सरकार बैंकों के अरबों रुपये लेकर विदेश भागने वाले कारोबारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है। इन पर बैंकों के लाखों करोड़ रुपये बकाया हैं। इनमें विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, नितिन-चेतन संदेसरा, जतिन मेहता, ललित मोदी जैसे भगोड़े आर्थिक अपराधी शामिल हैं। सरकार ने कई भगोड़ों के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किए हैं। नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे कई भगोड़ों को वापस भारत लाने की प्रक्रिया तो पहले ही शुरू हो चुकी है, जबकि कई को प्रत्यर्पित कर वापस लाया जा चुका है। सभी भगोड़े संयुक्त अरब अमीरात, इंग्लैंड, बेल्जियम, अमेरिका जैसे देशों में छिपे हुए हैं।
गत दिनों भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने जान-बूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों की सूची जारी की है, जिनमें 2,664 कंपनियों के नाम हैं। इन्होंने बैंकों से कर्ज तो लिया, लेकिन चुकाया नहीं। इन पर 1.96 लाख करोड़ रुपये की देनदारी है। भगोड़े हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी की कंपनी गीतांजलि जेम्स लिमिटेड पर बैंकों के सर्वाधिक 8,516 करोड़ रुपये बकाया हैं। आरबीआई के अनुसार, मार्च 2020 तक लोन नहीं चुकाने वाली कंपनियों की संख्या 2,154 थी, जिसमें मार्च 2024 में 510 और कंपनियां जुड़ गईं। आरबीआई ने बैंकों से स्पष्ट कहा है कि वे कर्ज नहीं चुकाने वालों को ‘विलफुल डिफॉल्टर’ घोषित करने में देरी न करें।
दरअसल, बैंकों ने कर्ज लेने वालों को ‘विलफुल डिफॉल्टोर’ घोषित करने के लिए याचिका दाखिल कर अतिरिक्त समय मांगा था, लेकिन आरबीआई ने साफ इनकार कर दिया। इससे पहले दिसंबर 2024 में ही आरबीआई ने 6 माह के भीतर जान-बूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों की सूची बनाने को कहा था। साथ ही, डिफॉल्टर्स की सूची भी जारी की थी। इसके अलावा, आरबीआई ने एक सर्कुलर भी जारी किया था, जिसके तहत बैंक ‘विलफुल डिफॉल्टर’ की फोटो भी प्रकाशित कर सकते हैं।
कर्ज लेकर भागे विदेश
बीते एक दशक में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में बैंकों को 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक का लोन बट्टा खाते में डालना पड़ा है। इसमें सरकारी बैंक सबसे आगे हैं। 2020-2024 के बीच एसबीआई ने सर्वाधिक 1.46 लाख करोड़, पीएनबी ने 82,449 करोड़, यूनियन बैंक ने 82,323 करोड़, बैंक आफ बड़ौदा ने 77,177 करोड़ और बैंक आफ इंडिया ने 45,467 करोड़ रुपये बट्टा खाते में डाले हैं। 2022 तक आईसीआईसीआई बैंक ने 50,514 करोड़ और एचडीएफसी बैंक ने 34,782 करोड़ रुपये बट्टा खाते में डाले थे।
4 वर्ष पहले तक जान-बूझकर लोन नहीं चुकाने वालों पर विभिन्न बैंकों का बकाया 1,52,860 करोड़ रुपये था, जो इस वर्ष बढ़कर 1,96,441 करोड़ रुपये हो गया है। इनमें जहाज निर्माता कंपनी एबीजी शिपयार्ड, कॉनकास्ट स्टील एंड पावर, एरा इन्फ्रा इंजीनियरिंग, आरईआई एग्रो, विनसम डायमंड्स एंड ज्वेलरी, ट्रांस्ट्रॉय, रोटोमैक ग्लोबल, जूम डेवलपर्स और यूनिटी इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स जैसी कंपनियां शामिल हैं। बैंकों का पैसा लेकर विदेश भागने वालों की संख्या 58 थी। इनमें 1 जनवरी, 2015 से 31 दिसंबर, 2019 के बीच 38 आर्थिक अपराधी देश छोड़कर भाग गए। इन्होंने कांग्रेस की अगुआई वाले संप्रग सरकार के कार्यकाल में बैंकों से कर्ज लिया था। लेकिन जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार सत्ता में आई तो जान-बूझकर कर्ज नहीं चुकाने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई। लिहाजा, इन्होंने देश छोड़कर भागना ही उचित समझा।
