गोवा

‘चाहिए संयुक्त, शक्तिशाली, समृद्ध और स्वाभिमानी भारत’ -राम माधव

सागर मंथन के द्वितीय सत्र का विषय था- ‘नया विश्व और भारत उदय।’ इसमें वरिष्ठ चिंतक, लेखक और इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष राम माधव से बात की वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-

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अनुराग पुनेठा

पिछले 10 साल में भारत में दो बड़ी चीजें देखने को मिली हैं। एक तो यह कि भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी स्वायत्तता को बरकरार रखा है। भारत अपने हित की बात करते समय यह नहीं देखता है कि कौन क्या कहेगा। आप इस नीति को कितना सही और कितना दूरगामी मानते हैं?
निश्चित रूप से भारत ने आज विश्व में अपनी विशेष पहचान बना ली है। हालांकि यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है, लेकिन यह भी सच है कि पिछले 10 वर्ष में सरकार ने इसमें बहुत बड़ा योगदान दिया है। भारत ने दुनिया को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता का परिचय दिया है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि हम न तो आपके पीछे हैं और न ही उनके पीछे। मतलब हम अपने हित के लिए दुनिया के किसी भी देश के साथ संबंध रखेंगे। हम देख रहे हैं कि आज अमेरिका से भी दोस्ती है और रूस से भी। हम इसकी परवाह नहीं करते कि रूस के साथ दोस्ती करने से अमेरिका क्या सोचेगा। इसको कहते हैं रणनीतिक स्वायत्तता। हम भारत को अपने बलबूते एक शक्तिशाली देश के रूप में खड़ा कर सकते हैं। 2013 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटोनी ने संसद में कहा था कि 2010-2013 तक चीन ने हमारी सीमा का 600 बार उल्लंघन किया। पर आज का भारत चिट्ठी के साथ अपनी सेना को उस सीमा पर भेज देता है, जहां सीमा उल्लंघन किया जाता है।

सागर मंथन में राम माधव से बात करते अनुराग पुनेठा

आप भविष्य में भारत-चीन संबंधों और भारत की नीति को किस प्रकार देखते हैं?
चीन हमारा पड़ोसी देश है। हम अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं। आप यह तय नहीं कर सकते कि आपका पड़ोसी कौन होगा, बल्कि आपको पड़ोसी के साथ रहना होगा। आपके पड़ोसी के घर कोई भी आ सकता है। उनके साथ रहते हुए आपको उन्हें समझना होगा। हमारा पड़ोसी कैसा व्यवहार करता है? उसका आचरण क्या है, उसका चरित्र क्या है, उसका इतिहास क्या है? इन सबको समझते हुए हमें उसके साथ रहना होगा। चीन के विषय में भी यही करना होगा। चीन के साथ पड़ोसी का संबंध निभाते समय हम बहुत उदार न हो जाएं, जैसे कि नेहरू जी किया करते थे। उन्होंने ‘हिंदी-चीनी भाई भाई’ का नारा दिया था। यह तो तब होता है जब पड़ोसी का स्वभाव आपके स्वभाव से मेल खाता हो। चीन एक विशेष स्वभाव वाला देश है। उस स्वभाव को समझकर चलना होगा। वैसे दुनिया में कभी भी भारत ने युद्ध नहीं चाहा। बार-बार भारत पर युद्ध थोपा गया है। जब 1962 में युद्ध हुआ तो हम बुरी तरह पराजित हुए, क्योंकि 1962 तक हमारी सोच बिल्कुल अलग थी। चीन ने भारत को छोटा समझकर 1662 में आक्रमण कर दिया। हमने कोई तैयारी नहीं की थी और चीन ने 40 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया। आज भी वह भूमि चीन के कब्जे में है। इसलिए चीन के साथ उस सीमा तक ही संबंध हो, जहां हमारा हित बरकरार रहता हो।

अमेरिका मेें 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। इसके बाद भारत के साथ उनका कैसा संबंध रहने वाला है?
ट्रंप का एक अलग स्वभाव है, इसके बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। इतना जरूर कह सकता हूं कि उनके साथ हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी के व्यक्तिगत संबंध भी अच्छे हैं। अमेरिका में कोई भी सरकार आई है, उसके साथ भारत के संबंध अच्छे ही रहे हैं। हम आशा करते हैं कि वैसे ही संबंध जारी रहेंगे।

बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है, मंदिर तोड़े जा रहे हैं, ऐसे में आप बांग्लादेश को किस रूप में देखते हैं?
एक बात जो बांग्लादेश के लोगों, विशेषकर वहां के प्रशासन को याद रखनी चाहिए वह यह है कि जब मुक्ति वाहिनी संगठन ने बांग्लादेश के निर्माण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया था, तो तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के नेतृत्व ने उस आंदोलन को दबाने और उसे समाप्त करने के लिए सेना को ढाका भेज दिया था। मार्च, 1971 में सेना ने पहली बार आजादी की मांग कर रहे लोगों पर अत्याचार किया। पाकिस्तानी सेना के आक्रमण से 5,000 लोग मारे गए थे और वे सभी हिंदू थे। यानी बांग्लादेश के निर्माण के लिए सबसे पहले हिंदुओं ने अपना बलिदान दिया था। जब पाकिस्तानी सेना ने दमन जारी रखा तो एक करोड़ हिंदू भागकर भारत आ गए। 1972 में बांग्लादेश बना और शेख मुजीबुर्रहमान प्रधानमंत्री बने। मुजीबुर्रहमान और इंदिरा गांधी के बीच एक समझौता हुआ। मुजीबुर्रहमान ने लिखित में दिया था कि हम इन हिंदुओं की रक्षा करेंगे। इसके बाद वे एक करोड़ हिंदू वापस बांग्लादेश चले गए थे। लेकिन दुर्भाग्यवश बांग्लादेश में समय-समय पर हिंदुओं पर अत्याचार होते रहे हैं। आज हम उसी दौर को एक बार फिर से देख रहे हैं। आज वहां अस्थिर सरकार है और इस कारण कट्टरपंथी हिंदुओं के साथ अत्याचार कर रहे हैं। इसलिए भारत सरकार प्रयास कर रही है कि वहां की सरकार कट्टरपंथियों के विरुद्ध कार्रवाई करे। शेख हसीना के समय 18 हिंदू सांसद बने थे। बांग्लादेश की परिस्थिति को देखकर वहां के हिंदुओं का उत्तेजित होना स्वभाविक है। भारत हमेशा से प्रताड़ित होने वालों को आश्रय देता रहा है। हमारा व्यवहार ऐसा हो कि वहां रहने वाले हिंदुओं को ताकत मिले।

क्या ‘हार्ड पॉवर’ के बिना ‘सॉफ्ट पॉवर’ उतनी प्रभावी होगी? इसके लिए भारत को उस दिशा में सोचना चाहिए?
हमें धीरे-धीरे ‘सॉफ्ट पॉवर’ का मोह छोड़ना चाहिए। ‘हार्ड पॉवर’ के बिना ‘सॉफ्ट पॉवर’ कोई काम नहीं करती। आपके पास कितना भी वेद-विज्ञान हो, कितनी भी समृद्ध संस्कृति हो, दुनिया मानने वाली नहीं है। इसलिए हमारी ‘सॉफ्ट पॉवर’ तभी काम करेगी, जब आपका नेतृत्व मजबूत होगा। आज ‘सॉफ्ट पॉवर’ के साथ ‘स्मार्ट पॉवर’ चाहिए। जहां ‘हार्ड पॉवर’ की जरूरत है, वहां उसका प्रयोग करना होगा, तभी ‘साफ्ट पॉवर’ काम करेगी। वर्तमान भारत सरकार इन दोनों चीजों को ध्यान में रख रही है।

आम आदमी कैसे समझे कि हमारा दोस्त कौन है, दुश्मन कौन है? हम किसके साथ जाएं, किसके साथ न जाएं?
कूटनीति का एक साधारण सिद्धांत है कि कोई शाश्वत मित्र नहीं होता और कोई शाश्वत शत्रु भी नहीं होता। अपने हित ही शाश्वत होते हैं। इसे इस बात से समझ सकते हैं कि हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस गए थे। वे रूस से एस 400 एंटी मिसाइल प्लेटफार्म लेने गए थे। इसको खरीदने की प्रक्रिया आठ वर्ष से चल रही थी। अमेरिका कह रहा था कि वह प्लेटफार्म हमसे लें, लेकिन भारत ने अमेरिकी दबाव को नहीं माना और रूस से वह सौदा कर लिया। अब वह प्लेटफार्म भारत आने भी लगा है। यह सब मजबूत नेतृत्व के कारण हो रहा है। हम किसी के दबाव को नहीं मान रहे हैं। रूस मित्र है या अमेरिका मित्र है, यह महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है भारत का हित।

