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फिर नाकाम आतंकी साजिश

गत दिनों तीन राज्यों की पुलिस ने एक आतंकवाद विरोधी अभियान में बांग्लादेश के एक आतंकी सहित आठ आतंकियों को गिरफ्तार किया। इनके निशाने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी, हिंदू संगठनों के नेता और पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने वाला ‘चिकन नेक’ गलियारा था

by नागार्जुन
Dec 30, 2024, 05:03 pm IST
in भारत, असम, विश्लेषण, केरल, पश्चिम बंगाल
असम, पश्चिम बंगाल और केरल एसटीएफ की संयुक्त कार्रवाई में गिरफ्तार किए गए आठ आतंकी

असम, पश्चिम बंगाल और केरल एसटीएफ की संयुक्त कार्रवाई में गिरफ्तार किए गए आठ आतंकी

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गत दिनों पश्चिम बंगाल, असम और केरल पुलिस ने एक साथ ‘आपरेशन प्रघात’ चलाकर आतंक के एक बड़े मॉड्यूल का खुलासा किया। इस आतंक विरोधी अभियान में आठ आतंकियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इनके निशाने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी, हिंदू संगठनों के नेता और पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने वाला सिलीगुड़ी गलियारा यानी ‘चिकन नेक’ था। ये देश को साम्प्रदायिक हिंसा की आग में झोंक कर पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में उथल-पुथल मचा अपने मंसूबों को अंजाम देने की फिराक में थे।

मंसूबे खतरनाक

असम एसटीएफ ने केरल और पश्चिम बंगाल पुलिस की मदद से जिन आतंकियों को गिरफ्तार किया है, उनमें बांग्लादेशी मोहम्मद साद राडी उर्फ साद शेख भी है। केरल के कासरगोड से गिरफ्तार साद शेख असम में हुए एक आतंकी मामले से जुड़ा है। वह लगभग चार माह पहले फर्जी पासपोर्ट पर केरल आया था और भवन निर्माण मजदूर के तौर पर काम कर रहा था। 17-18 दिसंबर को की गई छापेमारी में आतंकी मीनारुल शेख व मोहम्मद अब्बास अली को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद से, जबकि नूर इस्लाम मंडल, अब्दुल करीम मंडल, मोजिबर रहमान, हमीदुल इस्लाम और इनामुक हक को असम से गिरफ्तार किया गया। इन सभी की उम्र 30-46 वर्ष के बीच है और ये बांग्लादेश स्थित आतंकी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (एबीटी) से जुड़े हैं।

पूछताछ में उन्होंने बताया कि उनके निशाने पर सिलीगुड़ी गलियारा यानी ‘चिकन नेक’ था। रा.स्व.संघ के पदाधिकारियों और हिंदू नेताओं की हत्या के बाद एबीटी स्लीपर सेल की योजना पश्चिम बंगाल, विशेषकर संवेदनशील चिकन नेक कॉरिडोर व असम में संचार लिंक को नुकसान पहुंचाने और इन राज्यों में सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर हमला करने की थी। इनकी योजना अधिक से अधिक लक्षित हत्या करने की थी, जिससे हिंसा बढ़ती और पश्चिम बंगाल, असम व त्रिपुरा में मणिपुर जैसी स्थिति बन जाती।

ऐसी स्थिति में आतंकियों के लिए चिकन नेक को काटना आसान हो जाता। साम्प्रदायिक दंगा भड़काने के लिए ये हथियार और गोला-बारूद हासिल करने की फिराक में थे। इनके तार पाकिस्तान और बांग्लादेश के आतंकी संगठनों से जुड़े हैं। ये पिछले कुछ समय से अपने आकाओं के निर्देश पर भारत में कट्टरपंथी इस्लामी मौलवियों की मदद से स्लीपर सेल में भर्ती के लिए गुर्गों की पहचान कर रहे थे। उन्हें सतर्क रहने के लिए भी कहा जा रहा था ताकि वे सुरक्षा एजेंसियों की पकड़ में न आएं। गिरफ्तार आतंकियों के पास से हिंदुओं के खिलाफ नफरत का प्रचार और काफिरों के खिलाफ हिंसा की वकालत करने वाला कट्टरपंथी इस्लामी साहित्य भी मिला है। इसमें भारत के खिलाफ विध्वंसक गतिविधियां चलाने जैसी बातें हैं।

