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हिंदू घटे, सम्भल कटा

विभाजन के समय जिस हिंदू समाज ने मुस्लिम परिवारों के प्रति सहिष्णुता और उदारता दिखाई थी, बाद में उन्हीं मुस्लिमों ने हिंदुओं को जिंदा जलाया और उन्हें सम्भल से पलायन के लिए विवश किया

by रमेश शर्मा
Dec 25, 2024, 12:27 pm IST
in विश्लेषण, उत्तर प्रदेश
सम्भल में जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हिंसा के बाद का एक दृश्य

सम्भल में जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के दौरान हिंसा के बाद का एक दृश्य

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उत्तर प्रदेश के सम्भल से हर दिन चौंकाने वाली खबरें आ रही हैं। पहले तो संविधान के अंतर्गत न्यायालय के आदेश का पालन करने गई पुरातत्व व पुलिस टीम पर पथराव कर भगाया गया, फिर एक अतिक्रमण में मंदिर निकला व एक मस्जिद सहित पूरी बस्ती में 300 बिजली कनेक्शन चोरी के निकले। अब मस्जिद के बगल में एक कुए से प्राचीन खंडित मूर्तियां निकलना, ये सभी सम्भल में हिंदुओं की सहिष्णुता और संविधान, दोनों को रौंदने की कहानी कह रहे हैं।

रमेश शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार

सम्भल भारत का ऐतिहासिक ही नहीं, प्रागैतिहासिक नगर भी है। अतीत में जहां तक दृष्टि जाती है, सम्भल का उल्लेख मिलता है। सतयुग, त्रेता और द्वापर में भी यह एक विकसित व प्रतिष्ठित नगर रहा है। मध्यकाल में इसकी समृद्धि और आकर्षण का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि हर आक्रमणकारी की नजर सम्भल पर गई। यहां आक्रांताओं के आक्रमणों का क्रम 11वीं सदी से शुरू हुआ, जो निरंतर जारी रहा। महमूद गजनवी के भतीजे सालार मसूद से लेकर अलाउद्दीन खिलजी, तुगलक, लोदी, बाबर, शेरशाह और औरंगजेब तक सभी के आक्रमण सम्भल ने झेले। इतिहास खोजने लगभग आधा दर्जन अंग्रेज इतिहासकार भी यहां आए। इन उतार-चढ़ावों के बीच अंग्रेजों से भारत की मुक्ति का समय आया। स्वतंत्रता की पृष्ठभूमि में भारत विभाजन के समय जिन क्षेत्रों में सर्वाधिक उथल-पुथल हुई, उनमें सम्भल भी एक था।

हिंदुओं की सहिष्णुता

विभाजन के समय सम्भल से कुछ मुस्लिम परिवार ही पाकिस्तान गए थे। जो यहां रह गए, उन्हें हिंदू समाज ने सहर्ष अपनाया और सहिष्णुता का परिचय देते हुए न तो उनके घरों को छुआ और न ही उनके मजहबी स्थल को छेड़ा। यह सम्भल के हिंदुओं की आत्मीयता व सहिष्णुता ही थी कि 1947 में बंटवारे के बाद यहां 45 प्रतिशत मुस्लिम और 55 प्रतिशत हिंदू थे। अब पता नहीं यह मुस्लिम समाज की कोई रणनीति थी या केवल संयोग, कि बंटवारे के समय सम्भल से जो मुस्लिम पाकिस्तान गए, वे अपने साथ पूरे परिवार को नहीं ले गए थे। अधिकांश मुस्लिम ऐसे थे, जो अपने परिवार के कुछ सदस्यों को यहीं छोड़ गए थे। सम्भल में रहने वाले मुस्लिम खुद को अकेला या असुरक्षित न समझेें, इसके लिए हिंदुओं ने उन्हें भाईचारे का आत्मीय वातावरण दिया। सामाजिक जीवन से लेकर सार्वजनिक जीवन तक हिंदुओं ने सदैव मुस्लिम परिवारों का ध्यान रखा। यहां तक कि जो मुस्लिम सम्भल में रह गए थे, उन्होंने न केवल अपना घर, जमीन-जायदाद संभाले रखी, अपितु अपने निकटतम रिश्तेदारों की संपत्ति भी सहेजी थी। इसमें भी हिंदुओं ने कोई आपत्ति नहीं की। दोनों एक-दूसरे के पूरक बनकर रहे।