हालांकि, कांग्रेस यह आरोप लगाती रही है कि भाजपा सरकार ने इन्हें भगाया, जबकि सच यह है कि कांग्रेस ने भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद पर कभी नकेल कसने की कोशिश ही नहीं की। इस संबंध में आरबीआई के पूर्व गवर्नर एन रघुराम राजन का बयान महत्वपूर्ण है, जिसमें उन्होंने कहा था कि 2006 से 2008 के दौरान बड़ी संख्या में ‘बैड लोन’ दिए गए। इनमें बड़ी संख्या में वे लोग थे, जिनका कर्ज चुकाने का इतिहास अत्यन्त खराब था। इसके बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक उदार मन से उन्हें कर्ज देते रहे।
‘पीछा नहीं छोड़ेंगे’
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने एक प्रश्न के उत्तर में संसद को बताया है कि 2015 से 2024 तक बैंकों ने 12.3 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया है। इसमें अकेले 53 प्रतिशत यानी 6.5 लाख करोड़ रुपये सरकारी बैंकों ने माफ किए हैं। 30 सितंबर, 2024 तक सरकारी बैंकों का एनपीए 3.16 लाख करोड़ रुपये था, जो बकाया ऋण का 3.09 प्रतिशत है और निजी बैंकों का एनपीए 1.34 लाख करोड़ रुपये यानी बकाया ऋण का 1.86 प्रतिशत था। एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2019 तक कुल एनपीए का 43 प्रतिशत से अधिक यानी 4.02 लाख करोड़ रुपये केवल 100 कंपनियों के पास था। इनमें 30 कर्जदारों के पास कुल एनपीए के 30 प्रतिशत से अधिक यानी 2.86 लाख करोड़ रुपये बकाया थे।
31 मार्च, 2024 तक 580 कर्जदारों, जिन पर 50 करोड़ रुपये से अधिक का ऋण बकाया है, को अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ‘विलफुल डिफॉल्टर’ घोषित किया गया है। इनमें अभी तक 3.55 लाख करोड़ रुपये की वसूली की गई है। इन मामलों में बैंकों सहित लेनदारों का कुल दावा 11.45 लाख करोड़ रुपये था, जबकि कुल परिसमापन मूल्य 2.21 लाख करोड़ रुपये था। यानी कर्ज की कुल रकम में से बहुत कम की ही वसूली की जा सकी है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण स्पष्ट कर चुकी हैं कि बैंकों द्वारा दी जाने वाली कर्ज माफी का मतलब यह नहीं है कि कर्ज नहीं चुकाने वालों को माफी दे दी गई। वे बार-बार कहती आई हैं कि बैंकों का जान-बूझकर कर्ज नहीं लौटाने वालों से पाई-पाई वसूली जाएगी। ऐसे लोगों से सख्ती से निपटा जा रहा है, चाहे वे भारत में हों या देश के बाहर। 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सत्ता में आई थी, तब बैंकों का फंसा हुआ कर्ज (एनपीए) चिंता का विषय था। लेकिन एनपीए कम करने के लिए सरकार ने चार ‘आर’ रणनीति पर काम शुरू किया। इसमें एनपीए की पारदर्शी पहचान, समाधान-वसूली, पुनर्पूंजीकरण और वित्तीय प्रणाली में सुधार शामिल हैं। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए। लोन नहीं चुकाने वालों की संपत्ति कुर्क की गई और कानूनी प्रक्रिया के तहत उन्हेें बेचा या नीलाम कर बैंकों का उधार चुकता किया गया।
इसके अलावा, सरकार ने 2016-17 से 2020-21 के बीच बैंकों में कुल 3.11 लाख करोड़ रुपये की पूंजी डाली, जिससे बैंकों को मदद मिली। वित्त मंत्री द्वारा लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार 2018 से 2022 तक 5 वर्ष में 4.8 लाख करोड़ रुपये की वसूली की गई। इसमें बट्टा खाते में डाले गए कर्ज के 1.03 लाख करोड़ रुपये भी शामिल थे। 2022 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए 8.9 लाख करोड़ रुपये से घटकर 3 लाख करोड़ रुपये पर आ गया था। यानी एनपीए में 5.41 लाख करोड़ रुपये की कमी आई।
विलफुल डिफॉल्टर कौन?