खतरा है बड़ा

महत्वपूर्ण बात यह है कि इस वर्ष मई में प्रतिबंधित आतंकी संगठन हिज्ब-उत-तहरीर के दो आतंकी सब्बीर अमीर और रिदवान मुनफ पश्चिम बंगाल में वैध दस्तावेजों के साथ भारत आए। यह संगठन शिक्षित छात्रों और डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षाविद् सहित अन्य पेशेवरों की भर्ती करता है। खासतौर पर इसके निशाने पर मध्यम वर्ग और संपन्न परिवारों के युवक होते हैं। इसके आतंकी उग्र भाषण नहीं देते, बल्कि ‘इस्लाम के खतरे में होने और भारत में मुसलमानों पर अत्याचार’ को लेकर बेहद सरल भाषा में अपनी बात रखते हैं। एचयूटी के ये दोनों आतंकी पश्चिम बंगाल के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्रों से मिलते-जुलते रहे।

खुफिया एजेंसियों का कहना है कि एचयूटी ने भारत में, खासकर पूर्वी राज्यों में अपने मॉड्यूल स्थापित किए हैं। बीते कुछ महीनों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और तमिलनाडु से एचयूटी से जुड़े संदिग्ध लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 10 अक्तूबर को एचयूटी पर प्रतिबंध लगा दिया।

गृह मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, हिज्ब-उत-तहरीर, ऐसा आतंकी संगठन है, जो लोगों को जिहाद और आतंकी गतिविधियों के माध्यम से लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को उखाड़ फेंककर भारत सहित विश्व स्तर पर इस्लामिक स्टेट और खिलाफत स्थापित करना चाहता है। यह संगठन लोकतांत्रिक व्यवस्था और देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है।

बहरहाल, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और ओडिशा में दोनों आतंकियों की गिरफ्तारी के लिए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाया गया है, लेकिन वे अभी तक पकड़ से बाहर हैं। बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहां के आतंकी संगठनों ने भारत में घुसपैठ के साथ स्लीपर सेल बनाने और आतंकी हमलों की योजना बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। यूनुस सरकार ने इनकी गतिविधियों पर न केवल अपनी आंखें मूंद रखी हैं, बल्कि वह आतंकियों को रिहा करके उन्हें प्रोत्साहित कर रही है। एचयूटी ने खुले तौर पर मांग की है कि शेख हसीना सरकार ने उस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उसे हटा लिया जाए। जैसे बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी से यूनुस सरकार ने प्रतिबंध हटाया है।

भारत में पैर जमाने की कोशिश

एबीटी, भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा (एक्यूआईएस) का सहयोगी है। शुरुआती जांच के अनुसार, इस आतंकी संगठन ने गुर्गों की भर्ती और स्लीपर सेल का गठन करने के लिए नवंबर 2024 की शुरुआत में बांग्लादेश के राजशाही के रहने वाले मोहम्मद साद शेख को भारत भेजा था। इसके बाद वह असम, पश्चिम बंगाल और केरल गया। पश्चिम बंगाल और असम में उसे पनाह देने और कट्टरपंथियों तक पहुंचाने वाले थे असम के कोकराझार के नूर इस्लाम मंडल और मोजिबर रहमान। आतंकी साद इन राज्यों में स्लीपर सेल से समन्वय के लिए एक नेटवर्क बना रहा था। इसके लिए उसे बांग्लादेश में बैठे एबीटी के सरगना मोहम्मद जसीमुद्दीन रहमानी के करीबी मोहम्मद फरहान इसराक से निर्देश मिल रहे थे।