सम्भल का इतिहास गवाह है कि बंटवारे के समय पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों में से कुछ भारत लौट आए। चूंकि उनके परिजन सम्भल में रहते थे, इसलिए वापसी में उन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई। उलटे हिंदू समाज ने परिजनों के साथ उनका स्वागत किया और प्रशासन ने भी कोई आपत्ति नहीं की। इसके बाद से सम्भल की जनसंख्या के अनुपात में बदलाव आया और समय के साथ दोनों पक्षों के बीच दूरियां भी बढ़ने लगीं। इस दूरी को 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद बहुत स्पष्ट देखा गया। उस समय सम्भल के कुछ मुसलमानों का पाकिस्तान के प्रति स्पष्ट सद्भाव देखा गया। इसी के साथ सम्भल में साम्प्रदायिक तनाव भी झलकने लगा। कहा जाता है कि इस खिंचाव और तनाव के पीछे उन जमातों की भूमिका रही है, जो समय-समय पर सम्भल आती थीं। उनमें से कुछ जमाती पाकिस्तान के मजहबी प्रसारक थे। कारण जो भी रहे हों, एक बार जो खिंचाव और तनाव शुरू हुआ, फिर कभी कम न हुआ।

सहिष्णुता का दमन

जिस हिंदू समाज ने विभाजन के समय मुस्लिम परिवारों को स्नेह, सहिष्णुता और भाईचारे का वातावरण दिया था, उसी पर मुसलमानों ने हमला किया। यह मार्च 1976 की बात है। सम्भल में भीषण दंगा हुआ। कहने के लिए यह दंगा था। वास्तव में, यह एक हिंसक भीड़ द्वारा हिंदुओं का नरसंहार था, जिसमें 184 हिंदू मारे गए थे। इस भीषण नरसंहार के बाद जो हिंदू बचे, उनमें से कुछ डरकर भागे और कुछ औने-पौने दाम में अपने घर-मकान बेच गए।

उस भीषण नरसंहार से बचकर भागे कुछ लोग इन दिनों मुरादाबाद में रह रहे हैं। उन्होंने मीडिया को जो विवरण दिया, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है। उनका कहना था कि 29 मार्च को एक ही दिन 46 हिंदू मारे गए थे। उनकी आंखों के आगे हिंसक भीड़ ने उन्हें सड़क पर टायरों से बांधकर जिंदा जलाया था। लगभग 15 दिनों तक चली हिंसा में मरने वाले हिंदुओं की संख्या 184 तक पहुंच गई। यदि इसमें 10 वर्ष के साम्प्रदायिक दंगों के आंकड़े भी जोड़े जाएं तो यह संख्या दो सौ के ऊपर बैठती है। सम्भल के ऐसे कई मोहल्ले हैं, जिनमें आबादी एकतरफा हो गई है। उनमें एक भी हिंदू घर नहीं है। सारे घर मुस्लिम समाज के हैं। इतने वर्षों में सम्भल का जनसंख्या अनुपात भी पूरी तरह बदल गया है।

सम्भल में मुसलमानों की आबादी जो पहले 45 प्रतिशत थी, अब बढ़कर 78 प्रतिशत हो गई हैं, जबकि हिंदू 55 प्रतिशत से घटकर 22 प्रतिशत रह गए हैं। आलम यह है कि सम्भल की खाली जमीनों पर मुसलमानों ने अतिक्रमण कर घर बना लिए हैं। मुसलमानों का अवैध कब्जा मंदिरों पर भी है। इन दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने सम्भल में अतिक्रमण के खिलाफ अभियान चलाया है। इस अभियान में दो प्राचीन मंदिर मिले हैं। इनमें एक तो 1976 के दंगे में ही वीरान हुआ था और तब से खुला ही नहीं था। मंदिर परिसरों पर अवैध कब्जे कर मुसलमानों ने घर बना लिए हैं। मंदिरों में मौजूद कुछ मूर्तियों को खंडित करके कुएं में फेंक दिया गया था। अब प्रशासन ने इस मंदिर परिसर को अतिक्रम से मुक्त करा लिया है और कुएं से भी मूर्तियां निकाल ली गई हैं।

संविधान की परवाह नहीं

सम्भल में हिंदू समाज की सहिष्णुता का ही दमन नहीं हुआ, संविधान की भावना और प्रावधान भी रौंदे गए। सम्भल से पिछले तीन सप्ताह से जो समाचार आ रहे हैं, उनसे लग रहा है कि यहां मुस्लिम समाज के एक समूह को संविधान की भी कोई परवाह नहीं है। वे मानो एक भीड़तंत्र चलाना चाहते हैं। संविधान किसी भी देश की केंद्रीभूत चेतना होता है। सभी प्रशासनिक, न्यायिक प्रक्रिया और विधायिका ही नहीं, समाज का सार्वजनिक जीवन भी संविधान से ही संचालित होता है। संविधान प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकार बोध के साथ दूसरे नागरिक के अधिकार की सीमा में अतिक्रमण न करने के प्रति भी सचेत करता है। जो इसका उल्लंघन करते हैं, वे अपराधी की श्रेणी में आते हैं। संविधान का यह उल्लंघन दो प्रकार से होता है। पहला, असावधानी से उल्लंघन हो जाना और दूसरा, योजनापूर्वक संविधान के विरुद्ध आचरण करना। यह गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है।

