबाइल फोन और असेंबली, फार्मा और चिकित्सा उपकरणों जैसे क्षेत्रों के अलावा खाद्य प्रसंस्करण, कपड़ा आदि शामिल हैं। देश में पीएलआई योजना कई कारणों से आवश्यक है। जो देश मंगलयान बना सकता है वह मोबाइल फोन के मामले में चीन पर आश्रित क्यों रहे। सो घरेलू निर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना जरूरी है। यह तब ही संभव है जब घरेलू उद्योगों को अधिक और उचित महत्व दिया जाए। अगर उद्यमों को सम्यक पूंजी सहयोग मिल जाएं तो
घरेलू उत्पादों का निर्माण आसानी से संभव हो सकता है, उचित लागत में।
इलेक्ट्रानिक उत्पादों, दवा उद्योग से जुड़े उत्पादों, मेडिकल उपकरण एवं आटोमोबाइल से जुड़े उत्पादों के क्षेत्र में जो ‘पीएलआई’ योजना चल रही हैं, उनमें आईएफसीआई की महत्वपूर्ण भूमिका है। पीएलआई की कामयाबी का रणनीतिक महत्व है। चीन पर निर्भरता जितनी कम होगी, उतना ही भारत के लिए बेहतर होगा। इस लिहाज से ‘पीएलआई’ में आईएफसीआई के योगदान को रणनीतिक महत्व का माना जाना चाहिए। बदलते समय में साथ आईएफसीआई ने अपने रुख में अनेक बदलाव किए हैं। यह आईएफसीआई और भारतीय अर्थव्यवस्था दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है।
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