पिछले दस वर्ष में भारत की राजनीतिक सोच बदल गई है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विषयों पर सोच एवं विचार में भारतीयता प्रकट होने लगी है। 26 जनवरी, 1950 को भारतीय संविधान को हम भारत के नागरिकों ने अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मसमर्पित किया था। लेकिन इतने वर्षों बाद भी एक व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता की ओर हम आगे नहीं बढ़ पाए हैं। लेकिन 2014 से प्रारंभ हुए काल में एक के बाद एक कई ऐसे निर्णय लिए गए जिनसे भारत का नाम, प्रतिष्ठा एवं सम्मान विश्व में बढ़ा और राष्ट्र की गरिमा, एकता और अखंडता को सुनिश्चित और बंधुता को बढ़ाने वाले कई निर्णय लिए गए, जो अपने आप में शोध का विषय हो सकते हैं।
सर्वप्रथम 99वें संविधान संशोधन की बात। संसद ने संविधान संशोधन विधेयक 2014 को सर्वसम्मति से पारित किया, जिसका उद्देश्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एन.जे.ए.सी.) का गठन करना था। हालांकि इसे न्यायालय में चुनौती दी गई और 2015 में एक संविधान पीठ ने इस संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया। यह संशोधन न्यायपालिका और कार्यपालिका की समान भागीदारी सुनिश्चित करता था। बता दें कि अनुच्छेद 124 (2) में प्रावधान है कि राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अन्य न्यायाधीशों के साथ परामर्श के बाद सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करेंगे।
उपरोक्त विधेयक संविधान के अनुच्छेद 124 (2) में संशोधन करके एक आयोग का प्रावधान करता था, जिसे राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के रूप में जाना जाता है। एन.जे.ए.सी. में भारत के मुख्य न्यायाधीश (अध्यक्ष), सर्वाेच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री, दो प्रतिष्ठित व्यक्ति (मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता वाली समिति द्वारा नामित)। दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक व्यक्ति अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक समुदाय से होगा या महिला भी। प्रतिष्ठित व्यक्तियों को तीन वर्ष की अवधि के लिए नामित किया जाना था और वे पुन: नामांकन के पात्र नहीं थे। एक नया अनुच्छेद 124बी एन.जे.ए.सी. के कार्यों का प्रावधान करता था। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उस संशोधन को रद्द कर दिया। हालांकि लोग महसूस कर रहे हैं कि आज एक बार फिर से इस विषय पर देशभर में एक विचार-विमर्श होना चाहिए।
तत्पश्चात् वस्तु एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) लागू करने के लिए संविधान में संशोधन किया गया। इससे संसद और राज्य विधानसभाओं के पास जी.एस.टी. पर कानून बनाने के लिए समवर्ती शक्तियां बनीं। अखिल भातीय स्तर पर जी.एस.टी. परिषद बनाई गई। इसमें केंद्रीय वित्त मंत्री, केंद्रीय राजस्व राज्य मंत्री और राज्य के वित्त मंत्री शामिल हैं। जी.एस.टी. परिषद ही जी.एस.टी. कर दरें, अतिरिक्त कर लगाने की अवधि, आपूर्ति के सिद्धांत, कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान आदि की सिफारिश करती है। यह कानून केंद्र को अंतरराज्यीय व्यापार और वाणिज्य के दौरान जी.एस.टी. लगाने और संग्रह करने की अनुमति देता है।
370 की समाप्ति से मिली समानता
इस दस वर्ष के दौरान ही संसद ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया है। इसके बाद वहां के सभी लोगों को समान अवसर मिल रहे हैं। ऐसे ही भारत के पड़ोसी देशों में मजहबी उन्मादियों द्वारा प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए.) बनाया है। इस कारण पाकिस्तान, बांग्लादेश से आने वाले पीड़ित हिंदुओं को भारत की नागरिकता भी मिल रही है। इन्हें संविधान संशोधन नहीं कहा जा सकता।
फिर 2017 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एन.सी.बी.सी.) को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के समान संवैधानिक दर्जा प्रदान करने हेतु संविधान संशोधन किया गया। एन.सी.बी.सी. राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 के तहत स्थापित एक निकाय है। इसके पास पिछड़े वर्गों की सूची में समूहों को शामिल करने या बाहर करने से संबंधित शिकायतों की जांच करने और इस संबंध में केंद्र सरकार को सलाह देने का अधिकार है। इसके साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की उन्नति के लिए 2019 में संविधान में संशोधन किया गया तथा शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक रोजगार में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 प्रतिशत तक का आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त दिया गया।
संविधान का अनुच्छेद 15 किसी भी नागरिक के साथ नस्ल, मजहब, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। हालांकि, सरकार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए विशेष प्रावधान कर सकती है। उपरोक्त विधेयक अनुच्छेद 15 में संशोधन करने का प्रयास करता है, ताकि सरकार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए अतिरिक्त प्रावधान करने की अनुमति मिल सके। इसके अलावा, शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए ऐसे वर्गों के लिए 10 प्रतिशत तक सीटें आरक्षित की जा सकती हैं। ऐसा आरक्षण अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों पर लागू नहीं होगा। 2019 में ही एक अन्य संविधान संशोधन किया गया। यह संशोधन लोक सभा एवं विधानसभाओं में अनुसूचित जाति एवं अनूसूचित जनजाति के आरक्षण को 25 जनवरी, 2030 तक बढ़ाता है, लेकिन विधायिका में एंग्लो इंडियन समुदाय का मनोनयन भी समाप्त करता है।
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीट महिलाओं के लिए आरक्षित करने के उद्देश्य से 2023 में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया गया। यह बहुत ही महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन है। इससे महिलाओं का सशक्तिकरण होगा। उल्लेखनीय है कि संविधान सभा में ही महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का विरोध किया गया था। लेकिन 1993 में पारित 73वें और 74वें संशोधन पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है। संविधान में अनुसूचित जातियों (एस.सी.) और अनुसूचित जनजातियों (एस.टी.) के लिए उनकी आबादी के अनुपात में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था।
विशेषज्ञों का मानना है कि उपरोक्त सभी संविधान संशोधनों से देश और मजबूत होगा। कमजोर वर्ग, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं को सशक्त करने के उद्देश्य से किए गए उपरोक्त संवैधानिक संशोधन भारतीय लोकतंत्र को भी सशक्त करेंगे।
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