सम्भल में अतीत की जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वे सब गंभीर अपराध की श्रेणी में आती हैं। सामूहिक हिंसा करके किसी को भागने पर विवश करना, घर-जमीन और अन्य पंथ के उपासना स्थल पर अतिक्रमण, सब संविधान की भावना और संविधान के प्रावधान के विरुद्ध है। 1976 के उस भीषण नरसंहार के किसी अपराधी को कोई सजा नहीं हुई। कुछ लोग गिरफ्तार तो किए गए थे, लेकिन साक्ष्य के अभाव में सब अदालत से छूट गए। हत्या और लूटपाट करने वाले, घर छीनने वाले आज भी खुला घूम रहे हैं। उन पर ऊंगली उठाने तक का साहस किसी को नहीं है। इस बस्ती में नल और बिजली के अधिकांश कनेक्शन अवैध हैं। प्रतिमाह लाखों रुपये की बिजली चोरी होती है।

बस्ती में रहने वालों का इतना रौब है कि कोई सरकारी कर्मचारी तो दूर, पुलिस का सिपाही तक बस्ती के भीतर नहीं घुस सकता। 24 नवंबर को जिस बड़ी घटना से इतिहास की ये परतें खुलनी आरंभ हुईं, वह परिसर किसी व्यक्ति, संस्था या समाज नहीं, बल्कि भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। उस पर कोई निर्माण नहीं कर सकता। इस परिसर के बारे में माना जाता है कि वह प्राचीन हरिहर मंदिर था। मुगल आक्रांता बाबर के एक सेनापति ने उसका रूपांतरण करके मस्जिद का स्वरूप देने का प्रयास किया। उस परिसर का निर्माण कुछ ऐसा था कि विश्व भर के पुरातत्वविद् आकर्षित हुए। इतिहास में उपलब्ध विवरण के अनुसार 1874 में ब्रिटिश पुरातत्वविद् एसीएल कार्लले ने एक सर्वेक्षण किया था और इतिहासकार एलेक्जेंडर कनिंघम का मानना था कि वह हिंदू मंदिर था, जिसे परिवर्तित कर मस्जिद का स्वरूप दिया गया।

सम्भल में दंगाग्रस्त क्षेत्र का दौरा करते पुलिस कर्मी

इस परिसर की कलात्मकता कुछ ऐसी थी कि परिसर को 1920 में भारत सरकार के पुरातात्विक विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया। समय के साथ सरकार ने आदेश देकर परिसर के एक हिस्से में नमाज पढ़ने और एक हिस्से में पूजन-हवन की अनुमति दे दी। लेकिन 1976 में हिंसक भीड़ ने हिंदुओं को प्रवेश करने से रोक दिया। जिस हवन कुण्ड में हवन होता था, उसे वुजू के लिए उपयोग किया जाने लगा। यद्यपि पुरातात्विक अधिनियम के अनुसार इसमें कोई निर्माण नहीं हो सकता, लेकिन परिसर को पूरी तरह मस्जिद के रूप में बदलने के लिए सतत निर्माण होने लगा। पुरातात्विक टीम जब भी जाती, मुसलमानों की भीड़ एकत्र हो जाती। भीड़ के भय से पुरातात्विक टीम ने जाना लगभग बंद कर दिया।

पुरातत्व विभाग ने न्यायालय में अपनी जो रिपोर्ट प्रस्तुत की है, उसमें परिसर में परिवर्तन और वहां जाने पर अवरोध उत्पन्न करने की बात कही है। सभी पक्षों को सुनकर न्यायालय ने संविधान के प्रावधान के अनुरूप परिसर का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। पुरातात्विक टीम न्यायालय के आदेश पर पुलिस और प्रशासन को साथ लेकर परिसर में पहुंची थी। लेकिन भीड़ ने भारी पथराव किया। हिंसा की और संविधान के अनुरूप काम करने पहुंची टीम को लौटना पड़ा।

उस परिसर में हिंसा करके दूसरे पक्ष को रोकना, पुरातात्विक परिसर में अपनी इच्छा से निर्माण करके उसके स्वरूप को बदलना और न्यायालय के आदेश से गई टीम को हिंसा करके लौटाना, सीधे-सीधे संविधान विरोधी कार्य है। फिर भी भारत में एक राजनीतिक धारा ऐसी है, जिसे संविधान के सम्मान की नहीं, अपने वोट बैंक की चिंता है। इसलिए वे नारा तो संविधान बचाने का लगाते हैं, लेकिन देश के भाईचारे को मिटाकर संविधान की भावना को रौंदने वालों का खुला समर्थन कर रहे हैं।

Topics: पाञ्चजन्य विशेषहिंदुओं की सहिष्णुताहिंदू समाज ने सहर्षहिंदुओं ने कोई आपत्ति नहींसम्भल का इतिहासTolerance of HindusHindu society happilyHindus had no objectionhistory of Sambhalसामाजिक जीवनSocial Life
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