साद शेख, नूर इस्लाम और मोजिबर रहमान ने पूछताछ में बताया कि उन्होंने इस्लामी कट्टरपंथियों की पहचान करने के लिए पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार के फालाकाटा और दक्षिणी मुर्शिदाबाद में कट्टरपंथी मौलवियों के साथ कई बैठकें कीं। साथ ही, इन बैठकों में लक्षित लोगों पर हमले का खाका भी तैयार किया गया था। उनकी मंशा हत्या के बाद हिंदुओं के आक्रोश को भड़काना था, ताकि पश्चिम बंगाल और असम में दंगा भड़के, खासकर भारत-बांग्लादेश से लगते जिलों में उथल-पुथल हो और मौका पाकर वे ‘चिकन नेक’ काट सकें। इस्लामी कट्टरपंथी लंबे समय से इस गलियारे को काटने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसे नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी आंदोलन के दौरान इस्लामवादी शरजील इमाम के बयान से समझा जा सकता है।

सीएए के खिलाफ दिल्ली के शाहीनबाग इलाके में प्रदर्शन के दौरान जनवरी 2020 में उसका एक वीडियो वायरल हुआ था। इसमें उसने ‘असम और पूर्वोत्तर को शेष भारत से काटने’ का आह्वान करते हुए कहा था कि ‘‘अगर पांच लाख लोग इकट्ठे हो गए तो असम को शेष भारत से स्थायी रूप से अलग करना संभव हो जाएगा। अगर हमेशा के लिए नहीं तो कम से कम एक-आध महीने के लिए तो हिंदुस्थान और असम को काट ही सकते हैं। मतलब, पटरियों और सड़कों पर इतना मवाद डालो कि उसको हटाने में ही एक-आध महीना लग जाए। असम को काटना हमारी जिम्मेदारी है। असम और भारत कट कर अलग हो जाए, तभी ये हमारी बात सुनेंगे। ये चिकेन नेक मुसलमानों का है। याद रखिए, अगर अवाम गुस्से में है तो उस गुस्से का ‘प्रोडक्टिव’ उपयोग करना चाहिए। अब वक्त है कि हम गैर-मुस्लिमों से कहें कि वे हमारे हमदर्द हैं तो हमारी शर्तों पर आकर खड़े हों। अगर वे हमारी शर्तों पर खड़े नहीं हो सकते, तो हमदर्द नहीं।’’

चिकन नेक महत्वपूर्ण क्यों?

यह पश्चिम बंगाल के उत्तर में स्थित है, जिसे सिलीगुड़ी गलियारा या चिकन नेक भी कहा जाता है। इस गलियारे की लंबाई लगभग 60 किलोमीटर और चौड़ाई मात्र 22 किलोमीटर है। नक्शे पर यह चिकन नेक की तरह दिखता है। यह एकमात्र सड़क मार्ग है, जो उत्तर-पूर्व के सात राज्यों को शेष भारत से जोड़ता है। यह पूरी पट्टी बहुत ही संवेदनशील है। इस कॉरिडोर का उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र मुख्य रूप से जंगलों से ढका हुआ है, जबकि दक्षिणी हिस्से में कृषि भूमि है। महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग 31 इस क्षेत्र के लगभग बीच से गुजरता है।

दरअसल, चिकन नेक कॉरिडोर को काटने की योजना ‘गजवा-ए-हिंद’ लक्ष्य का एक हिस्सा है। इसके लिए 1947 से पहले पूर्वी पाकिस्तान और उसके बाद बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल, खासकर इसके उत्तरी क्षेत्र और असम में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी मुसलमानों की घुसपैठ शुरू कराई गई। तीन दशक पहले तक यह संकरा गलियारा हिंदू बहुल हुआ करता था। लेकिन बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों की बेतहाशा घुसपैठ ने इस क्षेत्र की जनसांख्यिकीय स्थिति को पूरी तरह बदल दिया है। इस गलियारे में उत्तर दिनाजपुर जिले का उत्तरी और दार्जिलिंग का दक्षिणी भाग, पूर्व में बांग्लादेश और पश्चिम में बिहार के मुस्लिम बहुल किशनगंज और पूर्णिया जिले आते हैं। लेकिन बांग्लादेश और म्यांमार से घुसपैठ के कारण ये इलाके अब मुस्लिम बहुल होने के साथ अति असुरक्षित भी हो गए हैं।

