विजय दिवस: भारतीय सेना की अदम्य गौरव गाथा
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विजय दिवस: भारतीय सेना की अदम्य गौरव गाथा

1971 में पाकिस्तान पर निर्णायक जीत को चिह्नित करने के लिए 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस मनाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ।

by WEB DESK
Dec 14, 2024, 04:35 pm IST
in भारत
16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करते पाकिस्तानी सेना के जनरल

16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण करते पाकिस्तानी सेना के जनरल

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1971 में पाकिस्तान पर निर्णायक जीत को चिह्नित करने के लिए 16 दिसंबर को भारत में विजय दिवस मनाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का निर्माण हुआ। भारत ने पाकिस्तानी सत्ता और सेना के अत्याचार से पीड़ित पूर्वी पाकिस्तान की जनता को अपना सहयोग देकर बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष था जिसमें पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। इसका आरंभ पश्चिमी पाकिस्तान और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के बीच सशस्त्र संघर्ष के बीच 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान द्वारा भारतीय वायुसेना के 11 स्टेशनों पर रिक्तिपूर्व हवाई हमले किए जाने के परिणामस्वरूप भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम में बंगाली राष्ट्रवादी गुटों के समर्थन देने के निर्णय के कारण हुआ जिसमें पाकिस्तान को अप्रत्याशित पराजय का सामना करना पड़ा।

इसमें भारतीय सेना द्वारा 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक बंदी बना लिए गए और पूर्वी पाकिस्तान, पाकिस्तान के नियंत्रण से मुक्त होकर बांग्लादेश बन गया। 1947 विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से में दो तरफ़ के ज़मीन के हिस्से आए। एक भारत के पश्चिम का और एक भारत के पूर्व का। उस दौर में बंगाल से सटे पूर्वी हिस्से को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। पूर्वी पाकिस्तान में लगभग 75 मिलियन बंगाली बोलने वाले हिन्दू और मुस्लिम रहते थे। बंगाली मुसलमान अलग दिखते थे और उनकी राजनैतिक विचारधारा भी अलग थी। बंगाली मुसलमानों की विचारधारा उदारवादी थी यानि वे लिब्रल सोच रखते थे। पश्चिम और पूर्वी पाकिस्तान के बीच न सिर्फ़ 1600 किलोमीटर की ज़मीनी दूरी थी बल्कि दोनों हिस्सों की सोच, खान-पान, बोली सबकुछ अलग था।

पश्चिम पाकिस्तान के अधिकारियों ने बंगाली भाषा, बंगाली संस्कृति को ख़त्म करने की जीतोड़ कोशिश की और इस अन्याय ने पूर्वी पाकिस्तान के सीने में धधक रही आग के लिए हवा का काम किया। पूर्वी बांग्लादेश में अलग राष्ट्र बनने के स्वर तेज़ होने लगे। जब पाकिस्तान ने 1951 में उर्दू को देश की राष्ट्रभाषा घोषित कर दी तो उधर पूर्व में विरोध की हूंकार भरी गई। लोगों ने बांग्ला को दूसरी भाषा घोषित करने की अपील की लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों ने एक न सुनी। पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम पाकिस्तान के बीच तनाव 1947 से ही चल रहा था। 1970 के चुनाव ने दुनिया को दिखा दिया कि पूर्वी पाकिस्तान के बाशिंदे असल में क्या चाहते हैं। पाकिस्तान के बनने के बाद ये पहला आम लोकतांत्रिक चुनाव था। शेख मुजीबुर रहमान की आवामी लीग (Awami League) ने ऐतिहासिक जीत हासिल की लेकिन पश्चिम पाकिस्तान ने उन्हें सरकार बनाने नहीं दिया गया। पश्चिम पाकिस्तान के प्रधानमंत्री याह्या ख़ान ने पूर्वी पाकिस्तान में मार्शल लॉ लगा दिया।

पश्चिम पाकिस्तान ने 1971 के युद्ध से पहले के कुछ महीनों में पूर्वी पाकिस्तान की सड़कें चीखों से गूंजा दी और ख़ून से रंग दी। पाकिस्तानी सेना ने जो किया उसकी तुलना हिटलर के द्वारा यहूदियों के नरसंहार से की जाती है। मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान से देशभक्ति, भाषा भक्ति को निकाल बाहर करने की ठान ली। ऑपरेशन सर्चलाइट चलाया गया और बंगाली राष्ट्रवादियों की बेरहमी से हत्या शुरु कर दी गई। उल्लेखनीय है कि बांग्लादेश की आज़ादी में महिलाओं और पुरुषों दोनों ने ही संघर्ष किया।

 

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