यदि कोई व्यक्ति बैंक से कर्ज लेता है और तीन माह यानी 90 दिन तक ईएमआई जमा नहीं करता है तो उसका खाता गैर निष्पादित परिसंपत्ति यानी एनपीए में बदल जाता है। इसके बाद बैंक लोन वसूली की प्रक्रिया शुरू करता है। हालांकि इस प्रक्रिया में ग्राहक को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है। लेकिन यदि किसी के पास पैसा है या वह अच्छी कमाई कर रहा है, फिर भी बैंक का कर्ज नहीं लौटा रहा है, तो बैंक उसे ‘विलफुल डिफॉल्टर’ घोषित करने की प्रक्रिया शुरू करता है। इस दौरान भी लोन लेने वाले व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है। यदि कोई जान-बूझकर लोन की राशि नहीं लौटाता, तो बैंक उसके गारंटर से भी वसूली कर सकता है। बैंक यदि एक बार किसी को डिफॉल्टर घोषित कर देता है, तो उसे नया कर्ज नहीं मिलता। रिजर्व बैंक के नियमानुसार डिफॉल्टर व्यक्ति 5 वर्ष के लिए कोई नया उद्यम नहीं लगा सकता।
अब विदेश भागना आसान नहीं
केंद्र सरकार ने विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी जैसे भगोड़े आर्थिक अपराधियों की संपत्ति कुर्क करने के लिए भी एक कानून बनाया है। भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम-2018 का उद्देश्य आर्थिक अपराधियों को कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए देश छोड़कर भागने से रोकना है। इसके तहत, 100 करोड़ रुपये से अधिक का अपराध करने वाले आर्थिक अपराधियों की संपत्ति जब्त की जा सकती है और विशेष अदालत उन्हें ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी’ घोषित कर सकती है। साथ ही, इसमें 180 दिनों के लिए संपत्ति कुर्क करने का भी प्रावधान है। जब्त संपत्ति में अपराध से अर्जित व बेनामी संपत्ति शामिल हो सकती हैं। जब्त संपत्ति को आदेश जारी होने के 90 दिन बाद नीलामी के लिए रखा जाता है। इस अधिनियम के तहत, नीलामी से मिलने वाली रकम को सरकारी कोष या बैंक खाते में जमा किया जाता है। इस अधिनियम के तहत, आरोपी को नोटिस जारी होने के कम से कम छह सप्ताह के भीतर बताए गए स्थान पर पेश होने के लिए कहा जाता है। नोटिस व्यक्ति के पैन या आधार डेटाबेस में दर्ज ईमेल पते पर भी भेजा जा सकता है।
10 लाख करोड़ की वसूली
इसी वर्ष मई में उन्होंने कहा था कि लोन डिफॉल्टर्स को किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी जा रही है। सरकार ने कुल मिलाकर 10 लाख करोड़ रुपये की वसूली की है। 31 मई, 2024 तक ईडी ने कुल 64,920 करोड़ की संपत्ति अटैच की, जबकि 1105 डिफॉल्टर्स के खिलाफ जांच चल रही है। दिसंबर 2023 तक 15,183 करोड़ की राशि सरकारी बैंकों को लौटाई गई। उन्होंंने विपक्ष को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि विपक्ष झूठ बोलने और अफवाह फैलाने का आदी हो गया है। उसे ‘लोन वेवर’ और ‘राइटआफ’ में अंतर ही समझ में नहीं आता है। सच यह है कि किसी भी उद्योगपति का कर्ज माफ नहीं किया गया।