अब इस्लामी आतंकी संगठन इस गलियारे को काटने की योजना के अगले चरण पर काम कर रहे हैं। इनमें बांग्लादेश स्थित अंसारुल्ला बांग्ला टीम, अल-कायदा से संबद्ध जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी), हिज्ब-उत-तहरीर और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन शामिल हैं। ये ‘चिकन नेक कॉरिडोर’, इसके आसपास और बिहार में मुसलमानों को भारत के खिलाफ भड़का रहे हैं। स्थिति यह है कि इन इलाकों के मुस्लिम भारत को अपना दुश्मन और अति-रूढ़िवादी व इस्लामी आतंकी संगठनों को अपना हमदर्द मानने लगे हैं। हाल के महीनों में उत्तरी दिनाजपुर और दार्जिलिंग जिलों के मुसलमानों को विद्रोह करने और विध्वंसक गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसाने वाले इस्लामी कट्टरपंथियों के कई वीडियो सामने आए हैं।

सबसे बड़ी समस्या यह है कि पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस न केवल कट्टरपंथियों को शह दे रही है, बल्कि घुसपैठियों की भी हर तरह की मदद कर रही है। आलम यह है कि घुसपैठियों ने दार्जिलिंग की गोरखा बहुल पहाड़ियों और पड़ोसी सिक्किम में भी बसना शुरू कर दिया है। राज्य में जब वाम मोर्चे की सरकार थी, तब भी घुसपैठियों को संरक्षण मिलता था। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए ये घुसपैठिये एक बड़ा वोट बैंक हैं। इसीलिए राज्य सरकार उन्हें उनकी भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए फर्जी प्रमाण-पत्रों के आधार पर दस्तावेज देती है। सुरक्षा एजेंसियां लगातार इस खतरे के प्रति आगाह करती रही हैं। पश्चिम बंगाल सरकार को कई बार सतर्क करने के साथ इस्लामी कट्टरपंथियों की गतिविधियों पर नजर रखने को कहा गया, लेकिन उसने कुछ नहीं किया।

बांग्लादेश के इस्लामी आतंकी संगठन ही नहीं, तख्तापलट के बाद वहां की अंतरिम सरकार में शामिल कई लोग भी पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा के बड़े हिस्से को बांग्लादेश में शामिल करने की बात करने लगे हैं। हाल ही में मुहम्मद यूनुस सरकार के एक ताकतवर सलाहकार महफूज आलम ने सोशल मीडिया पर एक नक्शा पोस्ट किया था। इसमें पश्चिम बंगाल, असम और पूर्वोत्तर राज्यों के अधिकांश हिस्से को बांग्लादेश का हिस्सा बताया गया था। हालांकि, बाद में आलम ने पोस्ट डिलीट कर दी। लेकिन इसने यूनुस सरकार में शामिल कट्टरपंथी तत्वों की भारत विरोधी मानसिकता को तो उजागर कर ही दिया। आलम पर आतंकी संगठन हिज्ब-उत-तहरीर (एचयूटी) से निकट संबंध रखने का संदेह है। कुल मिलाकर यह एक शैतानी योजना है ओर अगर इसकी और अनदेखी की गई तो यह भारत की अखंडता को खतरे में डाल देगी।