चीन, बांग्लादेश जैसे देशों की बात तो हो गई। श्रीलंका, मालदीव, पाकिस्तान से भी अच्छे समाचार नहीं आ रहे हैं। आप इसे किस रूप में देखते हैं?
वर्तमान भारत सरकार अपने पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध चाहती है। पीवी नरसिंहाराव के समय एक नीति बनी थी कि पड़ोसी देशों को हम प्राथमिकता देंगे। लेकिन आपको पड़ोसी देश प्राथमिकता नहीं दे रहा हो तो आप क्या करेंगे? इसलिए जब मोदी जी आए तो उन्होंने उस नीति में एक पंक्ति जोड़ी कि तुम आगे बढ़ रहे हो तो उससे मुझे फायदा होना है, नुकसान नहीं होना है। और हम बढ़ेंगे तो तुम्हें फायदा होगा। हम किसी देश को तो यह नहीं कह सकते कि वह किससे संबंध रखे और किससे नहीं, लेकिन इतना तो कह सकते हैं कि भारत के हित को देखते हुए संबंध रखो। पहले भारत बड़ा होता था, पर नेतृत्व बहुत कमजोर होता था। आज मजबूत नेतृत्व है। पड़ोसी इस बात को समझ भी रहे हैं।

आज भारत पश्चिमी देशों के बजाए पूर्वी देशों की तरफ ज्यादा देख रहा है?
हां, सही बात है, जो हमारे सहज पड़ोसी हैं, उनकी तरफ हमको देखना चाहिए। आजादी के बाद हम बहुत ज्यादा पाश्चात्य-परस्त हो गए थे। हमें लगता था कि यूरोप और अमेरिका ही महत्वपूर्ण हैं। महत्वपूर्ण हैं, इसे नकार नहीं सकते हैं। लेकिन हमारे आसपास में 37 ऐसे देश हैं, जिनके साथ हमारे स्वाभाविक और ऐतिहासिक संबंध हैं। लेकिन दशकों तक इनसे संबंध बनाने के लिए कभी प्रयास नहीं किए गए। पिछले 10 वर्ष से इस ओर ध्यान दिया जा रहा है। इसके अच्छे परिणाम आ रहे हैं।

भारत विश्वगुरु बनने की तरफ बढ़ रहा है?
हम स्वयं ही कहते हैं हम विश्व गुरु हैं। यह सही सोच नहीं है। भारत में विश्व गुरु बनने की क्षमता है। इस बात को महर्षि अरविंद 15 अगस्त, 1947 को कह चुके हैं। उन्होंने तिरुचिरापल्ली रेडियो स्टेशन को दिए एक संदेश में कहा था कि भारत आजाद हो रहा है, लेकिन अपने लिए नहीं। भारत को पूरे विश्व को प्रकाशित करना है। इसके लिए देश के अंदर उस प्रकार की क्षमता बनाने की जरूरत है। जब तक ऐसी क्षमता न बने तब तक ‘विश्व मित्र’ रहो। प्रधानमंत्री इस बात को बार-बार कहते हैं कि विश्व गुरु की जो क्षमता है उसको हासिल करो। इसके लिए पहले विकसित भारत होगा तब दुनिया कहेगी कि आप विश्व गुरु हैं। भारत तब विकसित होगा, जब हम आपस में लड़ाई-झगड़े नहीं करेंगे। यानी पहले संयुक्त भारत बनाना होगा। इसके बाद हर वर्ग को लगे कि उसके साथ अन्याय नहीं हो रहा है। सबको समान अधिकार मिले हैं। यानी दूसरा कदम है शक्तिशाली भारत बनाना। फिर समृद्ध भारत बनाना होगा और अंत में स्वाभिमानी भारत चाहिए। इन चार चीजों के बाद ही विकसित भारत बनेगा और फिर वह विश्व गुरु बन सकता है।

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