कुछ दिन पहले भी वित्त मंत्री ने लोकसभा को बताया था कि जांच एजेंसियां अपना काम कर ही रही हैं, लेकिन बीते कुछ समय में सरकार ने भगोड़े कारोबारियों की संपत्ति जब्त कर सरकारी और निजी बैंकों का पैसा लौटाया है। सरकार किसी भी भगोड़े को नहीं छोड़ेगी। इस सिलसिले में ईडी ने विजय माल्या की 14,131.6 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त कर उसे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को लौटाया है। अभी तक ईडी 22,280 करोड़ रुपये की संपत्तियां पीड़ितों या सही दावेदारों को लौटा चुका है। इस बीच, भगोड़े विजय माल्या ने ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘6,203 करोड़ रुपये की बजाए उससे दोगुने से अधिक राशि वसूली गई है। साथ ही, यह सवाल भी उठाया कि ईडी और बैंकों का देय राशि से दोगुना अधिक वसूलने का आधार क्या है? दोगुने से अधिक कर्ज की वसूली के बावजूद मुझ पर ‘आर्थिक अपराधी’ का ठप्पा लगा हुआ है। जब तक ईडी और बैंक इसे कानूनी रूप से सही नहीं ठहराते, मैं राहत का हकदार हूं।’’
इसी तरह, सरकार ने नीरव मोदी की 1,052.58 करोड़ रुपये की संपत्ति को नीलाम कर बैंकों के पैसे लौटाए हैं। मेहुल चोकसी की भी 2,565.90 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की गई है, जिसे नीलाम किया जाएगा। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड मामले में धोखाधड़ी के शिकार निवेशकों को 17.47 करोड़ रुपये की संपत्ति पहले ही लौटाई जा चुकी है। इसके अलावा, विदेशी काला धन मामले में उन्होंने कहा, ‘‘2015 का काला धन अधिनियम बहुत से करदाताओं को पर निवारक प्रभाव डाल रहा है। वे अपनी विदेशी संपत्तियों का खुलासा करने के लिए खुद आगे आ रहे हैं। विदेशी संपत्तियों का खुलासा करने वाले करदाताओं की संख्या 2024-25 में 2 लाख हो गई, जो 2021-22 में 60,467 थी। इस अधिनियम के तहत 17,520 करोड़ रुपये से अधिक की मांग की गई है और 163 अभियोग चलाए गए हैं।’’
डिफॉल्टर्स पर गाज
एबीजी शिपयार्ड की हेराफेरी एसबीआई के आडिट में पकड़ी गई थी। इस सिलसिले में सितंबर 2022 में सीबीआई ने कंपनी के प्रमोटर ऋषि अग्रवाल को गिरफ्तार भी किया था। इसी तरह, अभी कुछ दिन पहले प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कॉनकास्ट स्टील एंड पावर के मालिक संजय सुरेका के 13 ठिकानों पर धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए)-2002 के तहत छापेमारी कर सुरेका को गिरफ्तार किया था। सुरेका पर 16 बैंकों से 6,210 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने का आरोप है। ईडी ने सुरेका के कोलकाता स्थित घर से 4.5 करोड़ रुपये के सोने के आभूषण और लग्जरी कारें जब्त की हैं। ईडी यह जांच कर रहा है कि बैंकों का पैसा विदेशों में कैसे भेजा गया? बता दें कि नवंबर 2017 में कॉनकास्ट स्टील एंड पावर लगभग 10,000 करोड़ रुपये के बकाये के साथ दिवालिया हो गई थी।
इससे पूर्व ईडी ने 2018 में आरईआई एग्रो के प्रबंध निदेशक संदीप झुनझुनवाला को गिरफ्तार किया था। यह कार्रवाई भी धनशोधन मामले में की गई थी। कंपनी पर 3,637 करोड़ रुपये का कर्ज बाकी है। झुनझुनवाला के खिलाफ सीबीआई ने भी मामला दर्ज किया था। आरबीआई की ‘विलफुल डिफॉल्टर’ की सूची में एरा इन्फ्रा इंजीनियरिंग के प्रमोटर एचएस भड़ाना का नाम चौथे स्थान पर है। एनसीएलटी ने इस वर्ष जून में एसए इन्फ्रा स्ट्रक्चर कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड को एरा इन्फ्राक के अधिग्रहण को मंजूरी दी थी।