चीन की गिद्ध दृष्टि

यह एक व्यापारिक मार्ग होने के साथ-साथ दक्षिण-पूर्व एशिया का प्रवेश द्वार भी है। यह रणनीतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह गलियारा बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और चीन से सटा हुआ है। पूर्वोत्तर की लगभग 98 प्रतिशत सीमाएं भूटान, चीन (तिब्बत), म्यांमार और बांग्लादेश से लगती हैं। असम में सिलीगुड़ी को गुवाहाटी से जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 31 के आसपास के क्षेत्र में सक्रिय विद्रोहियों के कारण यह इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण राजमार्ग है। यहां से नेपाल भी नजदीक है, इसलिए इसका सामरिक महत्व है। दक्षिण में नेपाल और बांग्लादेश से घिरे होने के कारण दोनों देशों से छोटे हथियारों और प्रतिबंधित वस्तुओं की तस्करी इसी मार्ग से होती है। इस कारण सिलिगुड़ी गलियारे पर 24 घंटे कड़ी निगरानी की जाती है।

सिलीगुड़ी कॉरिडोर के लिए खतरा बारहमासी है, क्योंकि चीन अपनी सीमा तक सड़क और हवाई पट्टी बना चुका है। इस गलियारे के दक्षिण व पश्चिम में बांग्लादेश तथा उत्तर में चीन हैं। सिक्किम और भूटान के बीच तिब्बती क्षेत्र का खंजर जैसा हिस्सा चुम्बी घाटी है। चीन लंबे समय से इस गलियारे पर गिद्ध दृष्टि लगाए हुए है। 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध के दौरान यह स्थिति पैदा हुई थी। यह गलियारा 1947 में बंगाल विभाजन के बाद अस्तित्व में आया था। 1975 में सिक्किम के अलग राज्य बनने के बाद भारत को उत्तर-पूर्व स्थित चुंबी वैली में चीन पर निगरानी के लिए रणनीतिक बढ़त मिल गई, जो चीन को खटक रही है।

दरअसल, सन् 2000 के शुरुआती दशक में चीन ने यह कहते हुए सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने से इनकार कर दिया था कि यह एक स्वतंत्र राज्य था। इसके बाद 2003 में भारत-चीन के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत चीन सिक्किम को भारत में शामिल करने पर सहमत हो गया और राज्य पर सभी दावे छोड़ दिए और बदले में भारत ने तिब्बत पर चीन की संप्रभुता को मान्यता दे दी। हालांकि, इससे भारत-भूटान-चीन त्रि-जंक्शन क्षेत्र में तनाव काफी हद तक कम हो गया, लेकिन इस क्षेत्र पर वास्तविक नियंत्रण हासिल करने के चीन के प्रयास जारी रहे। इसकी परिणति जून-अगस्त 2017 के दौरान भारत और चीन के बीच डोकलाम गतिरोध के रूप में हुई। दरअसल, चीन अवैध तरीके से भारत के निकट और भूटान के हिस्से में सड़क निर्माण कर रहा था। भारत ने इसका विरोध किया और चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोका था। इसके बाद से ही चीन ने वहां अपनी सेना का जमावड़ा बढ़ा दिया था।

कुल मिलाकर, सिलीगुड़ी के संकरे गलियारे के आसपास घुसपैठ से जनसांख्यिकीय बदलाव आया है। इस क्षेत्र में आतंकियों और इस्लामी कट्टपंथियों की संदिग्ध गतिविधियां चिंता का विषय हैं। हालांकि, बीते एक दशक में सरकार ने पूर्वोत्तर पर बहुत जोर दिया है। यहां विकास की कई परियोजनाएं चल रही हैं। इनमें सड़क, रेलमार्ग और हवाईअड्डों के विकास के साथ बुनियादी ढांचे का विकास भी शामिल है। लेकिन विकास के साथ सिर पर मंडरा रहे आतंकी खतरे को भी गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

Topics: गजवा-ए-हिंदआपरेशन प्रघातBangladeshi and Rohingya MuslimsJamaat-ul-Mujahideen BangladeshGhazwa-e-Hindपाञ्चजन्य विशेषBangladeshi Muslimsसिलीगुड़ी कॉरिडोरSiliguri CorridorOperation PraghatFEATUREबांग्लादेशी मुसलमानबांग्लादेशी और रोहिंग्याजमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश
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