भगोड़े आर्थिक अपराधियों में विनसम डायमंड्स के प्रमोटर जतिन मेहता का भी नाम है। मेहता पर लगभग 8,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के आरोप हैं। जब कर्ज चुकाने की बारी आई तो वह ब्रिटेन भाग गया। 2022 में लंदन की एक अदालत ने मेहता और उसके परिवार के खिलाफ फ्रीजिंग आर्डर जारी किया था, जिसे उसने उच्च अदालत में चुनौती दी थी। लेकिन वहां से उसे राहत नहीं मिली थी। इस मामले में भी कांग्रेस ने राजग सरकार को घेरती रही है। लोन नहीं चुकाने वालों की सूची में हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी की कंपनी गीतांजलि सबसे ऊपर है। जनवरी 2018 में पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) का घोटाला सामने आने से पहले ही वह अपने भतीजे नीरव मोदी के साथ देश छोड़कर भाग गया। वह तब से एंटीगुआ में रह रहा है, जबकि नीरव मोदी मार्च 2019 से ब्रिटेन की जेल में बंद है।
सरकार ने अक्तूबर 2018 में 3,700 करोड़ रुपये के अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलिकॉप्टर घोटाले के मुख्य आरोपी क्रिश्चियन मिशेल सहित दो बिचौलियों के प्रत्यर्पण की मांग की थी। 2015 में गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी होने और उसके बाद रेड कॉर्नर नोटिस के बाद मिशेल को दुबई से गिरफ्तार किया गया और 4 दिसंबर, 2018 को भारत प्रत्यर्पित किया गया था। अभी वह हिरासत में है और उसका मामला न्यायालय में विचाराधीन है। इसी तरह, दुबई स्थित व्यवसायी राजीव सक्सेना को 3,600 करोड़ रुपये के घोटाले में 31 जनवरी, 2019 को भारत प्रत्यर्पित किया गया था।
लंदन की वेस्ट मिन्स्टर अदालत ने तो विजय माल्या के प्रत्यर्पण की मंजूरी भी दे दी है, लेकिन उसने इस आदेश के खिलाफ लंदन की उच्च अदालत में अपील दायर कर रखी है। विजय माल्या 2016 में भारत छोड़कर भाग गया था। उस पर विभिन्न बैंकों का 9,000 करोड़ रुपये का गबन करने का आरोप है। इसी तरह, मेहुल चोकसी और नीरव मोदी पर 14,000 करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का आरोप है। पीएनबी के अधिकारियो की मिलीभगत से इन्होंने 2011 से 2018 के बीच फर्जी लेटर आफ अंडरटेकिंग्स के जरिए विदेशी खातों में पैसे हस्तांतरित किए थे। 2018 में भागने से पहले चोकसी ने 2017 में एंटीगुआ-बारबुडा की नागरिकता ले ली थी। इस घोटाले की जांच कर रही सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियां चौकसी के प्रत्यर्पण के प्रयास में जुटी हैं।
आर्थिक अपराधी देश से बाहर नहीं भाग सकें, इसके लिए सरकार ने कानून भी बनाया है। कुल मिलाकर बैंकों का पैसा लेकर भागना अब आसान नहीं है। जो भाग गए हैं, वे इस बात को बहुत अच्छी तरह जान और समझ रहे हैं। रही बात वसूली की तो सरकार उनकी संपत्तियां जब्त कर उससे वसूली भी कर रही है और विदेशों से ऐसे अपराधियों को प्रत्यर्पित भी करा रही है।
कानून को बना रहे ढाल
धन शोधन रोकथाम अधिनियम के तहत ईडी जब किसी के खिलाफ कार्रवाई करता है या किसी को गिरफ्तार करता है, तो वह अदालत में चला जाता है। 2022 तक धन शोधन के 200 से अधिक मामले अदालतों में लंबित थे। कई गंभीर मामलों में अदालतों द्वारा अंतरिम रोक लगाने के कारण जांच प्रभावित हुई है। कुछ याचिकाएं तो ऐसी है, जिनमें पीएमएलए के कुछ प्रावधानों की वैधता को ही चुनौती दी गई है।
यह बात सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सर्वोच्च न्यायालय में कही थी। 23 फरवरी, 2022 को उन्होंने केंद्र की ओर से शीर्ष अदालत को बताया था कि 2002 में धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) लागू होने के बाद से ईडी ने 4,700 मामलों की जांच की। ऐसे मामलों में अदालतों द्वारा पारित अंतरिम आदेशों द्वारा कवर की गई कुल राशि लगभग 67,000 करोड़ रुपये है। लेकिन 20 वर्ष में केवल 313 लोगों को गिरफ्तार किया गया। इसका कारण है जबरदस्त ‘सांविधिक सुरक्षा’।
उन्होंने कहा था कि ब्रिटेन, अमेरिका, चीन, हांगकांग, बेल्जियम और रूस जैसे देशों में धन शोधन अधिनियम के तहत सालाना दर्ज मामलों की तुलना में भारत में पीएमएलए के तहत जांच के लिए बहुत कम दर्ज किए जा रहे हैं। उनके अनुसार, 2016-17 और 2020-21 तक 5 वर्ष के दौरान 33 लाख एफआईआर दर्ज की गई, लेकिन जांच 2,086 मामलों में ही हुई। वहीं, इसी कानून के तहत ब्रिटेन में 7900, अमेरिका में 1532, चीन में 4691, आस्ट्रिया में 1036, हांगकांग में 1823, बेल्जियम में 1862 और रूस में सालाना 2,764 मामले दर्ज किए गए। उनका कहना था कि भारत वैश्विक स्तर पर धन शोधन रोधी नेटवर्क का एक हिस्सा है। धन शोधन एक ऐसा वैश्विक खतरा है, जिससे कोई भी देश निजी स्तर पर निपट नहीं सकता। इसके लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास जरूरी है।
‘एनपीए का ‘लैंडमाइन’ कांग्रेस की देन’
2014 में जब केंद्र में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब बैंकों की हालत बहुत खराब थी। बैंक गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के बोझ तले दबे हुए थे। इसका अनुमान 20 जुलाई, 2018 को विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताीव पर प्रधानमंत्री मोदी के जवाब से से लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा था कि ‘कांग्रेस की करतूतों के कारण 2014 में उनकी सरकार को एनपीए की समस्या एक लैंडमाइन की तरह मिली।’
उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव के उत्तर में कहा था, ‘‘देश में एनपीए की शुरुआत 2008 में कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुई थी, जो 2014 तक जारी रही। कांग्रेस सरकार ने बड़ी संख्या में सरकारी बैंकों से पार्टी के करीबी लोगों को कर्ज दिए, जिससे देश के समक्ष एनपीए एक बड़ी चुनौती बन गयी। स्वतंत्रता के 60 वर्ष बाद तक बैंकों ने सिर्फ 18 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिए था, लेकिन 2008 से 2014 के बीच यह राशि बढ़ कर 52 लाख करोड़ रुपये हो गई।’’ यानी कांग्रेस सरकार ने मात्र 6 वर्ष में रेवड़ी की तरह दोगुना से अधिक कर्ज बांटे। इस पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि जब देश में इंटरनेट बैंकिंग नहीं था, तब कांग्रेस सरकार ने टेलीफोन बैंकिंग के सहारे इस घोटाले को अंजाम दिया।
कांग्रेस के नेता सीधे बड़े बैंकों के प्रबंधकों को फोन कर लोन के लिए सिफारिश करते थे। जब कर्ज लौटाने का समय आता था, तब पुराना कर्ज वसूलने की बजाय कारोबारियों को नया कर्ज दे दिया जाता था। इस कारण सरकारी बैंकों पर कर्ज का बोझ बढ़ता गया। उन्होंने यहां तक कहा था कि कांग्रेस सरकार इस कोशिश में थी कि अगर वह 2009 में चुनाव हार जाती है तो उससे पहले जितना हो सके देश के बैंकों को खाली कर दे। लेकिन 2009 में कांग्रेस फिर से सत्ता में आ गई और संप्रग के दूसरे कार्यकाल में भी बैंकों की लूट जारी रही। साथ ही, उन्होंंने 12 बड़े डिफॉल्टर्स से 45 प्रतिशत राशि वसूलने की बात भी कही थी।
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